Renuka Tiku

Drama Romance Inspirational

4.4  

Renuka Tiku

Drama Romance Inspirational

मधु-मालती

मधु-मालती

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निरंजन, उठिए! उठिए ना…... शाम के चार बज गए हैं। काव्या की फ्लाइट लैंड करने में आधा ही घंटा बाकी है। एयरपोर्ट पहुंचने में भी कम से कम एक घंटा तो लगेगा ही यह कहकर मधु रसोई की ओर निकल गई।

 निरंजन आंखें बोलता हुआ उठता है और बोला- अरे! काव्या के बारे में ही तो सोच रहा था और न जाने कैसे आंख लग गई। बस, पाचं मिनट में तैयार होकर आता हूं। मधु जल्दी-जल्दी रसोई में जाकर रसोइए ‘संतराम जी’ को निर्देश देते हुए बोलती है- अरे, संतराम जी काव्या दो साल बाद लंदन से लौट रही है। आज खाना उसकी पसंद का होना चाहिए, और हां संतराम जी, तेल और मसाले बिल्कुल हल्के रखिएगा। प्रेजेंटेशन का भी खास ख्याल रखिएगा। यह कहकर तुरंत मधु ने बाहर के लोन से दो सुर्ख गुलाब तोड़कर काव्या के कमरे में फूलदान में सजा दिए। कमरे की सजावट तो वह एक दिन पहले ही कर चुकी थी। काव्या के मनपसंद रंग की चादर, साइड टेबल पर टेबल लैंप और काव्या निरंजन और मालती का फैमिली पिक्चर, सब करीने से सजा कर एक बार कमरे में नजर दौड़ा कर इत्मीनान कर लेती है कि सब कुछ काव्या के मन मुताबिक है, और वहां से निकलने लगती है। तभी याद आता है की तोलिया रखना तो भूल ही गई। तुरंत एक नया 

तोलिया काव्या के कमरे से जुड़े हुए बाथरूम में रख आती है।

 मधु ने जल्दी से अपनी अलमारी से गुलाबी रंग की जामदानी साड़ी निकाल कर पहनी। अपने अध् पके केशो को करीने से एक क्लिप में बांध बाहर गाड़ी की और निकलती है। निरंजन तो प्रतीक्षा ही कर रहे थे, बोले- अब तो तुम ही देर कर रही हो मधु, वैसे अच्छी लग रही है। ड्राइवर ने गाड़ी का दरवाजा खुला और दोनों अंदर बैठ गए। 40 से 50 मिनट के इस लंबे रास्ते में मधु को बीते हुए तीस सालों का चित्रण एक एक कर याद आ रहा था। कैलेंडर के पन्ने जिस प्रकार फड़फड़ा करते हवा में उड़ते हैं, ठीक उसी प्रकार उसके जीवन के तीस साल कैसे गुजर गए पता ही ना चला। 

मधु, मेरठ के किसी छोटे से शहर में रहती थी। अभी मधु कॉलेज में ही पढ़ रही थी, तो सर से माता पिता का साया उठ गया। दो छोटे भाई अभी स्कूल में ही पढ़ते थे। अब सारे घर का बोझ मधु के कंधों पर आ गया। एक भाई ने अखबार बांटने का काम ले लिया और मधु ने ट्यूशन का। ट्यूशन के साथ-साथ किसी तरह मधु ने कॉलेज की पढ़ाई भी समाप्त करी। एक छोटी सी कंपनी में उसे रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई। दो साल तक मधु ने उसी कंपनी में काम किया। एक दिन अखबार में किसी बड़ी कंपनी में एक अकाउंटेंट की पोस्ट का विज्ञापन देखा। कंपनी दिल्ली में थी, परंतु वेतन तीन गुना। असमंजस में पड़ गई मधु। मान लो अगर यह नौकरी मिल भी जाती है तो भाइयों को कैसे देखेगी? कहां जाएंगे दोनों? क्या करेंगे? एक तरफ अच्छे पैसे थे, एक सुनहरा अवसर था थोड़ा ऊपर उठने का और दूसरी और भाइयों की जिम्मेदारी। यहां रिसेप्शनिस्ट की नौकरी के पैसों से तो निर्वाह मात्र ही हो रहा था।बहुत सोच विचार कर उसने निर्णय लिया कि पहले जाकर इंटरव्यू तो दो फिर देखते हैं क्या होता है।

 मधु करीब 21 या 22 साल की नव युवती थी। कद- काठी अच्छी थी, गर्दन के पीछे बालों का जूड़ा हरे रंग की सूती साड़ी पहने वह इंटरव्यू के लिए प्रतीक्षा कर रही थी। चेहरे पर मात्र एक छोटी सी काली बिंदी ही थी। यदि रूप रंग की व्याख्या करी जाए तो वह साधारण ही था, परंतु उसका आत्मविश्वास और स्वयं को कैरी करने का एक अंदाज उसे और उसे भिन्न करता था। इसका अनुभव तो उसे रिसेप्शनिस्ट की नौकरी में बखूबी मिला।

 इंटरव्यू निरंजन दास जी ने लिया। निरंजन एक पढ़ा लिखा, आकर्षक बहुत महत्वकांक्षी नौजवान था। इस कंपनी की नीव उसके पिताजी ने रखी थी, और अब सारा कारोबार वही संभालता था। पिताजी घर पर ही रहते, परंतु उनकी सलाह, सुझाव, अनुभव का वह पूरा सम्मान करता। मधु के व्यवहारिक तौर तरीके से निरंजन काफी प्रभावित हुआ और मधु को यह नौकरी मिल गई। अब क्योंकि मधु का घर तो मेरठ में था, उसे दिल्ली में ही एक कवाटर भी दिलवा दिया गया। अब आगे क्या करना है यह सब मधु को खुद सोचना था।

 मधु ने भाइयों से बातचीत कर उन्हें समझाया कि हर शुक्रवार शाम को वह आ जाया करेगी। उस समय एक भाई कॉलेज पहुंच चुका था और दूसरा 11वीं कक्षा में था।

 पैसे में बड़ी ताकत होती है। और यहां तो मधु एक बड़े शहर में थी, वेतन भी तीन गुना था, तो धीरे-धीरे घर का स्तर भी बढ़ गया और मधु दिल्ली में अच्छे से संमजित हो गई। धीरे-धीरे काम के बोझ के कारण अक्सर मेरठ जाना स्थगित हो जाता। भाई समझदार हो गए थे और मजबूरी समझते थे।

      निरंजन, मधु के काम से बहुत खुश था। बिजनेस लाने में, बात करने के लिए अक्सर मधु को अपनी सेक्रेटरी की तरह ले जाता। थोड़ा-थोड़ा आकर्षण एक दूसरे के लिए पैदा हो गया था। कई बार किसी काम से मधु निरंजन के घर भी गई, निरंजन ने बाबू जी से उसका परिचय भी कराया और किस प्रकार मधु ने अपना कार्यभार कुशलता से संभाला हुआ है इसका आभास भी बाबूजी को करवाया। पर बाबूजी तो एक उद्योगपति थे, तो क्लाइंट, बिजनेस, लाभ, हांनी इससे पार की ना सोचते,हां, यह जरूर कहते- निरंजन लड़की काबिल है। देखो दो से तीन फैक्ट्रियां बना दी है मधु ने।

निरंजन की मां की नजर से निरंजन का झुकाव मधु की और ना छुप सका। वैसे भी मधु ऑफिस में काम करती थी तो उसमें एक आकर्षण था, उठना बैठना, बात करना यानी जिसे हम व्यवहारिक कुशलता भी कहते हैं वह भरपूर थी। अब निरंजन की मा नें निरंजन के पिता जी से बोला मधु एक अच्छी लड़की है, कुशल है पर हमारी जात की नहीं है। निरंजन उसे चाहने लगा है। इससे पहले बात हाथ से निकल जाए ,आप निरंजन के लिए रिश्ता ढूंढ विवाह कर डालिए उसका। जानकी दास जी पहले तो माने नहीं कि ऐसा कुछ है, परंतु फिर सोचा यदि वास्तव में यह सच हुआ तो निरंजन को मनाना बहुत कठिन हो जाएगा।

 मालती नागपुर के एक उद्योगपति की 4 बेटियों में से सबसे बड़ी थी। निरंजन को बताया गया तो बुझे मन से बोला- मुझसे पूछ तो लिया होता एक बार! मां ने कहा इसमें क्या पूछना? लड़की घरेलू है, सुंदर है और परिवार अच्छा है। थोड़ा हिचकिचाहट निरंजन ने कहा- मां, मधु के बारे में आपका क्या ख्याल है? सामने ही बैठे जानकी दास जी थोड़ा सख्त आवाज में बोले- मधु एक मेहनती और अपनी कार्यकुशलता में अव्वल लड़की है। हमें ऐसा कर्मचारी मिलना मुश्किल है। उसकी प्रमोशन होनी चाहिए। उसे तुम ओखला वाले प्लाट का पूरा चार्ज दे दो और वही एक अपार्टमेंट लेकर दे दो।

 निरंजन को इशारा काफी था। थोड़ा मायूस रहने लगा था अब निरंजन। मधु के पूछने पर उसने उसे बताया कि उसका रिश्ता तय हो गया है और दो महीने में विवाह है। खामोश ही रही मधु। कोई हक ना जताया। निरंजन की कंपनी में चार साल ही काम किया पर अच्छी तनख्वाह ने उसके घर के रहन-सहन का स्तर ही बदल दिया था। बड़ा भाई कॉलेज पास कर किसी कंपनी में नौकरी कर रहा था और छोटा भाई कॉलेज की पढ़ाई समाप्त करने वाला था। उसे लगा वह तो निरंजन के एहसान तले जैसे दबी हुई है। निरंजन ने उसे उसकी प्रमोशन और ओखला में पूरे प्लांट की जिम्मेदारी के बारे में बताया।

 घर पहुंचकर मधु शीशे में देखकर थोड़ा रोई, फिर आंसू पहुंचकर सामान बांधने में जुट गई।

 मधु को ओखला भेज दिया गया और निरंजन का विवाह संपन्न हुआ। मालती ‘जानकी दास एंड कंपनी’ के मालिक के सुपुत्र निरंजन दास की पत्नी बनी। मधु भी शादी में थी, निरंजन की मां को मधु की मौजूदगी ज्यादा पसंद ना आई पर कुछ ना बोली।

 गहनों से लदी मालती गृहलक्ष्मी बन निरंजन के जीवन में आई। मालती एक कुशल ग्रहणी थी। हालांकि नौकरों की कोई कमी न थी, परंतु मालती अपनी ही देखरेख में सारे काम करवाती, सब की जरूरत का ध्यान रखकर खाना बनता, साफ सफाई अर्थात गृहस्ती का सारा भार मालती ही संभालती । 

मधु कभी-कभी घर आती,जानकीदास जी के पास बैठती कुछ अकाउंटस से संबंधित बातें होती या कर्मचारियों के वेतन की बात होती या कुछ और कार्य संबंधित सुझाव लेती। ज्यादातर वह अकेली ही आती परंतु निरंजन उसे वापस गाड़ी में छोड़ने जाता।

 एक बार मालती ने निरंजन से पूछा कि कौन है यह मधु?निरंजन बोला ऑफिस स्टाफ है। पर मधु की व्यवहारिक कुशलता के आगे उसे अपना आप थोड़ा छोटा लगता। औरत की आंख से आदमी का दूसरी औरत के प्रति आकर्षण नहीं छुपता।

 मालती को थोड़ा शक तो हुआ तो उसने निरंजन की मां से पूछने की कोशिश करी। उन्होंने बिना नजरे मिलाए ही बोला ऑफिस स्टाफ है, एक साथ उठना बैठना रहता है। अब भी मालती को सांस के जवाब से संतुष्टि ना हुई।

 2 साल बीत गए। काव्या का जन्म हुआ। मधु भी आई। कितनी खुश हुई काव्या को गोद में उठाकर। बस इसी तरह समय पंख लगाकर उड़ता गया। काव्या 5 साल की हो गई और उसे मधु के आने का बेसब्री से इंतजार रहता है। मधु बहुत स्नेह उड़ेलती काव्या पर, एक से एक खिलौने, कहानी की किताबें, अलग-अलग तरह के हेयर क्लिप इत्यादि इत्यादि। मालती, निरंजन और काव्या भी कई बार बाहर घूमने जाते और मालती भी अपनी बेटी के लिए खिलौने कपड़ेऔर सब चीजें खरीदी परंतु शायद उसे बाहर की दुनिया का ज्यादा ज्ञान नहीं था। उसका ज्यादातर समय बाबूजी, माताजी और घर की देखरेख में निकलता।

 तिजोरी की चाबी तो मालती के हाथ में ही थी, पर मन में कहीं वह इस बात को महसूस करती कि मधु का जादू घर के सभी सदस्यों पर है। खुद को असहाय सा महसूस करती। हिम्मत करके एक बार बाबू जी से भी मालती ने पूछा, जवाब वहीं था- की निरंजन की ब्याहता तुम ही हो और तुम ही रहोगी। मधु का क्या है? वह तो ऑफिस स्टाफ है और कुछ नहीं। तुम अपने दिमाग से शक निकाल दो।

 काव्या मधु को ‘मधु’ ही बुलाती। मधु अक्सर उसे गले लगाती और ‘हाय प्रिंसेस’ बुलाती। काव्या का जन्मदिन था। आज हो 11 साल की होने वाली थी। काफी लोग आमंत्रित थे। केक का ऑर्डर मधु ने किया था। सब कुछ बहुत अच्छे से हुआ। निरंजन और मधु की नज़दीकियां कई बार मालती ने आज इस पार्टी में देखी। 

आज सोने से पहले मालती ने फिर निरंजन से पूछा- निरंजन, मधु ने शादी क्यों नहीं करी अभी तक? सुंदर है, व्यवहार कुशलता है, कमाऊं है। निरंजन बोला ‘मालूम नहीं’। मालती फिर बोली- तुम काव्या के सर पर हाथ रख कर बोलो कि ‘मधु से तुम्हारा क्या रिश्ता है’?

 निरंजन पहले चुप रहा फिर सब सच सच बता दिया वह बोला की वह मधु को चाहता था पर मां बाबूजी ने विवाह के लिए नहीं माना। पर अब हमारे बीच कुछ नहीं है मालती। विश्वास करो। मालती बुझे स्वर में बोली- मैं खुश हूं निरंजन कि तुमने मुझे सच बोला। बस और कुछ ना पूछूंगी।

    हम अक्सर परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं यदि हम उनका विरोध करने में असमर्थ होते हैं। मालती ने बुझे मन से मधु को स्वीकार कर लिया। वैसे मधु कभी मालती से ऊंची आवाज में नहीं बोली, ‘जी मैडम’ करके ही बात करती अब यह नियति कहो या सत्य के खुलासे का सदमा? मालती काव्या के 18वे जन्मदिन से कुछ दिन पहले ही दिल के दौरे से चल बसी।

 मधु ने तो दिल ही दिल में निरंजन को ही अपना पति माना था, तो विवाह के बारे में कभी सोचा ही नहीं। अब तो विवाह की उम्र भी जा चुकी थी। अब मधु भी 42, 43 साल की थी। मालती के जाने से निरंजन स्वयं को अपराधी सा महसूस करने लगा था। दुखी सा हो गया था। मूल रूप से निरंजन दिल से सरल स्वभाव का था। कभी किसी का दिल ना दुखाया था। अपने कर्मचारियों के बीच भी उसकी छवि बहुत प्रशंसनीय थी।

 काव्या भी मां के जाने के बाद टूट सी गई थी। मधु से लिपटकर खूब रोती। इतने सालों में काव्या के साथ मधु की धनिष्ठा भी बढ़ गई थी। वह उसे माय फ्रेंड, फिलॉस्फर, एंड गाइड बोलती।

 जब काव्या 20 साल की हुई, तो उसके मन में भी मधु को लेकर एक सवाल उठा। वह मधु से बोली- एक बात बताओ मधु, तुमने शादी क्यों नहीं करी? यू आर सो स्मार्ट,एंड यू कैरी योरसेल्फ सो वेल । मधु कुछ देर चुप रही, फिर काव्य की और देख कर बोली- काव्या ‘माय प्रिंसेस’ सच सुन सकोगी? मेरे विचार से अब तुम भी मैच्योर हो, समझ सकोगी शायद। काव्या बोली- बताओ ना मधु। मधु बोली- काव्या मैं तुम्हारे जितनी ही थी जब मेरठ से दिल्ली नौकरी की तलाश में आई और निरंजन की कंपनी में मुझे नौकरी मिल गई।अब मुझे इस कंपनी में 26 साल हो गए। मालती से शादी होने से पहले मैं मन ही मन निरंजन को चाहती थी पर तुम्हारे दादू और दादी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे और मैं पीछे हट गई। इससे ज्यादा मैंने कभी मालती और निरंजन के विवाहित जीवन में दखल नहीं दिया। काव्या फिर बोली- तो तुम बाद में भी तो कर सकती थी ना शादी?

 मधु होली-- नहीं, ‘प्रिंसेस’ मन नहीं माना। कुछ सोच विचार कर काव्या बोली- मधु क्या अभी भी तुम पापा को ‘लाइक’ करती हो? मधु ने काव्या के कान पकड़कर कहा- काव्या अब तुम कुछ ज्यादा बोल रही हो । काव्या फिर बोली- ‘आई एम सीरियस मधु’।

 दो महीने बाद काव्या की जिद से निरंजन ने मधु के साथ कोर्ट मैरिज कर ली। बहुत अच्छा समय निकला मधु का निरंजन और काव्या के साथ। मधु ने ही काव्या को विदेश जाकर आगे पढ़ने का सुझाव दिया।

 ड्राइवर ने गाड़ी रोकी, निरंजन ने मधु का हाथ थपथपाया और बोले- चलो उतरो, एयरपोर्ट आ गया। सामने से एक चुलबुली लड़की बड़ा सा ब्रीफकेस लिए मुस्कुराती हुई चली आ रही थी। मधु ने हाथ हिलाया और निरंजन जोर से चिल्लाया-- ‘काव्या’। काव्या निरंजन से गले मिलकर मधु को देख कर बोली- ओ मधु! ‘यू लुक इवन मोर अट्रैक्टिव ! और यह हल्के हल्के ग्रे हेयर बहुत सूट कर रहे हैं तुम्हें। है ना पापा? निरंजन ने ड्राइवर को सूटकेस उठाने का इशारा किया और तीनों गाड़ी में बैठ गए।


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