Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

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Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

पिता हूँ ,लेकिन पुरुष भी हूँ !

पिता हूँ ,लेकिन पुरुष भी हूँ !

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कू कू कू आधी रात को कराहने की आवाज़ आ रही थी। गली में घूमने वाली चितकबरी कुतिया ब्याहने वाली है। उसे शायद प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी है। अभी तो कुछ  घंटे का दर्द सहना पड़ेगा ,फिर उसे दुनिया भर की ख़ुशी मिल जायेगी। मृण्मयी के पास सोई निवेदिता सोच रही थी। तब ही उसे कमरे के दरवाज़े के पास एक साया नज़र आया। 

आज भी श्रीकांत अपनी 11 वर्षीय बेटी मृण्मयी के कक्ष के बाहर परदे की ओट में कुछ देर खड़े रहे ,फिर धीरे से उसके बिस्तर के पास आकर खड़े हो गए। श्रीकांत की पत्नी निवेदिता अपनी बेटी के साथ ही सो रही थी। पिछले कुछ दिनों से ऐसा ही हो रहा था ,लेकिन निवेदिता सब देखकर भी चुपचाप सोने का बहाना करके लेटी रही। 

"आज शायद श्री ,मनु के सिर पर स्नेह से हाथ फेरेंगे और उसे अपने गले से लगा लेंगे। ", निवेदिता मन ही मन सोच रही थी। 

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और श्रीकांत कुछ मिनटों बाद जैसे आये थे ;दबे पाँव वैसे ही लौट गए। आज निवेदिता का सब्र का बाँध टूट गया था। इस वक़्त जब मनु को अपने पापा की इतनी जरूरत है ,तब श्री उससे ऐसे दूरी कैसे बना सकते हैं। मेरे लिए भी तो सामान्य व्यवहार करना कितना मुश्किल है ;इतने दिनों बाद भी मनु कितनी ही बार रात को चिल्लाकर उठ जाती है। उस घटना को 2 महीने हो गए,मैं भी कहाँ भूल पायी हूँ। लेकिन मनु के लिए भूलने की कोशिश कर ही रही हूँ। मनु की तो कोई गलती ही नहीं थी ,मुझे कल सुबह श्री से बात करनी ही होगी। ऐसा सोचते हुए निवेदिता की आँख लग गयी थी। 

अगली सुबह निवेदिता ने सबसे पहले मनु के साथ नाश्ता किया और उसके साथ पेंटिंग करने लगी। कुछ देर में मनु पेंटिंग करने में तल्लीन हो गयी थी। तब निवेदिता ने श्रीकांत को नाश्ते के लिए आवाज़ लगाई। 

"यह चितकबरी इतनी बेचैन क्यों है ?कल रात से ही कराह  रही है। क्या हुआ ?",श्रीकांत ने टेबल पर बैठते हुए पूछा। 

"प्रसव पीड़ा में है। कुछ देर में सब ठीक हो जायेगा। ",निवेदिता ने ज़वाब दिया। 

"मनु ने नाश्ता कर लिया ?",श्रीकांत ने  पूछा। 

"तुम खुद क्यों नहीं पूछ लेते ,श्री ?",निवेदिता ने नाराज़गी जताते हुए कहा। 

"ठीक है ,तुम कह रही हो तो कर ही लिया होगा।  और तुमने ?", श्रीकांत ने बात पलटने के लिए कहा। 

"मैंने भी मनु के साथ ही कर लिया। आजकल मनु के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशिश करती हूँ। लेकिन तुम तो उससे दूर होते जा रहे हो। याद भी है ;तुमने उसे लास्ट कब गले लगाया था ?",निवेदिता ने कहा। 

"निवी ,मैं भी मनु से बहुत प्यार करता हूँ। मेरी बेटी है वो। तुम तो मुझे अच्छे से जानती हो। ",श्रीकांत ने कहा। 

"श्री ,लेकिन अब कभी -कभी लगता है कि मैं तुम्हें जानती ही  नहीं । तुम अपनी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो। भूल जाओ उस हादसे को। ",निवेदिता ने कहा। 

"निवी ,मुझे अपनी बेटी से आँखें मिलाने में शर्म आती है। जिस हैवान ने उसके साथ यौन हिंसा की ,वह मेरी ही जाति का कोई पुरुष था। मुझे अपने ऊपर गुस्सा आता है कि मैं उस दिन अपनी बेटी को बचा क्यों नहीं सका ?मुझे अपने आप से नफरत होती है कि मैं इतनी लापरवाही कैसे कर सकता था ,जबकि मामला मेरी बेटी का था,मेरी मनु का था। ", बोलते -बोलते श्रीकांत हाँफने लगा था। 

"श्री ,तुम्हें उसे जताना होगा कि सभी पुरुष उस नीच जैसे नहीं होते। दुनिया में तुम्हारे जैसे अच्छे पुरुष भी हैं ,वाकई में ऐसे हैवानों से ज़्यादा हैं। तुम्हें उसे विश्वास दिलाना होगा कि वह पुरुष पर भरोसा कर सकती है। अगर तुम उससे दूर रहोगे तो वह इस हादसे से कैसे उबरेगी। वह ताउम्र पुरुषों से नफरत करती रहेगी। ",निवेदिता ने पानी पीने के लिए कुछ देर का विराम लिया। 

फिर श्रीकांत का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली कि ,"उस दिन तुम्हारी कोई गलती नहीं थी; तुम्हें कहाँ पता था कि तुम ट्रैफिक जाम में फंस जाओगे। तुम सिर्फ १० मिनट ही तो देर से पहुंचे थे। १० मिनट में ही मनु की दुनिया बदल जायेगी ,ऐसा न तो तुम ही सोच सकते थे और न कोई और।  "

"निवी ,मुझे क्या पता था कि फ़ोन की बैटरी १०० % चार्ज न होने की इतनी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। तुम मुझे कितनी बार बोलती थी कि फ़ोन की बैटरी हमेशा १००% चार्ज किया करो। मेरी लापरवाही  की कीमत मेरी मासूम बेटी को चुकानी पड़ी। फ़ोन की बैटरी डिस्चार्ज होने  की वजह से ,मैं मनु की क्लास टीचर को कॉल नहीं कर सका।  ",श्रीकांत ने टेबल पर मुक्का मारते हुए कहा। 

"वही मासूमियत तो हमें वापस लौटानी है। हमें उसके साथ पहले जैसा होना है। उस हैवान को तो उसके किये की सजा मिल ही जायेगी। तुम क्या ,कोई भी यह नहीं सोच सकता था कि 10 मिनट में हमारी मनु की ज़िन्दगी इतना बदल जायेगी। । तुम अपने आपको दोष देना बंद करो। ",निवेदिता ने श्रीकांत के दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा। 

"श्री ,सुनो। मैंने भी तो अपने आपको बदला है। जब से होश सम्हाला ,तब से यही सुनती आ  रही थी कि परिवार की इज़्ज़त लड़कियों के हाथ में है। जान चली जाए ,लेकिन इज़्ज़त नहीं जानी चाहिए। उस दिन जब मैंने मनु को तड़पते हुए देखा था ,तब मेरे जेहन में यही ख्याल आया था कि मेरी बेटी की तो ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी। अब यह जी कर क्या करेगी ?",निवेदिता की आँख से आँसू बहकर श्री के हाथों पर गिर गया था। 

"यह तुम क्या कह रही हो ? तुम तो उस दिन से आज तक ,मनु के साथ चट्टान के जैसे खड़ी रही हो। ",श्रीकांत ने निवेदिता की तरफ चौंककर देखा। 

"श्री ,मुझे माफ़ कर देना ;एक बार तो मेरे दिल में अपनी मनु की जान लेने का भी ख्याल आया था। अपने और परिवार के सम्मान के लिए अपनी बेटी की जान लेने का ख्याल। लेकिन श्री ,तब ही मैंने सोचा कि गलती मनु की नहीं है। गलत तो हमारी सोच है ,जो अपने सम्मान को अपने परिवार की औरतों की योनि से जोड़ती है। औरत योनि से इतर भी कुछ है। मेरी बेटी पर यौन हिंसा हुई थी ,वह हिंसा की शिकार हुई ,अतः दोषी को सजा मिलनी चाहिए। सम्मान और इज़्ज़त तो दूसरे की इच्छा को महत्व न देने वाले हिंसक व्यक्ति का जाना चाहिए। ",निवेदिता हाँफने लग गयी थी। 

"निवी ,मैं तो अपनी उलझनों में यह  भूल ही गया था कि तुम पर क्या बीती होगी। लेकिन अब सिर्फ हमें अपनी मनु के लिए सोचना है।  ",श्रीकांत ने निवेदिता को गले लगाते हुए कहा। 

 चितकबरी कुतिया का कराहना कम हो गया था। निवेदिता ने खिड़की से पर्दा हटाकर देखा तो मारे ख़ुशी के चिल्ला उठी ," श्री ,देखो ,कितने प्यारे -प्यारे पिल्ले हैं। मनु देखकर कितनी खुश होगी?"

"रुको ,मैं मनु को लेकर आता हूँ। वैसे हमारी शैतान कहाँ है ?",श्रीकांत ने पूछा। 

श्रीकांत मनु को बाहर चितकबरी के पास लेकर गए। मनु और श्रीकांत को साथ में हँसते -मुस्कुराते देखकर ,निवेदिता आज अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रही थी। 


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