पहले समझो फिर व्यवहार कीजिए
पहले समझो फिर व्यवहार कीजिए


"कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन, ये एक बार टूटने पर पहले जैसे नहीं रहते। अत: पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए।"
संसार गतिमान है। वैज्ञानिक कहते हैं कि एक स्थूल पत्थर भी को बिल्कुल जड़ निष्क्रिय दिखाई देता है, वह भी आण्विक रूप से निरन्तर गति कर रहा है, बदल रहा है। यहां स्थूल और सूक्ष्म सब निरन्तर बदल रहा है।
जब भौतिक संसार में कुछ बदलाव नजर आते हैं तो हमें हैरानी सी होती है। लेकिन इसमें हैरानी की कुछ बात नहीं है। गतिमान संसार निरन्तर परिवर्तनशील है। परिवर्तन के इस नियम को हमें पारस्परिक सम्बन्धों के व्यवहारिक जगत में भी स्मरण रखना चाहिए। एक प्रकार के परिवर्तन से दूसरे प्रकार के परिवर्तन का सम्बन्ध होता है। यह इतना सूक्ष्म रूप से होता है कि स्थूल बुद्धि से पता नहीं चलता। जब किसी वस्तु या व्यक्ति में एक प्रकार का परिवर्तन हो जाता है तो उसमें वही पुराना परिवर्तन पुनः नहीं हो सकता है।
चेतना की यात्रा आगे की ओर है ना कि पीछे की ओर। इसलिए व्यक्तिगत, वस्तुगत, मनोगत आदि अनेक प्रकार की स्थितियों को वे जो हैं जैसी हैं उन्हें उसी तरह से बुद्धिगम्य कर समझ लेना चाहिए। अन्यथा उनकी स्थिति में बदलाव आने के बाद वे पहले जैसी नहीं रहतीं अर्थात उनके साथ पूर्ववत व्यवहारिक अपेक्षा नहीं रखी जा सकती।