RENUKA TIKU

Romance

4.7  

RENUKA TIKU

Romance

मिली

मिली

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अपना ध्यान रखना मिली। हां, अगर पैसे की जरूरत हो तो झिझकना नहीं, बस व्हाट्सएप कर देना, पापा तुम्हारे अकाउंट में पैसे जमा करा देंगे। हां, खाने पीने में भी कोई कटौती नहीं करना। अच्छा स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है- मां की हिदायतों की सूची बढ़ती ही जा रही थी। पापा सिर्फ मुस्कुरा कर मिली के सामान पर लगे लेबलस चेक कर रहे थे। सामान तो पहले ही मिली ने ऑनलाइन चेक इन  कर लिया था।  सिक्योरिटी गेट पर लाइन लंबी होती जा रही थी, पापा ने कहा- चलो जल्दी लाइन में लग जाओ मिली, टिकट और आईडी हाथ में ले लो। मां को एक अजीब सी घबराहट हो रही थी, आंसू जैसे थम ही ना रहे थे। भावुक तो पापा भी हो रहे थे, परंतु स्वयं को कमजोर नहीं दिखाना चाहते थे, इसलिए कभी लाइन में आगे चलते तो कभी पीछे। प्रवेश द्वार पर खड़े सिक्योरिटी ऑफिसर ने टिकट और आईडी चेक कर मिली को अंदर जाने का इशारा किया। मिली ने एक बार फिर पापा को देखा और जल्दी से पापा के गले लग गई। बस, अब पापा अपने आंसू ना रोक पाए, माथे पर चुंबन देते हुए बोले- 'टेक केयर मिली' कभी कभी फोन कर लेना। 'गुड लक'।

      इस तरह मिली कि कनाडा की यात्रा शुरू हुई। नया देश, नई संस्कृति, नया माहौल और नए लोग, इस नई दुनिया में समायोजित होने में कुछ समय तो लगा मिली को। इंजीनियरिंग के बाद आगे की पढ़ाई करने मिली कनाडा आई थी। यूनिवर्सिटी के पास ही छोटा सा अपार्टमेंट ले लिया था। 2 दिन में एक बार घर पर फोन हो जाया करता था। मां, पापा का हाल-चाल जानकर निश्चिंत हो जाया करती थी मिली। मां पापा का उत्साह तो पहले दिन से आज 4 महीने बाद भी उतना ही था जितना पहली बार कनाडा पहुंचकर बात करने पर।

 समय बीता गया, अब सप्ताह में एक बार फोन होता। 'काम का जोर 'और 'समय का अभाव' दोनों ही की वजह से फोन करने की आवृत्ति थोड़ी कम हो गई थी । कुछ हद तक सही भी था और फिर दोनों देशों के 'टाइम जोन' में काफी अंतर था।

मिली की पढ़ाई समाप्त हो गई और उसे एक अच्छी नौकरी भी मिल गई। अचानक 'करोना' की महामारी के कारण सब जगह लॉक डाउन लग गया और मिली का इंडिया जाना स्थगित हो गया। 2 साल पढ़ाई में ही निकल गए और इस महामारी ने 2 साल और खा लिए। अकेलापन, नीरसता, एक ही कमरे में बंद रह कर सारा दिन ऑफिस के काम में जुटे रहना... काफी मानसिक तनाव दे रहा था मिली को।

 मिली के ऑफिस में एक कनाडियन नौजवान 'लियो' उसकी काफी मदद करता था। कहीं दूर जाना होता या किसी चीज की आवश्यकता होती तो बेझिझक हाजिर हो जाता। 'लियो' काफी सभ्य लड़का था और मिली के घर से थोड़ा दूर किसी अपार्टमेंट में अकेले ही रहता था। धीरे-धीरे एक दूसरे की तरफ आकर्षण बढ़ गया। मिली जानती थी कि मां पापा इस रिश्ते को कभी नहीं स्वीकार करेंगे इसलिए कोशिश करती की 'लियो' से थोड़ी दूरी बना सके। एक दिन 'लियो' ने मिली को प्रपोज कर ही दिया। एक खूबसूरत गुलदस्ता और प्लैटिनम की अंगूठी के साथ । मिली हां, या ना कुछ ना बोल पाई, बस यही बोली- मुझे कुछ वक्त चाहिए 'लियो'।मेरे मां पापा को मनाना आसान न होगा मेरे लिए। आई नीड टाइम 'लियो'। 'लियो' बोला- 'टेक योर टाइम' आई कैन वेट। जब इंडिया जाओगी तो अपने मां पापा से बात कर लेना।

 लॉकडाउन खत्म हुआ और मिली करीब 5 साल बाद इंडिया आई। कुछ दिन बाद ही मां और पापा ने शादी के लिए आए रिश्तों की लंबी सी लिस्ट उसके सामने रख दी। करीब 12 से 15 लड़के थे, कुछ इंडिया में और कुछ विदेश में। कुछ समझ ना आ रहा था मिली को, कैसे बताएं उन्हें 'लियो' के बारे में ? दूसरा देश, दूसरी संस्कृति, रहन सहन, बिचारे मां और पापा कैसे स्वीकार करेंगे। बहुत कोशिश करने पर भी 'लियो' के बारे में बताने की हिम्मत ना जुटा पाई मिली। मां और पापा के निश्छल प्रेम ने उसका साहस ही तोड़ दिया। बाकी सब रिश्तों को भी इनकार कर दिया मिली ने यह कहकर कि वह अभी सेटल नहीं है ।

 समय कहां रुकता है किसी के लिए। मिली वापस कनाडा लौट गई। मां और पापा एयरपोर्ट से बाय बाय कर बुझे मन से घर लौट आए, यूं ही देखते देखते 2 साल बीत गए। काफी व्यस्त हो गई थी मिली तो फोन भी आठ 10 दिन में एक बार होता। बड़े असमंजस में थी मिली कि क्या करूं? यदि 'लियों' से विवाह कर लेती हूं तो मां और पापा को स्वीकार ना होगा और शौक अलग लगेगा। बहुत सोच विचार कर मिली ने निश्चय किया की मां को बताती हूं पहले।

 बहुत डरते डरते मिली ने मां से फोन पर कहा-मां, एक बात बतानी थी, तुम, तुम पहले सुन लेना. नाराज मत होना, बस पहले सुन लेना। तुम दूसरे कमरे में जाओ मैं वीडियो कॉल करती हूं।

 वीडियो कॉल थी, और पीछे 'लियो' हाथ जोड़े खड़ा था। मां तो देखते ही समझ गई, इससे पहले कि कुछ बोलती, 'लियो' बोला- नमस्ते! मां ने जल्दी से पल्ला सर पर रख कर बोला- नमस्ते। और तुरंत मिली की और देख कर बोली- मिली, कौन है यह? क्या कर रहा है यह तेरे घर में? क्या बजा है वहां इस वक्त? हां यह इतनी शाम ढले क्या कर रहा है तेरे घर में? मिली बोली- मां, मैंने कहा था ना कि तुम पहले सुनोगी। यह 'लियो' है, मेरे ऑफिस में ही काम करता है ।और पास ही के अपार्टमेंट में अपना घर है इसका। यह मेरा अच्छा दोस्त है, बहुत कैरिंग है, हेल्पफुल है और हम एक दूसरे को पसंद करते हैं। शादी करना चाहते हैं हम दोनों।

 मां बिना पलक झपके कभी मोबाइल को देखती तो कभी मिली को । किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो गई, बिल्कुल जड़वत !दूसरी ओर से मिली बोलती जा रही थी- मां पापा को मना लोगी ना? तुम समझ सकती हो ना मां? …

कुछ नहीं सुन रही थी मिली की मां । चुपचाप सामने की कुर्सी पर बैठ गई। थोड़े समय बाद मिली के पापा आए और बोले -अरे अकेले क्या कर रही हो यहां? मिली का फोन तो नहीं आया था? क्या हुआ? ऐसे मायूस क्यों बैठी हो? कुछ तो बताओ। मिली की मां धीरे से बोली- मिली शादी कर रही है। मिली के पापा आश्चर्य से बोले- किस से? मतलब कहां? कब? लड़का कौन है? परिवार कहां है? कैसे लोग हैं? थोड़ा झुंझला कर मिली की मां बोली- आपके प्रश्न खत्म हो तो मैं कुछ बोलूं। कुछ नहीं पता मुझे, परिवार कौन है, कहां है, क्या है। लड़का विदेशी है कनाडा का ही रहने वाला है, 'लियो' नाम है। दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं। बस इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं पता।

      मेरा गुरूर, मेरा सम्मान, मेरा अभिमान है मिली, मिली की मां। ऐसा कैसे कर सकती है वह? हमारी संस्कृति, हमारा समाज, रहन सहन, खानपान और नजरिया सभी कुछ तो इस पाश्चात्य सभ्यता से भिन्न है। एक से एक रिश्ते थे, विदेश में बसे परिवार भी तो थे, यदि मिली विदेश में ही रहना चाहती थी तो कम से कम इंडियन लड़का ही पसंद करना था। ठीक नहीं किया मिली ने। क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज को? हम कैसे अपना सकते हैं उस सभ्यता को? बीते 60 वर्ष से हम जिस परिवेश में ढले हैं, हमारे पूर्वज, हमारे माता पिता हमें विरासत में जो हमारी सभ्यता और संस्कृति दे गए हैं, धरोहर है वह हमारी, हमारी पूंजी। हमारी बची हुई जिंदगी के10 या 12 साल ही तो हैं, तो अब क्या वह खुद को बदलने में लगा दे? मिली ने एक बार भी नहीं सोचा कि हम से कितना दूर हो जाएगी? हमने खो दिया मिली को, मिली की मां। विदेश का आवरण बहुत मजबूत होता है मिली की मां, इसका चुंबकीय आकर्षण निगल गया मेरी मिली को, कहकर वह दूसरे कमरे में चले गए। 

इसके बाद उन्होंने मिली का फोन कभी ना उठाया। मायूस और उदास रहते थे हमेशा। रिश्तेदारों से भी बातचीत बंद कर दी, बाहर जाना भी छोड़ दिया। मिली कि मां का समय तो घर गृहस्थी के काम में निकल जाता, पर चिंता ने शरीर को सुखा दिया था। मिली के पापा ने उनसे मिली के बारे में कोई भी बात करने से मना कर दिया था। 

 4 साल बीत गए। चिंता चिता समान, तो दोनों अपनी उम्र से कहीं ज्यादा बुजुर्ग और श्रीण दिखते थे। सब से मिलना जुलना छोड़ दिया जैसे सबसे कटते जा रहे थे दोनों। मां मिली से चोरी-छिपे फोन पर बात कर लेती थी।

 मिली ने 'लियो' से विवाह नहीं किया। लियो भी एक अच्छे मित्र की हैसियत से मिलता, और निश्चय कर बैठा था कि विवाह सिर्फ और सिर्फ मिली से ही करेगा। सब कुछ था मिली के पास- पैसा, शोहरत, ऐशो आराम की हर चीज। मां से अक्सर बात भी कर लेती थी मिली, पर पापा कभी फोन पर ना आए। हर बार एक आस लेकर फोन करती कि शायद पापा माफ कर दें, और बात कर ले, पर निराशा ही हाथ लगती। हर बार मां से पूछती- पापा ने माफ नहीं किया मुझे?

  दिल्ली में किसी कॉन्फ्रेंस में मिली को चीफ गेस्ट और मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया गया था। यह सम्मान वह अपने पापा को समर्पित करना चाहती थी। 5 साल बीत गए थे और मां और पापा से संपर्क बिल्कुल समाप्त सा हो गया था। अकेले में कई बार मिली खूब रोती और सोचती काश! वह विदेश पढ़ने आई ही ना होती। मां और पापा के होते हुए भी जैसे अनाथ सी हो गई थी।

 दिल्ली पहुंचते ही सबसे पहले उसने मां को फोन किया और बताया कि वह किसी कॉन्फ्रेंस में आई है और किसी तरह आप पापा को लेकर वहां आइएगा। काफी रोना-धोना भी हुआ मां बेटी के बीच इस बात को लेकर।

 ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ था। मिली की मां और पापा दोनों ऑडिटोरियम के बाहर खड़े थे। पापा से तो यही कहा गया था कि किसी मोटिवेशनल स्पीकर की स्पीच है परंतु बाहर लगे पोस्टर पर मिली की तस्वीर देख कर चौक गए और बोले- अरे यह तो मिली है। तुमने मुझसे झूठ बोला मिली की मां? मां ने जोर से उनकी बांह पकड़ कर बोला- 5 साल हो गए मैं अपनी बच्ची का मुंह देखने को तरस गई। लोग क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या कहेंगे? समाज में हमारी क्या इज्जत रहेगी? सब अपनी जगह है मिली के पापा। कौन आया हमारी खैर खबर लेने इन 5 सालों में? सब अपने में व्यस्त हैं, दूसरों की खिल्ली उड़ाना, कटाक्ष कसना, यह तो लोगों का काम ही है और यह सब तो चलता ही रहता है, इन से डरकर क्या हम अपनी बच्ची से नाता तोड़ लें? हर बार फोन करके पूछती है कि पापा ने माफ नहीं किया? तुम चलना चाहो तो ठीक है अन्यथा यही बाहर मेरी प्रतीक्षा करो। कॉन्फ्रेंस खत्म होने पर घर साथ चलेंगे।

 अंदर ऑडिटोरियम की भीड़ दर्शा रही थी की स्पीकर काफी पॉपुलर है। मिली ने बोलना शुरू किया। उसकी आंखें बोलते बोलते इतनी भीड़ में पापा को खोज रही थी। तालियों की गड़गड़ाहट से ऑडिटोरियम गूंज रहा था। मिली निरंतर भीड़ में एक सिर्फ एक परिचित चेहरा ढूंढ रही थी वह थे -उसके पापा। कॉन्फ्रेंस खत्म हुई, कुछ लोग ऑटोग्राफ के लिए आगे आ रहे थे, कुछ सेल्फी के लिए। मिली की नजर दूर खड़े दो बुजुर्ग दंपति पर पड़ी जो कोने में खड़े हो उसी की ओर देख रहे थे। साड़ी के पल्लू से मिली की मां आंखें पोंछती जा रही थी और पापा बस एकटक मिली को निहारते जा रहे थे। चश्मे के अंदर से भीगी हुई पलकें साफ दिखाई दे रही थी।

 भीड़ को चीरती हुई मिली आगे आई और बोली- 'पापा'। मुझे गले नहीं लगाइएगा? कहकर पापा के गले लग गई। मुझे माफ कर दो पापा। मैंने बहुत कोशिश करी, पर मैं अकेली पड़ गई थी। लियो अच्छा लड़का है। मैं आपका दिल नहीं दुखाना चाहती थी, पर अपने दिल पर भी काबू न रख पाई। एम सॉरी पापा, आई मिसड़ यू सो मच। कहते कहते मिली की आंखों से आंसू बहने लगे।

 कितनी बड़ी हो गई मेरी मिली। इतने लोगों के सामने कितनी समक्षता से, आत्मविश्वास से बोलती हो, तुम इतनी कमजोर कैसे पड सकती हो? मिली बोली- पापा, बोला ना 'लियो' एक अच्छा लड़का है, हम खुश रहेंगे साथ। एक दूसरे को समझते हैं हम दोनों, और क्या चाहिए हमें जीवन में?

एक दूसरे की खुशी, एक दूसरे को समझना, दुख सुख में साथ देना, यही सब अपेक्षाएं ही तो होती हैं ना विवाहित जीवन में एक दूसरे से? आप एक बार मिल लीजिए उससे और फिर भी यदि आपको एतराज हो, तो मैं आजीवन अविवाहित ही रहूंगी।

 पापा, इस नई पीढ़ी की नई सोच, और अपनी छोटी सी मिली में एक समक्ष मोटिवेशनल स्पीकर को देख रहे थे। कुछ देर रुक कर बोले- मुझे ऑटोग्राफ नहीं दोगी मिली? सामने से 'लियो' आते हुए बोला- नो !नो ! 'दिस इज सेल्फी मूवमेंट'। 


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