पहली चाय

पहली चाय

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"क्या यार प्रिया! तुम तो मेरा बिल्कुल ध्यान नहीं रखती हो, अब शादी को इतने साल हो गए तो तुमको अब कोई मेरी परवाह ही नहीं है।" समीर ने उलाहना देते हुए प्रिया से कहा।

"हे भगवान! ऐसा क्या हो गया; जो मैंने आपका ध्यान नहीं दिया बताइए तो?" प्रिया ने भी गुस्सा जैसा दिखाया।

आज छुट्टी का दिन है और मैंने सुबह से सिर्फ दो ही बार चाय पी है, कितनी देर हो गई है तुमने चाय नहीं बनाई । पिछली बार वाली भी अच्छी नहीं बनाई थी।" समीर ने शिकायत की।

ओह! अच्छी नहीं बानी थी, यह कहो कि आप बिना अदरक की चाय को चाय ही नहीं मानते हैं । मैंने बहुत अदरक डाली थी पता नहीं क्यों कम स्वाद आया, अच्छा ठीक है अभी फिर बनाती हूं।" कहकर प्रिया चाय बनाने चल दी।

चाय बनाते-बनाते प्रिया का दिमाग पीछे, बहुत पीछे चला गया उसको वही लड़का याद आ गया जब वह छोटी थी शायद दसवीं या ग्यारहवीं में थी। वह उससे चार-पांच साल बड़ा था लेकिन उसकी दीदी से पढ़ाई की कोई समस्या ले कर कोई मदद लेने आ जाता था। जब भी वह आता तो प्रिया के दिल में हजारों घंटियां बजने लगती, उसको समझ में नहीं आता कि ऐसा सब है क्यों? ऐसा भी नहीं समझ पा रही थी कि वह लड़का भी उसकी तरफ देखता है, ध्यान देता है या नहीं। लेकिन उसको बहुत अच्छा लगता था उसका आना। प्रिया को ठीक से चाय बनाना भी नहीं आता था पर कई बार दीदी ऐसे बोल देती उसको कि जाओ तुम चाय बना लो। तब तो स्टोव हुआ करता था। स्टोव में पिन लगाना जलाना मुश्किल होता तो कभी-कभी प्रिया बहाना बना देती, "दीदी मुझसे जल नहीं रहा।"

दीदी स्टोव जला कर चली जाती। प्रिया का मन करता वह वहीं बैठे जहां पर वह लोग पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन चाय बनानी पड़ती। एक दिन वह चाय बनाते समय थोड़ा सा जल गई, प्रिया जोर से चिल्लाई दीदी दौड़ के आ गई और बर्फ लगा के चलीं गईं।

प्रिया ने चाय बनाई जैसे-तैसे और उन दोनों के सामने ले गई । पढ़ाई के साथ-साथ उसने चाय भी पी फिर चला गया।

बाद में दीदी ने कहा, "प्रिया कुछ तो सीख लो तुमने कितनी मीठी चाय बनाई थी।"प्रिया को मन ही मन लगने लगा लो उसके लिए चाय बनाई वह भी अच्छी नहीं थी,अगली बार आएगा तो मन लगाकर अच्छी सी चाय बनाऊंगी अदरक डालकर और कुल्हड़ वाले कप में दूंगी।


उसकी बहन प्रिया की सहेली थी, इसलिए जब अगले दिन प्रिया जब उस सहेली से मिलने उसके घर गई और उस लड़के से सामना हुआ तो उसको थोड़ा अजीब लगा कि चाय इतनी खराब बनाई थी।आज कुछ अलग सा हुआ जनाब ने थोड़ा सा एकांत में मौका देख कर प्रिया से कहा, "कहां जल गई थी कल क्या बहुत लगी थी?"

 प्रिया ने थोड़ा लाड दिखाते हुए चेहरे की तरफ़ इशारा किया, "यहाँ..."

 "अरे...! ध्यान से किया करो इतना सुंदर चेहरा जला लिया।" उसने प्यार भरी डांट लगाई।

फिर जो बोला उसके बाद तो प्रिया के कदम ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे।

"लेकिन चाय बहुत अच्छी बनी थी। मीठी बिल्कुल तुम्हारी तरह।"प्रिया को थोड़ी देर को कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या हुआ है? बोल क्या गया यह?


यही सब सोचते-सोचते चाय बन गई और वह दो कप में डाल कर ले आई समीर के सामने।

"हां जी! चाय बन गई है अब कभी ना कहना मैं आपका ध्यान नहीं रखती हूं।" समीर को फीकी चाय पसंद है लेकिन आज उस लड़के की यादों से चाय मीठी हो गई है।

"देखो तो तुमने मन लगाकर चाय नहीं बनाई कितनी मीठी कर दी है।" समीर बोले

"अब मैं कहूंगी कि आप बदल गए हैं कभी तो मीठी चाय मेरे जैसी मीठी लगती थी और आज कह रहे हैं कि कैसी चाय बनाई मीठी कर दी है?" प्रिया ने मुंह चढ़ाते हुए कहा।

"ओह हो! तो यह बात है।" कमरे में दोनों का एक जोर का ठहाका गूँज गया ।


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