फूलो की याद
फूलो की याद
अभी अपनी गाडी चलने लगा और श्रीमान समीर भी अपने जगा पे बैठ गये. हात मे जो फूलो की गुलदस्ता था उसे बगल की मेज पे रख दिए. ये गुलदस्ता उससे आज यहाँ अपनी सेमिनार के शुरुआत मे मिला. बहुत खूबसूरत है. उनके साथ जो आये थे वो लोग साथ मे इस गुलदस्ते को ले के आये थे, जिसे समीर भूल गये थे. थोड़ी हलकी सी मुस्कुरा के साथ फिर कुछ पुराने यादें उनकी ताज़े होने लगी.
बचपन मे उनके घर के आँगन मे कुछ रंग बेरंग फूलों के पौधे थे. रोज पिता या माता उनका ख्याल रखते थे. पानी देने से लेकर मिटी को ठीक करना, खाद डालना और सूखे पतों को हटाने तक.
और उसमे खिलतब हुए फूलों को देख के बहुत ख़ुश होते थे. पर जब दोस्तों के साथ खेलते खेलते समीर से कुछ पौधे गिर जाते या फूल टूट जाते तो बहुत डांट पड़ती थी. कभी कभी तो कलियों को तोड़ के हाथ ने छुपाया करते थे. और कभी फूलों मे बैठते भमरा को देख के चुपके चुपके उसपे बार करते थे, भामारा तो उड़ जाता पर कुछ फूल, पते और कालिया टूट के नीचे गिर जाते. फिर माँ की वही डांट और फूलों का आदर करने की सीख सुनने को मिलती.
अभी थोड़ा हल्का हसीं के साथ फिर एक बार समीर लौट चले उनकी जवानी के दिन को. कभी कोई पूजा या कोई त्योहार या शादी के दिन कैसे फूलों से सजावट होता था. बहुत खूबसूरत पल होता था. अभी भी याद है रानी (जो अभी समीर की पत्नी है )को जब पहली बार प्यार का इजहार किया था तो कैसे लाल गुलाब की गुलदस्ते दे के किया था और रानी को भी बहुत अच्छी लगी थी.
फिर उन दोनोकी शादी हो गई. और सुहागरात की दिन फूलों मे बिस्तर सजी थी. कितनी खुशबू और सुंदर लगता. लगता था जैसे उस पल की खुशिओं को बढ़ाने के लिए सारे फूलों ने अपनी बलिदान दिए थे.
और जब उनके माता पिता की निधन हुआ, थोड़ी उदास हो के फिर समीर सोचने लगे. तब फूलों की मलाओं के साथ उनकी अंतिम यात्रा की तैयारी हुई थी. उस वक़्त लगता था जैसे हमारी उस दर्द की घड़ी मे सारे फूल ताज़े तो थे पर उनकी चमक दिख नहीं रहा था. जैसे वो लोग भी उस सदमे को सहन नहीं कर पा रहे थे. अभी भी माता पिता की तस्वीर मे फूलों की माला चढ़ाते है पर उसमे खुशी कम और दर्द ज्यादा नजर आता है.
ये फूल सच मे कितने समझदार है. कुछ बोल नहीं पाते पर समझ लेते.
अब थोड़ा सीधे होके बैठके एक बार उस गुलदस्ते को देखे और रीना की बात याद आया.
जब वो उनकी छत के ऊपर कुछ फूलों की पौधे लगाने की जिद की थी और समीर बोले थे, उसका ख्याल कौन रखेगा. और अभी और बहुत कुछ करने का है. कियुं की रीना भी एक अध्यापिका है. दिनों के पास समय की कुछ पाबंधिया है. रीना की फूलों की बारे मे तर्क अभी लगता है समीर को समझ मे आरहा है.
सिर्फ वो सुंदर नहीं लगते, वो खुसबू बांटते रहते, वो ज़िन्दगी के हर पल, खुशी या दुख, सबमे साथ रहते है. वो फूल खुशियों के साथ अपनी सम्मान के भी एक हिस्सा बन जाते.
पर्याबरण की रख्या भी करते.
फीर अपनी सर को हिलाते समीर रीना को अपनी मोबाइल से संपर्क किये और बोले, " मे काल सबेरे पहुँच जाऊंगा और पूरदिन हम दोनों मिलके तुम्हारी छत के ऊपर फूलों की पौधे लगाएंगे. हम दोनों मिलकर उसके ख्याल रखेंगे. बाकि सब मिलके बताऊंगा ".
ये सुनके रीना थोड़ी आश्चर्य हुई और हस भी दी और बोली," फूलों की यादों " मे है अब जनाब....