Manoj Kumar

Romance Thriller

2  

Manoj Kumar

Romance Thriller

फूल से अच्छा कुछ भी नहीं

फूल से अच्छा कुछ भी नहीं

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289


सुबह करीब 6 बजे सोकर उठे ओर फूलों के बगीचा के तरफ रवाना हुए। वहीं रंग- बिरंगे फूल खिले हुए थे। हमारा मन उसी तरफ आकर्षित हुआ। हमें देर हो रही थी कॉलेज जाने के लिए पर क्या करें कॉलेज तो 9 बजे खुलता है,, "तब भी 2 घंटे का समय था हमारे पास समय मिलते ही हम वहां पर ठहर गए। सुंदरता की नजारा देखने लगे। भंवरा वहां फूलों के पास रहकर मजा कर रहा था। और हम भी सोच रहे थे, की फूलों के साथ- साथ इनको भी देखें।हमारा मन ऐसे जगह पर पहुंच गया की जैसे लग रहा हो भंवरा हम ही हैं।

गुलाबी फूलों की डाली कोमल कलियां लचकती हुई, ओर मौसम भी सुहाना था। फूलों को देखते- देखते हमें देर हो गई, लेकिन क्या हुआ हम माने ही नहीं मैने सोचा देर हो गई है तो हो जाने दो हम आज फूल तोड़ के ही ले जायेंगे। तभी फूल के पौधे के पास पहुंचे तभी अचानक क्या हुआ। वहां जिसका बगीचा था फूलों का वो आदमी वहां पहुंच गया।

हम वहां उसको देखकर झाड़ी में छिप गए । उसने यहां वहां देखा और देखने के बाद अपने घर के तरफ रवाना हो गया। जब वो चले गए तब मै झाड़ी से निकल कर गए पौधे के पास जिस पौधे में सबसे सुंदर मनोहक फूल लगा था। वहीं तोड़े और अपने घर के तरफ लौट आए।


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