Manoj Kumar

Drama Horror Action

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Manoj Kumar

Drama Horror Action

ख़ून से लिखी चिठ्ठी

ख़ून से लिखी चिठ्ठी

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स्वेता की उम्र भी हो गई है। शादी करने का उनके पिता जी काफी चिंतित में रहते हैं। तभी स्वेता की मां पूछती हैं, "हे जी आप क्या सोच रहे हो। चार पाई पर बैठ कर स्वेता के पिता बोलते हैं।, " नहीं जी कुछ नहीं बस यही सोच रहे थे कि बेटी की उम्र भी हो गई है । शादी करने का अब क्या होगा, पैसा कहां से इक्कठा करे। स्वेता के पिता काफी देर तक सोचते हैं और बोल पड़ते हैं। जो किए हम दोनों के बीच में बाते उस बात को वहीं पर रहने दो।" बेटी को कुछ मत बताना कि पिता जी के पास पैसा नहीं है। और उम्र भी हो गई शादी करने की स्वेता की मां बोलती है ठीक है जी मैं कभी भी नहीं बोलूंगी।

"इतनी सी बातें करने के बाद स्वेता कि मां रसोई घर में चली जाती है, और स्वेता के पिता जी खेत के तरफ चले जाते हैं।" तभी स्वेता कॉलेज से लौटकर घर आती हैं। और बोलती है, " मां नमस्ते ! क्या बना रही हो मां तब! उनकी मां बोलती है, आओ बेटी आज खीर बनाई है। स्वेता कहती हैं अच्छा मां तब तो मैं चाव से खाऊंगी भर पेट मां के हाथ से बना खीर। तभी स्वेता की मां कहती हैं, "ठीक है बेटी आज जितना मर्जी उतना तुम खाना।

तभी स्वेता कहती हैं क्यों मां आज क्या है? कोई त्योहार है क्या? मां कहती हैं "नहीं बेटी वैसे तो त्यौहार नहीं है लेकिन आपका जन्म दिन जरूर है। उसी अवसर पर हम आज पकवान बनाए है।" स्वेता खीर थाली में परोसती हैं और खाने लग जाती हैं। तभी मां बोलती हैं , " बेटी आज तुम्हारा जन्म दिन है आप तो सबसे पहले खाना शुरू कर दिया। स्वेता कहती हैं, नहीं मां भूख लगी थी जोर से तब क्या करें। तभी स्वेता के पिता खेत से लौट आते हैं। और बोल पड़ते हैं, बेटी! तू आ गई कॉलेज से आज तो बहुत खुशी का दिन है। आज तुम्हारा जन्म दिन है, मैं अभी बाज़ार जाता हूं। और बहुत सारी मिठाइयां लाता हूं। तुम तैयार हो जाओ ।

"स्वेता कहती हैं ठीक है पिता जी मैं अभी तैयार होती हूं। स्वेता के पिता जी बाज़ार जाते है, और वहां कुछ गुब्बारे और बहुत सारी मिठाइयां लेकर आते हैं। देखते ही स्वेता खुश होकर बोल पड़ती है। वाह! पिता जी बहुत सारी मिठाइयां, आज हम खूब खाएंगे। स्वेता को देखकर माता - पिता खुश हो जाते हैं।। और सभी घर को खूब सजाते हैं। स्वेता चाकू उठाती है और केक को काटती है। काटने के बाद अपने माता- पिता को खिलाती - पिलाती है। और अपना भी खा लेती है।

" तभी स्वेता के पिता जी बोल पड़ते हैं, बेटी आज इतना खुश है क्या बताएं, आज हमारी स्वेता का जन्म हुआ है।


 5 वर्ष बाद।

5 वर्ष बाद जब स्वेता की उम्र नजदीक हो गई तब शादी करने के लिए स्वेता के पिता निकलते हैं, तभी स्वेता बोलती है, पिता जी आप कहां जा रहे हो 2 - 3 दिन से हमारी शादी तो नहीं ढूंढने जा रहे हो। स्वेता के पिता बोलते हैं हां! बेटी आप की उम्र हो गई है शादी करने के लिए। ये बात सुनकर स्वेता के मन में थोड़ा दुःख होता हैं कि मैं शादी नहीं करना चाहती हूं। तभी भी पिता जी परेशान करते हैं। हमारा मन होता तब मैं कर लेती फिलहाल अभी मेरा मन नहीं है।

इतने में स्वेता के पिता जी बोल पड़ते हैं, बेटी! स्वेता स्वेता आप क्या सोच रही हो आप ठीक तो हो। स्वेता कहती हैं हां पिता जी मैं ठीक हूं पर हमारी शादी क्यों करना चाहते हो, मैं तो अभी नहीं करना चाहती हूं।" तभी बरामदे में बैठी मां बोल पड़ती है बेटी ये सब प्रकृति का नियम है । शादी करना पड़ेगा हर इंसान के उम्र हो जाने पर शादी कर दिया जाता हैं। आप की उम्र हो गई है। तो शादी करना ही पड़ेगा न , स्वेता कहती हैं वो बात ठीक है मां लेकिन मेरी इच्छा अनुसार ही होगा लड़का मैं चुनूँगी।" मां बोलती है ठीक है लड़का आप ही चुनाव करो।

बेटी तब खुश होती हैं, तब! स्वेता के पिता निकल पड़ते हैं। जाकर एक गांव में पहुंचते हैं। और बातचीत चलती है , कुछ देर तक, तभी लड़का के पिता रिश्ता को राजी कर लेते हैं। और बोल पड़ते हैं ठीक है, जहां आप बताओ वहां आप के बेटी को देखूं, स्वेता के पिता बोलते हैं, ठीक है घर ही आ जाओ देखने के लिए, इनमें कोई दिक्कत नहीं है। अगले दिन सोमवार को तीन लोग पहुंच जाते हैं। स्वेता के घर स्वेता को देखने। स्वेता के पिता बहुत खुश होते हैं कि हमारी बेटी का रिश्ता पक्का हो जाएगा।

तभी लड़का के माता- पिता बोल पड़ते हैं। भाई साहब आप की बेटी बहुत अच्छी है, लेकिन बेटी के नाम......? बेटी के पिता जी बोल पड़ते हैं स्वेता नाम है। तभी लड़का के माता- पिता दहेज के बारे में पूछते हैं कि क्या दोगे शादी में, बेटी के पिता जी बोलते हैं देखिए भाई साहब, मेरे पास कुछ नहीं है, है वो बस मेरी बेटी स्वेता है और इसके अलावा कुछ नहीं है। लड़का के माता- पिता ये बात सुनकर नाराज हो जाते हैं। और बोलते हैं ठीक है मैं अपने बेटा का शादी कर लूँगा , पर बेटी तुम्हारी अच्छी तरह रहे हमारे घर में यहीं कहना चाहता हूं। आपकी बेटी अच्छी है और मेरा बेटा भी पसंद करता है।, "और ! एक बात भाई साहब हम अभी वैसे ही देखे है थोड़ा सही थोड़ा गलत मैं एक सप्ताह बाद सभी लोग आएंगे, आप के बेटी देखने। तभी स्वेता के पिता जी बोलते हैं ठीक है जैसा हो सके वैसा करो।

एक सप्ताह बाद जितने भी रिश्तेदार होते हैं सभी लोग स्वेता के घर स्वेता को देखने आते हैं। साथ में लड़का भी आता है क्योंकि शादी उसी की तो होनी है। स्वेता के पिता लड़का का नाम पूछते हैं। लड़का का नाम बताते हैं राजू है। उसी क्षण पंडित अपना पोथी पत्रा खोलकर दोनों लोगों का कुंडली मिलाते हैं। पंडित जी कहते हैं- कुंडली अच्छी है और रिश्ता भी अच्छा है। सभी लोग लड़की से दोबारा मन की बात पूछते हैं कि रिश्ता मंजूर है या नहीं, स्वेता अपनी मां के पास जाती है और कहती हैं कि मां मैं शादी नहीं करूंगी अभी दो वर्ष, तब! स्वेता की मां बोलती है पूरे परिवार की बेइज्जती करोगी क्या? पहले बता देती अब इतने लोग आ गए हैं। आने में उसके काफी धन दौलत खर्च हुआ होगा। और हमारा भी खर्च हो गया है। स्वेता कुछ बाते सोचकर राजी हो जाती है कि मैं शादी करूंगी। लड़का के तरफ से सभी लोग खुश हो जाते हैं। और स्वेता के माता- पिता भी खुश हो जाते हैं लेकिन स्वेता का चेहरा अभी भी उदास है। लड़का के पिता पुनः बोल पड़ते हैं अब भाई साहब दो सप्ताह बाद आना बरिचा देने। बरिचा  देने के लिए जितने भी स्वेता के घरवाले होते हैं। एक गाड़ी में सवार होकर चल पड़ते हैं। वहां जाते हैं । लड़का के घर सभी लोग, जो परंपरा होती है सब करते हैं।


एक महीना बाद स्वेता कि शादी होती है। दहेज में स्वेता के पिता कुछ नहीं दे पाते हैं। स्वेता काफी चिंतित रहती हैं। जब कोई भी बात पूछती हैं घरवालों से तब वो सब लोग चिड़ाने लगते हैं कि दहेज में तुम्हारे पिता कुछ नहीं दिए हैं। जो इस तरह बात करती हो। स्वेता काफी उदास में रहती हैं। शादी के एक बाद से ही उसके घर में झगड़ा चलता रहता हैं। तभी स्वेता अपने पिता जी के पास फोन करती है और सारी बातें बताती है, की पिता जी आप जो दहेज नहीं दिए हैं। उसी से लोग ताना मारते हैं। स्वेता के पिता सारी बातें समझ जाते हैं लेकिन वो क्या कर ही पाते, न ही उनके पास कुछ धन था कि कुछ दहेज में खरीद कर दे सकते हैं।

तभी स्वेता की मां बोलती है, जी आप इतना क्यों उदास हो, अभी स्वेता का फोन आया था। क्या हुआ? तब सारी बातें स्वेता के पिता जी बताते हैं। और यहां स्वेता के घर झगड़ा होता है। स्वेता के पति मारते- पीटते हैं, स्वेता को , स्वेता की मोबाइल भी तोड़ देते हैं। तभी उठती हैं गुस्से से और सारी बातें चिट्ठी पर लिखती हैं। गांव के डाकिया को देती हैं। उसके बाद वो बरामदा के सामने एक कमरा होता है । जिस कमरा में वो रहती थी। उसी में जाकर रात को फांसी लगा लेती है।

जब सुबह होता हैं तब सांसु मां बुलाती है, पर क्या स्वेता जिंदा हो तब वो बोले न, दरवाजा खोला जाता हैं। गांव के सभी लोग इकट्ठा होते हैं। पूछताछ जारी रहती हैं। कुछ पता नहीं चलता है किसने ये कांड किया और क्या हुआ। तभी अचानक से पुलिस आ जाती है और साथ में उनके माता- पिता और सारी बात पुलिस पूछताछ करती हैं। करने के बाद दहेज प्रथा के तहत धारा लगाकर सभी परिवार को कैद खाना में बंद कर देती है।



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