होशियार चींटी
होशियार चींटी
वर्षा का महीना था। काले बादल छाए हुए थे। तभी एक काली चींटी अपने घर से बाहर निकली और सोचने लगी की ये ऊपर कौन सी काली चादर है जो लहरा रही है। तभी अचानक जोर- जोर से गरजने की आवाज आने लगी । काली चींटी घबराई और घबराकर अपने घर में चली गई। वहां भी इसी तरह आवाज चींटी के कान में पड़ी, चींटी डर के मारे कापने लगी। और वो सोचने लगी की कहीं मेरा घर न गिर जाए। तभी कुछ ही क्षण में आंधी ओर तूफ़ान की आवाजे सूं सूं करने लगी। चींटी अपने बच्चे को अपने घर से निकाल कर कहीं दूर चल दिए। उसको जाते वक्त रास्ता में एक पेड़ मिला उसके नीचे सह परिवार को लेकर बैठ गई।
फिर तुरंत उठी और उसको चिंता होने लगी कहीं मेरा घर तो नहीं गिर गया है। चींटी ये बात सोचती हुई अपने बच्चे को लेकर साथ में आगे बढ़ी अपने घर के तरफ तभी तेज बारिश होना शुरू हो गया। चींटी ने कहा हम अपना घर भी छोड़ दिए हैं। अब कब तक इस पेड़ के नीचे रहूंगी। तभी चींटी के मूड में एक विचार आया की हम भागे क्यों हम डटकर मुकाबला करेंगे। काली चींटी ने अपने सभी बच्चे को एक मजे की बात बताई। चींटी ने बोली- सुनो सभी बच्चे हम सब इस पेड़ के नीचे कब तक अपना जीवन व्यतीत करेंगे। कुछ तो करना ही पड़ेगा। हमने एक उपाय ढूंढ लिया है,,।
उनके सभी बच्चे एक साथ में बोले- बताओ मां कौन सी अच्छी उपाय, जो हम सब लोग पानी से बच जाए। तब काली चींटी ने बोली- ध्यान से सुनो प्यारे बच्चो एक- एक पत्ते सभी लोग लाओ हमारे सामने और मै उसको कुछ दिन के लिए जब तक पानी नहीं बंद होता हैं। तब तक पत्ते का घर बनाकर रहूंगी। सभी चींटी ने दौड़- दौड़ कर एक- एक पत्ते सबने इकठ्ठा किया। काली चींटी ने एक छोटा सा घर बनाया और उसमे रहने लगी। जब कुछ दिन बाद बारिश थम गई तब काली चींटी ने अपने बच्चे को लेकर अपने माटी वाला घर में गई। और वहां मौज मस्ती से रहने लगी।
इस कहानी से ये शिक्षा मिलती हैं। की जीवन में कोई संकट आते हैं। उससे सामना करना चाहिए। पीछे नहीं हटना चाहिए।
संघर्ष करना चाहिए।