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Sweety Raxa

Tragedy

3.6  

Sweety Raxa

Tragedy

कोख

कोख

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आज भी यादहै मुझे वो बात जब हम दो साल पहले वहां किराये के घर में रहते थे ।हमारे घर के ठीक सामने ही एक ओर घर था जहां आये दिन कुछ ना कुछ बहाने लड़ाई की आवज सुनाई देती थी ।साथ साल पहले वो उस घर में शादी कर आई थी सरिता नाम की लडकी देखने में सीधी साधि बिल्कुल भोली सी थोड़ी डरी डरी क्युकी उसका ससुराल जो है।


जब से आई है हमेंशा हम सब उसको सर पे पल्लू ओर चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान देखा है वेसे वो सब से जादा बातचीतत नहीं करती लेकिन कोई सामने से बात करे तो खुल के मुस्कुराते हुए बात करती है ।छोटे गांव से तो थोड़ी सहमी-सहमी बात करती ।इन साथ सालो में कभी किसी के घर तक नहींगई ,ना पडोसी के नहींमोहल्ले में किसी से बात तक नहींकी ।


आज फिर उसको घर में सुनाया जा रहाहै इतने साल हो गये एक बच्चा नहीं जनी।क्यु हमेंशा मौज़ मस्ती में रहने की सोचीहै।ये ताना उसके ससुराल वाले देतेहै जब भी कुछ थोड़ी बहूत गलती या कोई काम देर हो जाये तब ।लेकिन वो भी क्या करे उसने हर जगह जा के डॉक्टर को अपनी समस्या बताया जांच भी कराया लेकिन कही कुछ हो नहीं रही तो उसमें उसकी गलती थोड़ी है।उसने अपने पति को भी कहा सुमित आप भी अपनी जांच करालो लेकिन सुमित उसकी बात सुनता नहीं हमेंशा की तरह बोल्देता की मुझको कोई प्रोब्लम नही है।चलो मान लिया उसको नही है कोई प्रोब्लम तो क्या सरिता को है मगर यहाँ तो उसको भी डॉक्टर ने कुछ नहीं बोला फिर सरिता को ही क्यु ताना सुन ना पड रहा है।


अब तो उसकी बड़ी जेठानी भी सुनाती है ।सिर्फ पढ लिखने से कुछ नहीं होता अपनी गृहस्ती भी देखनी होती है,उसकी बड़ी जेठानी के दो बच्चे हैं शायद इसलिये वो भी ताने देती है।सरिता उन सभी की बातों से कभी कभी टूट जाती है।सुमित भी तो उसके जज्बातो को नहीं समझ रहा ।


क्या एक औरत के लिये कोख इतना जरुरी है।क्या हम कोई अनाथ बच्चे को गोद नहीं ले सकते या कोई ऐसा बच्चा जो की खाने पीने की समस्या से जूझ रहा हो ओर उसको हम अपना के क्या अपना नहीं बना सकते ।क्यु बस इसलिये ना की उसके शरीर में हमारा खुन नहीं बस इसलिये ।सरिता अपने परिवार को सलाह ये भी दि थी चलो कोई बचागोद लेते हैं हम उसको अपना नाम देके दुनिया में खुशहाल जिन्दगी देते है।लेकिन नाही उसका ससुराल वले ना ही उसका पति सुमित ईस बात को सुने उनको तो बस अपना खून की औलाद चाहिए।


अब सरिता उन सब की ताने सुनने की आदत डाल दी है क्यु की उन सब ने बस यही कहा बच्चा होतो खुद का नहीं कोई दुसरा के बच्चा लेना पता नहीं कोन सी जाती का किस इंसान का होगा ये कह कर सरिता को मां होने से ओर उसकी खोक सुनी होके रख दिया ।क्या ऐसा नहीं हो सकता की सरिता की खोक भी सुनी ना हो ना ही उसकीमां बन ने का बस उसके ससुराल वालो की एक हां जो सब ठीक कर सकती है।


आज समाज में यही मानसिकता की वजह से सरिता की तरह कितनी माओं की खोक सूनी रहती है ओर उनकी जिन्दगी तानो से भरी होती है ओर वो बच्चे जो अनाथ होते हैं उनकोमां बाप का प्यर नसीब नहीं होता। इक्सीवीं सदी होने के वावजुद इन्सान वही पुरानी जिन्दगी जीना चाहता है।।


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