Bhawna Kukreti

Horror Tragedy Thriller fantasy tragedy

4.7  

Bhawna Kukreti

Horror Tragedy Thriller fantasy tragedy

प्लीज हेल्प!

प्लीज हेल्प!

6 mins
293


जाने कैसी हूँ, शायद अतरंगी हूँ। कभी लंबे समय तक बेहद खामोश कभी बेतहाशा चहकती हुई। मेरी खुद में डूबी हरकतें..औरों को तो क्या, मुझे भी अक्सर बाद में चौंका देती हैं कि ये क्या किया था या हुआ था?!। ऐसी ही एक बात...


ये दूसरे शहर में थे। जहां कोरोना प्रभावित इनके ऑफिस के चारों ओर पता चले थे। जिनके साथ इनका रोज का बैठना था। देर रात इनसे बात करने के बाद सुकून हुआ कि सब ठीक है। लेकिन फिर भी नींद आंखों से गायब थी।

कॉलोनी में रात की खामोशी को बीच बीच मे चिड़ियों की आवाजें तोड़ रहीं थी। हमारी कॉलोनी इस क्षेत्र की सबसे सुरक्षित कॉलोनी मानी जाती है। स्ट्रीट लाइट नहीं जल रहीं थीं पर पूरे चांद की रोशनी से सब उजला था। रात के 11, सवा 11 हो रहे थे। एक सहेली को ओंनलाइन देखा तो सोचा उससे बात की जाय।


अजीब सी घुटन से निजात पाने मैं मेंन गेट खोल बाहर चली आयी। चैट करते-करते अपनी कॉलोनी की सड़क पर टहलती रही। कुछ समय बाद जब अगली को नींद आने लगी तो उसे चैट पर बाय कह कर वापस घर आने लगी। पता नहीं क्यों जी हो आया कि गंगा जी के दर्शन कर लूँ। हमारी कॉलोनी से 300 मीटर की दूरी पर सुंदर घाट बने है।

बता दूं कि मेरा शहर एक तीर्थ नगरी है। यहां आस्तिकों की चहलकदमी सबसे ज्यादा रात में 12 बजे के आस पास और सुबह 4 बजे तक दिखती है। सो ऐसा कोई भय नहीं था। लेकिन ये पहली बार था कि मैं अकेले बेटे और सास जी को सोता छोड़ निकली थी, बिना कुछ कहे या बताए !


घाट और मेरे घर के बीच आम का बाग पड़ता है। सड़क, कॉलोनी की बाउंडरी और बाग के बीच से होते घाट तक जाती है। मैं कॉलोनी से बाहर निकली, चमकती काली सड़क पर आगे एक दो जन कुछ दूरी पर चलते दिखाई पड़े। मैंने पतिदेव की हुडि, मफलर और लेगिंग पहनी हुई थी। मेरा चेहरा पूरी तरह ढका हुआ था।

पीछे से बाइक पर दो युवा आये और मुझे शायद हमउम्र समझ कर कहा। "भाई सुन गंगा जी इसी रास्ते पड़ेंगी न?!" मैंने हामी में सर हिला दिया। कुछ देर बाद मेरे सामने जाता व्यक्ति जमीन पर चलते चलते गिर गया। वो कराहने लगा। मैं भाग कर उसके पास पहुंची।

देखा ये कॉलोनी के अग्रवाल अंकल थे। मैं सोच में पड़ गयी कि अग्रवाल अंकल तो बिना छड़ी के नहीं चलते और इस वक्त ये यहां क्या कर रहे हैं। देखा तो वे रो रहे थे। किसी बुजुर्ग और वो भी पुरुष को रोता देखना ये अजीब सा अहसास था। मुझे देखते उन्होंने मेरा नाम लिया और कहा बेटा मेरा पैर मुड़ गया है । अंकल का कुछ दिन पहले ही एड़ी का ऑपरेशन हुआ था। मैंने नमस्ते कह कर अपना मोबाइल निकाली की उनके घर फोन करूं लेकिन बैटरी डिस्चार्ज हो गयी थी। शायद बैटरी पुरानी होने की वजह से ऐसा हुआ।


मैंने अंकल से कहा कि उनको वापस घर ले चलती हूँ लेकिन वे बोले की बेटा घाट बहुत नजदीक है, गंगा मैया को प्रणाम करवा दो फिर चलते है। मैंने कहा भी की ऐसे आपकी चोट और भी बिगड़ जाएगी फिर कभी आ जाइयेगा। लेकिन वे किसी बच्चे की तरह जिद पकड़ लिए। झटपट अपना मफलर मुंह से हटा कर उनकी ऐड़ी में लपेटा और सहारा दे कर घाट तक ले आयी। वे फिर जिद करने लगे कि नीचे गंगा जी को छू कर प्रणाम करना है।

किसी तरह उनको नीचे लायी। घाट पर एक सिपाही कंबल लिपटाये, सिकुड़ा पड़ा, सो रहा था। और एक कॉन्स्टेबल जैसा आदमी मंकी कैप पहने घाट पर झाडू लगा रहा था। अंकल जी को मैंने बैठाया और उनकी बांह पकड़े रही कि कहीं गंगा जी में गिर न पड़ें। उन्होंने अपने अंजुली में गंगा जल लिया और आरती गाने लगे।


आरती के बाद वे स्थिर हो कर कुछ देर बैठने को बोले। मैं उन्हें घाट पर ऊपर ले आयी। और पास में बने मंदिर में प्रणाम करने बढ़ गयी। प्रणाम कर लौटी तो अंकल जी वहां नहीं थे। देखा वे गंगा जी में उतर गए थे। मैं तेजी से नीचे भाग कर उतरी चीख पड़ी "अंकल ये क्या कर रहे है, वापस आइये बहाव बहुत तेज है" अंकल ने मुझे पलट कर देखा वे डगमगा रहे थे लेकिन मुझे आशीर्वाद देते हुए वापस जाने का इशारा करने लगे।

मैंने घबरा कर पास ही सोये सिपाही को जगाया " उठो भैया, प्लीज़ अंकल को बाहर ले आओ। " लेकिन, वो सिपाही ठंडा पड़ा था। मेरे होश गुम हो गए। मैं कहाँ जाऊँ क्या करूं समझ ही नहीं आ रहा था। उस वक्त डर और जिम्मेदारी जैसे मन की सी-सॉ (बच्चों का झूला) पर बैठी थीं। एक अपरिचित इंसान मुर्दा सामने पड़ा था और दूसरा परिचित किसी भी वक्त ...


मैं बेबस सी उस झाड़ू वाले को ढूंढने लगी। वो उपर की ओर जा रहा था। मैंने जोर से आवाज लगाई "भैया हेल्प करिए प्लीज, ये अंकल डूब जाएंगे। " उसने मुझे पलट कर देखा। और बड़े आश्चर्य में जोर से बोला। "यहां क्या कर रही हो कुकरेती मैडम !?" "मैंने अंकल की ओर इशारा करके कहा "वे डूब जाएंगे उनको पकड़ कर ले आइये प्लीज। "


वो नीचे उतरा और अपना मंकी कैप उतारते हुए, बड़ी गम्भीर आवाज में कहा "किसे ? कहाँ? "। मेरे काटो तो खून नहीं!! उसकी शक्ल, उसी मरे हुए सिपाही से मिल रही थी जिसे कुछ देर पहले हिला कर में जगा रही थी। मुझे पता नहीं कहाँ से चैतन्यता आयी और मैं अंकल की सुध छोड़ कर बहुत जोर से वहां से भागी और घर पहुंच कर जब तक अपनी रजाई में बेटे को नहीं चिपक गयी, अपने आप में नहीं आयी।

सुबह सुबह कॉलोनी में बहुत सी गाड़ियों का मजमा लगा था। अग्रवाल जी के यहां रोना धोना मचा था। सास जी ने मॉर्निंग वॉक से लौटते ही बताया कि देर रात बेचारे अग्रवाल अंकल की मृत्यु हो गयी। मैं सास जी के सामने ही बुरी तरह रोने लगी कि सब मेरी वजह से हुआ है, मैं ही ले गयी थी उनको घाट पर, मेरे सामने ही वे नदी में उतरे थे लेकिन ..लेकिन ..लेकिन..उसके आगे मेरे मुहँ से बोल ही नहीं फूटे, डर से शरीर थरथराने लगा और हिचकियाँ बंध गयी।

सास जी आंखें फाड़े सुन रहीं थीं। मेरे शरीर को बुरी तरह कांपता देख उन्होंने एक जोर का थप्पड़ मेरे गाल पर लगाया। मेरी हिचकियाँ ...सुबकियो में बदल गईं। आँसू लगातार बह रहे थे। सास जी बोली " पागल गयी हो क्या ? क्या बक रही हो?"


बेटा ये सब देख सुन रहा था, मेरे कंधे पकड़ कर बोला, "मां , रिलैक्स...अंकल को हार्ट अटैक आया था, कल रात 10 बजे उनको हॉस्पिटल एडमिट कराया था, डॉक्टर्स ने ब्रोट डेड बताया। "


महीने भर बाद सास जी ने मेरे लिए एक तावीज बनवाया। उनको एक नामी पंडित ने बताया की मेरा "औरा" बहुत निर्मल है, इसलिए आत्माओं को मुक्ति के लिए आकर्षित करता है। सास जी जो ये सब नहीं मानती वे पंडित जी के पास तब जाने को मजबूर हुईं जब तेहरवीं के भोज में अग्रवाल जी की पत्नी ने उनको बताया कि अग्रवाल जी की आखिरी इच्छा गंगा स्नान की थी।





Rate this content
Log in

Similar hindi story from Horror