फूल और पत्ती
फूल और पत्ती
अचानक फूल हरी पत्ती से मुखातिब हो मुस्काया, फिर जब दर्द भरे भाव से देखने लगा तो पत्ती ने इसका कारण पूछा। फूल ने अपने मन की बात बताते हुए कहा तुम ही मेरा भरण-पोषण करती हो जिसके कारण मैं इतना सुंदर बन पाता हूं लेकिन हर जगह मेरी ही पूछ होती है तुम्हारी नहीं और अगर फूल तोड़ते समय कोई पत्ती मुझसे लगी रह जाए तो उसे भी लोग तोड़कर फेंक देते हैं जो जाने कितने पैरों तले कुचली जाती है। क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता? इस पर हरी पत्ती मंद-मंद मुस्काते हुए बोली "मेरे जीवन का उद्देश्य ही तुम्हें सुंदर और सुगंधित बनाना है। मेरे होने की सार्थकता भी इसी में है कि तुम महको और मेरी तरह अपना जीवन भी सार्थक बनाओ।
और जहां तक तुम्हें लगता है कि, तुम्हारी ही पूछ होती है तो, यह सही नहीं है। माना कि फूलों से शोभा बढ़ती है । हर ओर सुंदरता दिखाई देती है। लेकिन देवालय में कोई भी पूजा हम पत्तियों के बिना अधूरी ही है। जब तक गणेशजी को दूर्वा, महादेवजी को बेलपत्र और विष्णुजी को तुलसी पत्र न चढ़ाया जाए वह पूजा अपूर्ण ही मानी जाती है। और तो और हम पत्तियों के औषधीय गुणों से भी कोई अपरिचित नहीं है। फूल अब अच्छे से समझ चुका था।
