RENUKA TIKU

Romance

4.7  

RENUKA TIKU

Romance

खामोशी

खामोशी

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417


                        

आज 3 दिन हो गए थे शोभा और विकास को कुर्ग आए हुए। यह शोभा का रिटायरमेंट सरप्राइज था, विकास की ओर से। दिल्ली की भीड़, कोलाहल, प्रदूषण, और भाग भाग से दूर यह जगह किसी स्वर्ग से कम ना लग रही थी। अठखेलियां करते हुए बादल जैसे आप को गुदगुदा कर उड़ जाते। पहाड़, हरे-भरे जंगल, चाय और कॉफी के बागान मन को सम्मोहित कर रहे थे। कुर्ग को अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण ही शायद भारत का स्विट्जरलैंड भी कहते हैं ।

 आज सुबह की सैर के लिए दोनों को थोड़ा देर हो गई। शोभा ने अपनी हल्की सी जैकेट पहनी और दोनों बाहर निकल गए। सुबह के 6:30 बजे थे। ‘गौरी निवास’ रिसोर्ट से करीब 4 किलोमीटर दूर नीचे की और उतरने पर एक लोकप्रिय कॉफी की दुकान थी। विकास और शोभा सुबह सैर करते हुए उस कॉफी की दुकान से कॉफी पी कर ही ‘गौरी निवास’ लौटते। काफी पर्यटक आए हुए थे, कुछ वरिष्ठ दंपत्ति कुछ नवविवाहित जोड़े, हाथों में हाथ डाले, लड़की की लाल लाल चूड़ियां मेहंदी लगे हाथों में कभी-कभी दिख जाती। कुछ दंपत्ति अपने अल्हड़ छोटे बच्चों के साथ उन्हें कभी गोद में उठाते,कभी बच्चे हाथ छुड़ा भागते। जीवन के सभी चरणों को प्राया देखा जा सकता था इस 4 किलोमीटर की सर्पाकार सड़क पर।

            शोभा जेब में हाथ डाले चल रही थी, थोड़ा पीछे ही होती विकास से। विकास तेज चलता पर पीछे मुड़कर मुस्कुरा कर शोभा को जल्दी चलने के लिए इशारा करता।

 आज चलते-चलते अचानक शोभा की दृष्टि विपरीत दिशा से आते हुए एक वरिष्ठ नागरिक पर पड़ी। कपड़ों से, जूतों से,और अपने पहनावे से शिक्षित और सभ्य दिखता था। चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा। शोभा रुक कर एक बार पीछे मुड़कर देखती है-- जोगिंग करता हुआ सज्जन कुछ दूर जाकर रुकता है, मुड़ कर पीछे देखता है फिर कभी पीछे मुड़कर देखता है और चलता है। कुछ पल के लिए यह क्रम चला और फिर वह आगे निकल गया । शोभा तो रुकी ही हुई थी, विकास की आवाज सुनकर आगे चलने लगती है। विकास ने पूछा ‘क्या हुआ’? रुक क्यों गई? शुभा बोली- कुछ नहीं, वह जो लाल रंग की जैकेट में सज्जन जा रहे हैं ना, उनका चेहरा कुछ परिचित सा लगा। विकास बोला- अरे! कुछ भ्रम हुआ होगा, वह तो शायद हमारे 'गौरी निवास' का मालिक है, और वह तो बाहर रहता है, शायद अमेरिका में। हर साल सितंबर, अक्टूबर में आता है और दिवाली के बाद वापस चला जाता है। शोभा बोली-- हां, फिर कोई आंखों का धोखा हुआ होगा मुझे। दोनों नीचे पहुंचकर कॉफी पीकर ‘गौरी निवास’ लौट आते हैं।

 शोभा का दिमाग यादों के पृष्ठ टटोलने में लगा था। कौन हो सकता है? विकास की आवाज आती है- चलो, आज नीचे क्लब में चलते हैं। इतनी खूबसूरत जगह है, रोज थोड़ा ना आया जाता है ऐसी जगह। देखो, हल्की हल्की बूंदाबांदी भी हो रही है। चलो जल्दी तैयार हो जाओ। शोभा ने बाल सवारते हुए कहा- विकास, तुम किसी एन. आर. आई. की बात बता रहे थे ना? विकास बोला- अरे! वह प्रद्युमन शास्त्री, हां वह इस रिजॉर्ट का मालिक है। यहीं कहीं रहता होगा। काफी प्रॉपर्टी बनाई है उसने यहां। मैंने तो बुकिंग करते समय ‘गौरी निवास’ की साइट पर सब देखा। अब तुम तैयार होकर नीचे आ जाना, तब तक मैं टेबल बुक कर लेता हूं। 

 विकास बोलता जा रहा था और शोभा की आंखों के आगे 37 साल पहले का दृश्य घूमने लगा। 23- 24 साल की शोभा पढ़ाई समाप्त कर किसी अंग्रेजी स्कूल में हिस्ट्री की अध्यापिका लगी थी। वैसे तो थोड़ा पढ़ाकू किस्म की थी शोभा। सुंदर, सुशील, लंबी चोटी और हमेशा चूड़ीदार पजामी और कुर्ते में होती।

 प्रद्युमन शास्त्री उस समय कोई 33-34 वर्ष का आकर्षक नवयुवक था। किसी काम के सिलसिले दिल्ली आया था,और शोभा के सामने वाले घर में रमा शास्त्री आंटी का करीबी रिश्तेदार था तो वही रहता था। प्रद्युमन स्वभाव से थोड़ा शर्मीला था। सुबह 7:00 बजे शायद काम के लिए निकलता। शोभा का भी स्कूल के लिए निकलने का समय 7:00 बजे ही था। तो अक्सर वह उससे बस स्टॉप के सामने से गुजरता दिख जाता। कुछ दिनों बाद दोनों ने एक दूसरे को नोटिस करना शुरू कर दिया था।

 सुबह मोटरसाइकिल की आवाज के साथ ही शोभा भी घर से निकल जाती। दोनों एक दूसरे को बस नजर भर देखते और अपने अपने काम पर चले जाते। यह सुबह का घटनाक्रम तो करीब 2 महीने चला। अब दिल ही दिल में शायद एक नजर देखने की चाह बढ़ गई थी। शाम को 6:00 बजे मोटरसाइकिल की आवाज सुनते ही किसी बहाने शोभा बरामदे पर निकल आती, जैसे पौधों को पानी देने का उससे बेहतर समय कोई नहीं था। घरवाले तो इस लुक्का चुप्पी से अनजान ही थे। दूसरी और भी मोटरसाइकिल घर से 100 कदम दूर से हांक कर घर तक लाई जाती, ताकि आंखें ठीक से सही जगह केंद्रित रहे। एक मुस्कुराहट ही बहुत ही तसल्ली के लिए। घर पहुंच कर प्रदुमन भी मुंडेर पर सजे हुए मनी प्लांट के गमलों को पानी देने का काम शुरू करता। दो गमलों के बीच की खाली जगह से एक दूसरे का दीदार होता जब तक शास्त्री आंटी की आवाज ना आती- प्रदुमन हाथ मुंह धो लो, चाय तैयार है। बेचारा प्रद्युमन इंजीनियर से बागवान काफी महीनों तक बना रहा।

 अब क्योंकि शोभा सयानी हो गई थी तो शादी ब्याह की बातचीत तो चल ही रही थी। कई रिश्ते शोभा ने मना किए और कई दूसरी ओर से मना हो गए। 1 दिन बस स्टॉप पर प्रतीक्षा करते करते मोटरसाइकिल वाला रुका, हेलमेट उतारीऔर पूछा ‘आप टीचर हैं? एक श्रण के लिए तो शोभा को जवाब ही ना सूजा। दिमाग में ख्याल आया हाय! अगर कोई परिचित देख लेगा तो क्या सोचेगा? प्रदुमन फिर बोला- मैडम आपसे पूछ रहा हूं- शोभा बोली- जी हां.. हां,, रामजस स्कूल में हिस्ट्री टीचर हूं। ग्रेट!! कहकर वह वहां से चला गया।

      अब जहां इतने रिश्ते और जन्मपत्री आ मिलाने का कार्यक्रम चल रहा था ,शोभा ने हिम्मत करके अपनी मां से बोला ‘कि आप शास्त्री आंटी के भतीजे के लिए पूछ लो ना एक बार’। मां का तो सर घूम गया। बोली -क्यों? वह लड़का तो अभी 7- 8 महीने से ही आया है, तू कब मिली उससे? पापा सुनेंगे तो हंगामा हो जाएगा घर में। शोभा ने कहा- मां मैं कोई नहीं मिली उससे, बस यूं ही…. आप पूछ तो लो एक बार।

 शास्त्री आंटी को तो कोई एतराज नहीं था। वह बोली मैं पूछ लेती हूं प्रदुमन से, पर वह तो चेन्नई चला जाएगा। और उसकी उम्र और शोभा की उम्र में करीब 10 साल का अंतर रहेगा।

 मां ने घर आकर पापा से बात करी पहले तो उन्होंने पूछा तो क्या शास्त्री बहन जी मान गई? शोभा दरवाजे के कोने से सब सुन रही थी। दिल की धडकने इतनी तेज हो गई एक बार तो लगा कि उछल के कहीं बाहर ही ना निकल आए। अब मैंने धीरे से बोला- हां, शास्त्री बहन जी को तो कोई एतराज नहीं परंतु लड़का उम्र में अपनी शोभा से बड़ा है। पापा फिर बोले 2-3 साल का अंतर है तो कोई बात नहीं। मां ने कहा नहीं जी, 10 साल का अंतर है, लड़का इंजीनियर है और बहुत सुशील।

 पापा तुरंत बोले- कैसी बात करती हो? शोभा के लिए हमें क्या कोई रिश्ता ही ना मिलेगा? क्या कमी है मेरी शोभा में? जहां जाएगी,घर स्वर्ग हो जाएगा। 10 साल का अंतर?/ नहीं नहीं मुझे मंजूर नहीं। और अध्याय समाप्त।।

 अब 7-8 महीने बाद शोभा का विवाह विकास से हो गया। बहुत ही सुलझा हुआ लड़का था, और खाता पीता परिवार। शोभा भी परिवार में अच्छे से रल मिल गई और विकास का स्वभाव ही कुछ ऐसा था कि वह शोभा का पति और एक अच्छा मित्र भी बना। 

अब यह प्रद्युमन साहब दिल में खलबली मचा गए आज।

 नीचे क्लब में विकास शोभा की प्रतीक्षा कर रहा था, कि अचानक प्रद्युमन शास्त्री जी आ गए और बोले -हेलो! मैं प्रदुमन शास्त्री, यह रिजॉर्ट मेरा ही है। क्या आप यहां के इंतजाम से खुश हैं? यह मेरा कांटेक्ट नंबर है, यदि किसी चीज की आवश्यकता हो तो बताइएगा। विकास तो थोड़ा मजाकिए स्वभाव का ही था, बोला- यहां साथ कॉफी पीने वाला फ्रेंड कोई नहीं है। आप कॉफी पिएंगे मेरे साथ ?दोनों हंस पड़े और कॉफी का आनंद लेने लगे। विकास ने कहा मुझे आपका रिजॉर्ट बेहद पसंद आया। यह ट्रिप मैंने अपनी पत्नी के लिए सरप्राइस रखा था। अभी हाल ही में रिटायर हुई है, वह बस आती ही होंगी।

शोभा सामने से आती नजर आती है, वही चूड़ीदार पजामी लंबी कमीज, हल्के हल्के सफेद चांदी के तारों जैसे बाल, थोड़ी मोटी हो गई थी शायद। विकास बोले-’ शोभा, आओ, यह प्रद्युमन शास्त्री हैं, जिनके बारे में मैं सुबह तुम्हें बता रहा था। यह भी सुबह सैर को जाते हैं। शोभा 1 मिनट के लिए थोड़ा झिझकी , चेहरा लाल हो गया, ‘हेलो’ करके बैठ गई। प्रद्युमन शास्त्री अचंभे से कभी उसे देखते कभी अपने खाली कप को। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद प्रदुमन ने पूछ लिया- ‘जी कॉफी लेंगी आप’? इससे पहले की शोभा जवाब देती, विकास बोला- ओ ! ‘शी लवस कॉफी’ मिस्टर शास्त्री। तीन कप कॉफी का आर्डर दिया गया। पर तीनों के बीच सन्नाटा सा छा गया। विकास ने चुप्पी तोड़ते हुए फिर बोला- प्रदुमन जी, आपकी फैमिली भी यही है, या विदेश में? प्रदुमन के चेहरे पर एक मुस्कान आई, शोभा को देखकर बोला- ‘आई एम अ बैचलर’। यहां तीन रिजॉर्ट्स मेरे ही हैं। मैं हर साल सितंबर अक्टूबर में आता हूं, 2-3 महीने रह कर वापस अमेरिका चला जाता हूं। व्हाट अबाउट यू मिस्टर विकास ? प्रश्न पूछा तो विकास से था, पर जवाब शोभा से चाहता था प्रदुमन। विकास ने तुरंत जवाब दिया- मेरा बेटा नौकरी करता है, 2 महीने पहले ही उसका विवाह हुआ है, बेटी छोटी है और अमेरिका में बच्चों की डॉक्टर है। अगले साल उसका भी विवाह कर देंगे फिर हमारी 'इनिंग्स ओवर'। इसके बाद विकास फोन सुनने थोड़ा बाहर की और निकला। शोभा को इतनी ठंड में भी पसीना आ रहा था। प्रदुमन बोला- इतना करीब तो कभी 37 साल पहले भी नहीं बैठे हम। ठीक हो? खुश हो?

 शोभा ने धीरे से कहा- हां, विकास मेरा पति ही नहीं मेरा बेस्ट फ्रेंड भी है । ‘यू आर लकी शोभा’ प्रदुमन बोला। तुमने सच में शादी नहीं करी? शोभा ने पूछा। प्रदुमन फिर मुस्कुराया, बोला- क्यों विश्वास नहीं?

 शोभा बोली- पर क्यों?

 प्रदुमन शोभा के चेहरे को देखते हुए बोला- बस यूं ही…... कुछ लम्हे ना बांटे जाते हैं, ना ही भुलाए……

‘ एंजॉय युवर सटे इन कुर्ग’ शोभा! कहकर प्रदुमन वहां से चलने लगा। दोनों की आंखें मिली और एक खामोशी से छा गई जैसे।


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