रिटायरमेंट
रिटायरमेंट
शालिनी ने महेश को चाय का प्याला थमाया और सामने की डोर से एक कपड़े का थैला उठा बाहर निकल गई। कई छोटे बड़े बच्चे चमचमाती हुई स्कूल यूनिफार्म में स्कूल जाते नजर आ रहे थे। कुछ बच्चों के स्कूल बैग उनकी मां ने उठाए हुए थे और कुछ माताएं तो एक कंधे पर स्कूल बैग को संभालती और दूसरे हाथ से बच्चों को कुछ-कुछ खिलाती हुई सी जान पड रही थी। कई स्कूलों की बसे शायद थोड़ा जल्दी आती होंगी तो कुछ माताएं घर की ओर वापस लौटती दिख रही थी। दुपट्टे की छोर से मुंह पोछती। उन सब की तेज रफ्तार देखते ही बनती थी। एक दूसरे को संबोधित करते हुए बोल रही थी- अरे ! “राहुल के पापा को आधे घंटे में ऑफिस निकलना है,” तो दूसरी बोली- “मेरी ऑफिस की गाड़ी भी 9:00 बजे आएगी”। अरे, बस सुबह-सुबह तो बहुत भागदौड़ हो जाती है, अच्छा चलो अब कल मिलते हैं ,कहकर वह सामने के घर में घुस गई।
शालिनी भी यह सब देख कर सोचने लगी कि अभी 8 महीने पहले तक वह भी कैसे सुबह 7:00 बजे अपने स्कूल बस के लिए निकल पड़ती थी। घर का सारा काम समेट कर, सबके लिए नाश्ता बना कर, एक कंधे पर पर्स और दूसरे हाथ में बच्चों की कॉपियों का ढेर उठा दौड़ पड़ती थी। बस यही डर होता कहीं बस न छूट जाए।
शालिनी यह सब देख कर सोचने लगी” कि क्या वास्तव में “रिटायरमेंट” शब्द आपकी रफ्तार,आपकी कार्यक्षमता को श्रीण कर देता है? क्यों लोग रिटायर्ड सोचकर आपको लाचार या बिचारा समझने लगते हैं। मुझे तो ऐसा नहीं लगता, शालिनी ने सोचा। बस अब सुबह जो अलार्म बजता था, वह बंद हो गया है बाकी मेरी किसी दिनचर्या में कोई अंतर नहीं आया। यही सोचते-सोचते वह सब्जी वाले के पास पहुंची तो उसने छूटते ही पूछा- “आंटी आज स्कूल में छुट्टी है”?
काफी महीनों बाद रामू गांव से लौटा था,प्रश्न सुन शालिनी थोड़ा सकपका गई, थोड़ा दाएं -बाएं देखा और सोचा इसको क्यों बताऊं कि मैं रिटायर हो गई? पीछे ही चावला अंकल खड़े थे, कोई सरकारी अफसर रह चुके थे, जल्दी में शालिनी ने हाथ जोड़ उन्हें नमस्ते किया तो चावला अंकल जी ने अपना पूरा मुंह खोल नमस्ते का जवाब मुस्कुरा कर दिया। अरे! इनके तो ऊपर के तीनों दांत धारा शाही हो चुके थे। बच्चों की सी हंसी हो गई थी। हल्की-हल्की सफेद दाढ़ी और सर पर रहे सहे 4-6 सफेद बाल नजर आ रहे थे। चावला अंकल करीब 72 वर्ष के रहे होंगे। शालिनी ने धीरे से अपने चेहरे को, अपने जबड़े को अपनी तर्जनी से तर्जनी से टटोला और थोड़ा सर झटक कर बोली -रामू, कब लौटे गांव से तुम? घर में सब ठीक हैं ? अच्छा यह सब सब्जियां तोल कर घर पहुंचा देना ,मैं पैसे पेटीएम कर दूंगी। कहकर तेजी से चलती हुई शालिनी घर की ओर मुड़ी, सोचने लगी- क्यों नहीं मैं बोली कि हां मैं रिटायर हो गई हूं ?क्यों मुझे झिझक हुई? यह तो एक जीवन चक्र है। मैं क्यों वहां से चोरों की तरह भाग खड़ी हुई ?
घर पहुंच कर शालिनी घर के कामों में व्यस्त हो गई। आज रह-रहकर उसकी नजर दीवार पर टंगी घड़ी की ओर जा रही थी- 9:00 बज गए इस समय तो स्कूल में मैं चाय पिया करती थी, सभी सहकर्मियों के चेहरे एक-एक करके सामने घूमने लगे। कुकर की सीटी में उसका ध्यान भंग कर दिया।
यह रामू का आज यूं प्रश्न करना जैसे नश्तर सा चुभा गया। अभी तक तो शालिनी को कभी एहसास ही नहीं हुआ था कि वह वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आ गई है।
काम समेट कर जब शालिनी शीशे के सामने खड़ी हुई तो एक बार फिर सोचा की ऐसी ही तो दिखती थी मैं 8 महीने पहले भी। थोड़ा चेहरा घुमा कर देखा कभी दाएं कभी बाएं और जब इत्मीनान हो गया कि सब वैसा ही है तो महेश से बोली- सुनो,- “आज रामू पूछ रहा था कि मैं आज स्कूल क्यों नहीं गई”? महेश बोला तुमने कहा नहीं” कि बस अब स्कूल लाइफ खत्म हो गई और मेरा रिलैक्सिंग टाइम शुरू”। शालिनी ने महेश को घूर कर देखा और कहा चावला अंकल भी खड़े थे वहां।अब वह भी तो रिटायर्ड कैटेगरी में है, मैंने नहीं बताया रामू को।
महेश जोर से हंसा और बोला- “यह कॉन्प्लेक्स ना बस तुम महिलाओं में ही होता है”। बता देती की रिटायर हो गई हो तो तुम चावला अंकल की आंटी थोड़ी ना बन जाती , तुम भी ना बस…..
मुझे अच्छा नहीं लगता जब सभी जानने वाले बोलते हैं- अरे! तुम तो रिटायर हो गई शालिनी?…. क्या फर्क पड़ता है ?क्या मैं पहले की तरह काम नहीं करती? इन फैक्ट आई कीप द हाउस मोर ऑर्गेनाइजड ! वही तो मैं भी कह रहा हूं, शालिनी क्या फर्क पड़ता है? और किसे पड़ता है? हु केयरस? महेश बोला।
शालिनी ने थोड़ा गंभीरता से जवाब देते हुए कहा- जानते हो महेश- अब टाइम ज्यादा है मेरे पास तो निखिल और आस्था की कमी बहुत अखरती है। तीन- तीन-दिन हो जाते हैं उनका कोई फोन नहीं आता, सीने में सुईया सी चुभती है, चिंता होती है उनकी तो इसलिए स्वयं को व्यस्त रखना चाहती हूं। मैं नहीं सोचना चाहती कि मैं अब 60 बरस की हो गई या अगले वर्ष 61 वर्ष की हो जाऊंगी। अब दूर की सोचने में एक अज्ञात भय और अस्थिरता सी लगती है। क्यों होता है ऐसा कि जीवन के इस चरण पर हमें नकारात्मक विचार घेर लेते हैं? मैं नंबर को बिल्कुल हटा देना चाहती हूं लाइफ की काउंटिंग से।
सुनता रहा महेश, धीरे से शालिनी का हाथ पकड़ा और बोला मैं मानता हूं कि तुम बिल्कुल सच कह रही हो पहली बात- हमें बच्चों से किसी भी प्रकार की अपेक्षा छोड़ देनी चाहिए। हमने उन्हें सही संस्कार दिए हैं, संभाल लेंगे, अपना लेंगे, तो बहुत अच्छी बात! और यदि भूल जाए तो ईश्वर मालिक। उनकी उभर्ती हुई उम्र है, पनपने का समय है, फलने और फूलने का समय है। जिस प्रकार एक पौधा अपनी पूरी एनर्जी फ्लावरिंग में लगाता है ठीक उसी तरह यह बच्चे भी किसी लक्ष्य की प्राप्ति में लगे हुए हैं। हम कोई बाधा नहीं बनना चाहते उनके जीवन में। थोड़ा समय दो उन्हें शालू…
शालिनी ने कहा- तुम को समझना भी बहुत मुश्किल हो जाता है कई बार महेश। बहला रहे हो मुझे ? मैं नहीं जानती क्या हाल-चाल पूछने मैं कितना समय लगता है ? किसी टेलिफोन बूथ पर जाना है क्या उनको? सच्चाई यही है कि जिम्मेदारियों से दूर भागना चाहते हैं बच्चे आजकल। देख रही थी मैं सुबह कैसे मां बच्चों के स्कूल बैग कंधे पर टांगे उनके पीछे पीछे दौड़ती जा रही थी। ठीक यही हमने भी किया है। जानती हो क्यों? महेश बोला- ,क्योंकि यह हमें एक खुशी का अहसास देता था। आस्था को पढ़ाई में मदद करना अच्छा लगता था मुझे। निखिल को साइकिल चलाना सिखाना और उसका चिल्लाकर पापा मैं गिर जाऊंगा कहना, और मेरा उसे आश्वासन देना कि नहीं गिरोगे मैं हूं ना, गो अहेड ,मुझे ही खुशी देता था। जिम्मेदारियों को खुशी से जोड़ दो तो वह बोझ नहीं लगती।
मत सोचो इतना शालिनी। बहुत अच्छी यादें जुड़ी हैं हमसे बच्चों के बचपन की।
देखो 2:00 बज गए, आज माली नहीं आया तुम्हारा? हां उसको साइकिल ठीक करवानी थी और लौटते वक्त बेटी को स्कूल से लाना था शालिनी ने महेश की ओर देखकर कहा। दोनों ने एक दूसरे को देखा और एक मुस्कुराहट दोनों के चेहरे पर आ गई।
