पिता
पिता


पिता- क्या लिखूँ उनके बारे, पिता वो हे सोचलो घर की दिवार भले ही छत ना हो लेकिन घर होने का एहसस होती हे। जेब ना हो मुसीबत मैं पैसों की कमि नहीं होती। पिता वो हे जो सबको अपना गर्म दिमाक तो दिखते ह। मगर जब कोई मुसीबत आये तो सब अपने उपर लेते हैं। बस आज उनके बारे कुछ लिख रही हूँ।
मेरे पिता नाम जैसा उनकी पहचान भी वैसे। आज भी याद ह जब छोटे थे तब अपने कैसे मुझे ओर भैया को स्कूल ना जाने पर सजा दिये थे। तब तो गुस्सा आता था लेकिन आज भी जब उस बात की जिक्र भैया ओर मैं करते हैं तो मुस्कुराते हैं। कैसे अपने ड्यूटी जाने से पहले वॉश रुम मैं बन्द करके गये ओर ममी को बोल दीये जब तक मैं वापस ना आऊँ दरवाजा कोई खोलेगा नहीं। ओर किया ममी अपनी पति की बात थोड़ी कटेगी। फिर क्या भैया ओर मैं पुरी रात वही बंद रहे।
पापा मेरे आर्मी मैं काम करते हे। तो उनकी ड्यूटी भी शिफ्ट बाई शिफ्ट बदलते रहते हे। उसदिन भी रात को ड्यूटी थी। जब सुभ 4बजे आये ओर दरवाज़ा खोले ओर बोले फिर कभी स्कूल अफ्सेंड करने की सोचोगे तो नहीं ना अगर किये तो फिर तुम दोनों की खाना पीना बंद करदूंगा हम ने भी अछे बचो की तरह सर हिला दिया। लेकिन येहा एक बात बताना भुल ग्यी। जब पापा ड्यूटी ग्ये ममी को बोल के ग्ये थे जब मैं चला जाऊ तब दोनो को बाहर बुला के खाना खिला देना क्यु की रात को हमैं भुक ना लगे ममी झुट बोलके खाना खिलाई तुम्हारे पापा को नहीं बोलूंगी तुम दोनो खाना खालो। ओर हम दोनो भाई बहन ये सोचते की ममी कितनी अच्छी है ओर पापा कितने बुरे तो नहीं लेकिन गुस्से वाले।
मेरे पापा बचपन से अब तक गुस्सा तो दिखाए मगर गुस्से के पीछे छुपी प्यार भी जो अब जवानी मैं पता चलता हे। पापा अपनी ड्यूटी के चलते कितनी बार कितनी जगा जाते हैं लेकिन जाते वक़्त उनकी आंखोमें अपने बचौ से कुछ दिन्की दुरी का दर्द दिखता हे ओर जब वापस आते हे तो उनकी खुशी से छलकते आंखों की आंसू बता ती हे
वो कितने खुस हे। वेसे बता दू मेरे पापा बहुत स्ट्रांग ह। कभी कुछ बोलते नहीं बस कर गुजरते है। इसलिये कभी कभी हम खुस भी होते थे ओर कभी कभी दुखी भी। पापा मेरे स्कूल से कॉलेज तक हमैं गाईड़ किये हे तब सायद हंम सोचते की क्या पापा हर जगा आ जाते है।
तब हम सोचते थे पापा तो यर बस पीछे लग ग्ये हे कही भी जावो पूछताछ करने लगते इतनी देर क्यु कहा लेट हुई ओर अब कहा जा रहे हो। लेकिन उस दिन जो पूछताछ किये, उस दिन जो किसके साथ हो पूछते थे शायद सायद नहींं वाकई मेे वो आज हमें आगे बढ़ने और अपने असपस अछे लोगो की पहचान बनाने में मदद करती हे। उनकी रोक टोक सही रास्ते दिखती हे। अब हंम जो भी हे पापा की वज़े से। अब वो साथ रहने से अच्छा लागता है। हम हमेशा मम्मी को ही अपनी परवरिश की तारिफ करते हे। मगर कभी सोचना पापा ना होतो बचपन मैं घोडा बनके कोन घुमयेगा,पापा ना होतो इतनी भीड वाली मेले मैं कन्धे में बेठके पूरी मेला कोन दिखाएग। पापा ना होतो पार्क कौन लेके जायेगा।
पापा जो हर खुशी में पीछे से सामिल होते हे क्यूंकि हम हमेसा खुस रहे। हमारी हर खुसी खरीदने के लिये अपनी पूरी जिन्दगी मेहनत मैं गुजारते है। उनकी की ग्यी मेहनत हमारी भविष्य की खुशी खरीदती है। पापा कड़कती धूप है तो पेड़ों की शीतल छाया भी। उमड़ता जुअला तो जंगल मैं बहती झरने की शीतल पानी। उनको पूरी जिन्दगी यही सोचने में बीत जाती हे मेरे बच्चे हमेशा खुश रहें।
ये हे पापा मेरे। आज रिटायार्ड आर्मी ऑफिसर है। मुझे पता है पापा सब के ऐसे सोच रखते है। उन सभी पापा को मेरा प्रणाम जो खुद को पत्थर दिखाके अंदर मॉम बने रहते है। हर किसी के पापा महान है। सब बच्चो को ये समझना चाहिए उनकी कद्र करनी चाहिए।
आरे मेने नाम तो बताया नहीं किसका ?
पापा का श्रीमान नारायण चंद्र रक्षा रिटायर आर्मी ऑफिसर
और मैं उनकी बेटी ज्योति रक्षा, ये थी मेरे पापा और मेरी कहानी।