RENUKA TIKU

Tragedy

3.9  

RENUKA TIKU

Tragedy

' माया 'मेम साहब

' माया 'मेम साहब

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क्या लगती है यह आपकी ? रिसेप्शनिस्ट ने मनोज की ओर इशारा कर पूछा। मनोज कुछ झंपा और बोला माया 'मेम साहब है' मैडम। विपक्ष ने फिर पूछा, रिलेशन के कॉलम में क्या लिखूं? मनोज फिर बोला जी माताजी है हमारी- मां जैसी और उसकी आंखें भीग गई। झुंझला कर बोला आप इलाज शुरू करवाइए ना मैडम का, 1 घंटे से आप परसों पर पर्चे भरवा रहे हैं। बोल नहीं रही है मेरी मैडम, देखिए बिल्कुल चुप है माया मेमसाब…।

 तभी ड्यूटी पर खड़ा डॉक्टर उन्हें अंदर ले गया और मनोज को बाहर ही रुकने को बोल गया। मनोज निस्सहाय सा कभी कोई बोर्ड पढ़ने का प्रयास करता तो कभी फोन लेकर अंदर बाहर करता ,शायद नेटवर्क ढूंढ रहा था। एक कोने में जाकर उसने जल्दी से कोई नंबर मिला कर कहा-' बाबू हम बोल रहे हैं तुम जल्दी टिकट निकालकर दिल्ली आ जाओ। यहां माया मेम साहब की तबीयत बिगड़ गई है और हमें कुछ ज्यादा समझ नहीं आ रहा यह अस्पताल में क्या बोल रहे हैं। हां, अमेरिका में छोटे भैया को भी फोन लगाकर बता दो, वैसे भी कई बरस हो गए हैं उन्हें मां से मिले हुए। मैं रखता हूं तुम तुरंत निकल लो वहां से ।

 मनोज शायद 14 या 15 साल का बच्चा था जब गांव से दिल्ली शहर काम की तलाश में आया था। कुछ समय एक साइकिल ठीक करने वाले के पास पंचर लगाता था, फिर एक दिन कोई चार पांच साल का बच्चा अपने पिताजी के साथ अपनी ट्राईसिकल ठीक कराने आया और बस वही से मनोज की किस्मत ने पलटी मारी।

 रमन के पिता एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर थे। उन्होंने मनोज को साइकिल की दुकान पर देखकर पूछा' अरे यह तो तुम्हारे पढ़ने-लिखने की उम्र है, यहां क्या समय खराब कर रहे हो? पहले तो नहीं देखा तुम्हें यहां कभी। इस शहर में नए लगते हो। बेचारा मनोज डर कर छुप सा गया कि यदि मालिक सुनेगा तो नौकरी से निकाल देगा। प्रोफ़ेसर साहब ने इशारा कर उसे अपने पास बुलाया और पूछा 'कहां से आए हो बेटा? मनोज धीरे से बोला सर जी उड़ीसा से आया हूं, पीछे बाढ़ में सब वह गया', अब सिर्फ मां बची है, तो पैसा कमाने दिल्ली आ गया। प्रोफ़ेसर साहब ने प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और और पूछा कहां तक पढ़े हो? कभी स्कूल गए हो? मनोज बोला हां जी सर 5 क्लास पढ़ा हूं। बस इसके बाद रमन के पिता जी ने दुकान के मालिक से न जाने क्या कहा और मनोज को घर ले आए।

 रमन क्योंकि अकेला बच्चा था तो उसे भी घर में लाड प्यार देने को एक बड़े भाई समान कोई मिल गया। मनोज को ओपन स्कूल से 12वीं करवा दी गई जिसमें रमन की मां और पिताजी दोनों का ही बड़ा योगदान था। आगे बढ़ने की कोई खास रुचि मनोज ने ना दिखाई तो प्रोफेसर साहब ने उसे अपने यहां ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया। और भी कई छोटे-मोटे काम मनोज खुशी खुशी कर देता था यूं कहिए कि वह घर का अ भिन्न अंग बन गया था। वह भी पूरी ईमानदारी और वफादारी से घर में रहता। रमन की मां ने मनोज और रमन में कभी कोई भेदभाव नहीं किया तो मनोज को जैसे खोया हुआ परिवार मिल गया था।

 सही समय पर मनोज का विवाह भी हुआ, पर यहां जरा किस्मत ने साथ नहीं दिया मनोज का। मनोज की धर्मपत्नी जल्दी ही चल बसी और एक बेटा नवीन छोड़ गई। नवीन की पूरी जिम्मेदारी माया मेमसाब ने उठाई।

 प्रोफेसर साहब तो चल बसे करीब 85 साल की उम्र में और माया मेम साहब शायद उस समय यदि कोई 70 या 72 साल की रही होगी। रमन भी पढ़ने के लिएअमेरिका चला गया और वहां किसी ग्रीन कार्ड वाली लड़की से विवाह कर लिया। माया वैसे बहुत ही सहनशील और सुलझी हुई महिला थी सोचा कि यह रमन की अपनी पसंद है, उसकी जिंदगी है और रिश्ता तो उसी ने निभाना है साथ रहना है तो ठीक है। और इस पर आ गरिमा और रमन खुशी खुशी अमेरिका में ही रह गए।

 आलीशान बंगला नौकर चाकर राजसी ठाठ बाट और पूरे घर में मनोज नवीन और माया। नियति देखिए- जैसा मनोज स्वभाव में था वैसा ही उसका बेटा नवीन। सारा दिन माया के इर्द-गिर्द घूमता रहता और पढ़ने में तीव्र बुद्धि। नवीन भी बारहवीं कक्षा के बाद सीए कर मुंबई चला गया परंतु सप्ताह में दो-तीन बार माया यानी ';अर्जी' को फोन करना ना भूलता। माया को भी उसके फोन का इंतजार रहता।

 अब जरा यहां रमन बाबू का हाल-चाल देखिए- शुरू में साल में एक चक्कर इंडिया का जरूर लगता जिसमें इंडिया में फैली गंदगी प्रदूषण और हाउ डिफिकल्ट इस लाइव हेयर के चर्चे ही होते । धीरे धीरे 2 से ढाई साल में एक चक्कर लगता और अब गत 5 साल हो गए और रमन बाबू बहुत बिजी हो गए, टाइम ही नहीं मिलता…… बस यही डायलॉग होता जब माया उसे फोन लगाती।

 यह बात भी काबिले तारीफ है की माया के चेहरे पर कभी कोई नाराजगी नहीं आई कोई शिकायत नहीं आई ना ही कोई रंज। मनोज का दिल रो पड़ता यह सब देख कर पर कुछ ना बोल पाता, छटपटा कर रह जाता।

' कैसी हो मां ?'रमन फोन पर पूछता। रमन के प्रश्न का एक ही जवाब होता- मुझे क्या होना है मनु, मैं ठीक हूं। आई एम फाइन। तुम सब ठीक हो? वहां सर्दी काफी हो गई है अपना ध्यान रखना। यू  टू मां, रमन का जवाब होता ।

 लेकिन वास्तविकता तो कुछ और ही थी, दिल कमजोर हो चुका था माया का, सिर्फ 50 परसेंट ही काम कर रहा था लेकिन जज्बा 100% था ।

 मनोज ने एक आध बार रमन को हिंट दिया कि माया मेम साहब ठीक नहीं रहती मनु भैया। मनु भैया बोले- आई नो आई नो, क्या कर सकते हैं? एज फैक्टर इस देयर, करता हूं कोशिश इस साल आने की। वह साल इन 5 साल में अभी तक ना आया।

 पिछले बुधवार माया बाहर टहलते टहलते अचानक गिर गई और मुंह से सिर्फ मनोज…… निकला। और आज आईसीयू में थी। पूरा द्रशांत मनोज की आंखों के सामने घूम गया ! 32 घंटे के बाद माया को होश आया, तो मनोज और नवीन को सामने पाया। आंखों के कोने से आंसू की मोटी मोटी बूंदें गिर रही थी। नवीन बोला अजी, मैं दिल्ली ट्रांसफर ले रहा हूं, पापा ठीक से देखभाल नहीं कर रहे हैं तुम्हारी। माया धीरे से मुस्कुराई और इशारे से बैठने को बोला। नवीन ने अनेकों नलिया लगी हुई माया की हथेली को अपने हाथ में लिया फिर चूम कर बोला- 'अजी घर चलेंगे, मुझे यह सब देख कर अच्छा नहीं लग रहा, डर लगता है।' मनोज की आंखों से आंसू बह रहे थे। गला रूंध गया था। कुछ ना बोल पा रहा था, सिर्फ बोला- मनु भैया …कल पहुंचेंगे 'माया मेमसाब।'

 माया धीरे से बोली- कौन मनु? फिर नवीन की तरफ देख कर मुस्कराई। माया दम तोड़ चुकी थी।


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