Sweety Raxa

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स्त्री

स्त्री

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स्त्री क्या लिखूँ उनके लिये। स्त्री एक माता है, स्त्री एक बेटी, स्त्री एक पत्नी है, स्त्री एक बहू है, स्त्री एक प्रेमिका है स्त्री कभी एक सहनशीलता की मूरत है।


जब वो माता होती है तो अपने बच्चों की हर फिकर को अपने उपर लेती है। जब उसके बच्चों को भूख लगे वो बिना बताए समझती, वो समझती है अब उसका बच्चा भूखा है तभी तो बिना बोले उसकी मन पसंद पकवान बना के रखती है। बच्चों को खुशी महसूस करवाती है उनकी हर उस जंग मे परछाईं की तरह साथ रहती है। जब पहली बार स्कूल जाते वक़्त साथ देती है समझती है ये जिन्दगी का पहला पड़ाव है अभी और रास्ते उसको चलना है। जब वो बड़ा हो के जिन्दगी को जानेगा। जब हर राह में माता हो के साथ देती तब जब वही बच्चा जिन्दगी की जंग जितने के बाद अपनी माता को भूल जाता है तभी भी वो अपनी बच्चों का साथ नहीं छोड़ती।


स्त्री जब बेटी होती है। हर घर में बेटी मन मौजी होती है उनको कोई भी चीज की फिक्र नहीं होती, क्या खाना क्या पहनना और कब सो के उठना, क्यूँ की हर बेटी अपने घर की पारी होती है। वो जानती है जब तक घर मे है बहुत सुकून है। जब वो अपने बचपने से बाहर आयेगी उसको दूसरी जगह यानी ससुराल भेज दिया जायेगा, ये दुनिया का दस्तूर है। चाहे आप जॉब भी करती हो या कोई बड़ा बिजनेस भी करो मगर बेटी को एक दिन विदा हो के दूसरे के घर जाना होगा। अपनी माता पिता के लिये अपने संस्कारों के मान की ख़ातिर, बेटी जो होती है।


स्त्री जब पत्नी होती है। वो चाहे नई नवेली दुल्हन क्यो ना हो उसको अपना पत्नी धर्म निभाना ना है, सुबह जल्दी उठना है पति से ससुराल वालो से पहले फिर घर का काम साफ सफाई , खुद नहा धो के पूजा पाठ करना। पति के लिये नाश्ता बनाना उनकी ऑफ़िस की लंच बॉक्स तैयार करना फिर उनके कपड़े तैयार करना जूते से लेकर गाड़ी चाबी तक याद दिलाना एक पत्नी की ज़िम्मेदारी, अच्छे से हो उसकी ज्यादा फिक्र खुद करना ये एक स्त्री जो पत्नी होके करती है।


स्त्री जब बहू है। जब वो अपनी ससुराल आती है उस वक़्त से वो अपनी जिम्मेदारी सम्भाल लेती है एक बहू के सारे फर्ज पूरे करने की कोशिश करती है।अपने सास और ससुर का खयाल ,घर मे ननद, देवर के मन को ले के चलना, अगर बड़ी बहू तो जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। छोटी हो तो नटखट और थोड़ी शैतानी, मगर स्त्री बहू हो के भी अपनी किरदार को अच्छे से निभाती है, क्यो की उसको अपने ससुराल वालो की फिक्र होती है जिस घर मे ब्याह कर आयी अब वो उसकी जिन्दगी है उसको अच्छे से बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी है।


स्त्री जब प्रेमिका है। जब वो प्रेम करती है बस उस इन्सान को जो उसको समझ सकता है, उसकी कद्र करता है उसकी फिक्र करता है, उसके होने ना होने से उसके मन पे असर हो वो उस इन्सान को बस ये हक़ देती है। जिन्दगी अब उसके साथ खुश है। वो है तो सारी ख़ुशी का मतलब होता है, उसके ना होने से दुनिया बे रंगी है वो बस एक ऐसे इन्सान को अपना प्रेमी समझती है उसको अपना सब कुछ निछावर करती है ,अपने प्रेम मे किसी तरह का समझौता नहीं करती, हर वो चिज करती जिसे वो अपने प्रेमी को समझा सके वो सिर्फ उसकी ही प्रेमिका है, पूरे तन मन से उसका होना चाहती है देश दुनिया उसके कोई मतलब नही। अब बस वो एक प्रेमिका है।


हम स्त्री के अनेक रुप देखते हैं फिर भी आज हम उनको वो हक़ नहीं दे पाते, कभी नसेड़ी बेटा पति बनके उनपे जुल्म करते है, कभी अपना भाई बनके बहन पे शक करते है, तो कभी लालची सास-ससुर बनके दहेज के लिये प्रताड़ित करते है, कभी कभी वो पति बन जाते हैं जो उसकी लम्बी उमर की सलामती माँगने वाली पत्नी को छोटी छोटी बातों पे सतते है, प्रेमी उनके तो हजारों नखरे होते हैं। कहाँ बिजी हो किसके साथ थी, मेरे मैसेज क्यो लेट देखा फिर भी मन ना भरे तो दूसरों के साथ कम्पैर करके उस लड़की की चरित्र को ही सवालों के घेरे मे रख देते है।


स्त्री ये सब सहती है क्यूंकि उसके लिये हर वो रिश्ता महत्वपूर्ण होती है। सब को अपने साथ ले के चलना चाहती है, सोचती है सब खुश रहे, कोई दुखी ना हो लेकिन होता कुछ और है।

हम दुर्गा, काली, सरस्वती देवी की पूजा करते है सच बात तो ये भी है ना वो भी तो स्त्री है फिर हमारे घर मे रहती स्त्री को क्यो नहीं पूजते

पत्नी की सम्मान क्यो नहीं करते, बेटी को उसका हक़ क्यो नहीं देते, एक प्रेमिका को अपनी जिन्दगी मे शामिल कर ख़ुशी के कुछ पल क्यो नहीं देते ?

क्या सच मे स्त्री एक मूरत मे ही जनी जाती है पत्थरों में पूजी जाती है। रक्त मांस वाली स्त्री सिर्फ कहानियाँ है।



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