Sankita Agrawal

Romance

5.0  

Sankita Agrawal

Romance

पहला प्यार

पहला प्यार

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अगर बुरा ना माने तो एक सवाल पूछूँ आप लोगों से ?

चलिये बेशर्मों की तरह पूछ ही लेता हूँ, "पहला प्यार", ये दो शब्द सुनते ही आपके दिल और दिमाग पर कौन स्ट्राइक करता है ? शायद अाप लोगों के ज़वाब होगें 'फैमिली', 'माँ-पापा', आपका प्यारा पालतू कुत्ता या बिल्ली, किताबें, या फिर कोई हीरो या हीरोइन, या फिर बचपन की दोस्त से हुआ प्यार वग़ैरह वग़ैरह, पर जब इस सवाल का जवाब, मैं अपनी ज़िंदगी में ढूँढता हूँ तो बस एक नाम ज़ुबां पर आता है। एक चेहरा मेरी आँखों के सामने से गुजर जाता है, मेरा पहला प्यार 'पंखुड़ी'।

मेरे बचपन के बारे में बताऊँ, तो सिर्फ़ एक तस्वीर काफी होगी 'कमरे में घुप अँधेरा है, कोने में बैठा एक खामोश बच्चा, कानों पर हाथ रखे हुए। बाहर से आती अपने माँ-पापा की चीखों को ना सुनने की नाकाम कोशिश कर रहा है', जब मेरे दादू ने देखा, माँ-पापा की लड़ाइयों का असर मेरे बचपन पर पड़ रहा है तो उन्होनें मुझे हॉस्टल में डालने का फैसला लिया। जाते वक्त माँ पापा ने बहुत सारी बातें सिखायी, पर दादू ने अपने ढेर सारे प्यार के साथ मुझे वायलिन दिया। जो मेरा पहला दोस्त बना।

बारह साल बाद...

आपको तो पता ही है हम कॉलेज के हॉस्टल में रहा करते थे। हम घर सिर्फ़ त्यौहारों की छुट्टी पर जाया करते थे, एेसे ही किसी त्यौहार के मौके पर हमारा घर जाना हुआ, तो पहुँच गए बस स्टेशन।

पहाड़ी इलाकों में रहने वाले थे हम और हमको बचपन से ही खिड़की के पास वाली सीट से असीम लगाव था और उस सीट के लिए हम कुछ भी कर सकते थे। पर उस दिन कुछ एेसा हुआ कि ना हमने खिड़की देखी ना सीट। वो क्या है ना एक क्यूट सी, खूबसूरत गालों वाली, लम्बे-लम्बे घने बालों वाली लड़की ने जब हम से अपनी स्वीट आवाज़ में, तनिक मुस्कुरा कर क्या बोला, हमने अपनी सीट को उनके हवाले कर दिया और खुद बैठ गए उनके पास वाली सीट पर।

अब तो तमाम़ सवालों की एक लड़ी सी लग गई, हमारे दिलों जेहन में, ये कहाँ तक जाएगी ? क्या हम कुछ कह भी पाएगें ? अरे, हमारा मन करता तो वहीं इज़हार कर देतें लेकिन अगर लड़की बुरा मान गई तो ? बस के लोगों ने हमारी धुनाई कर दी तो ? लव-स्टोरी का क्लाइमेक्स तो होने से रहा, हमारा ज़रुर हॉस्पिटल में नम्बर लग जायेगा। फिर हम अपने मन पर काबू किये और उन्हें चुपके-चुपके निहारने लगे। उन्हें निहारते-निहारते, कब हमारा स्टॉप आ गया पता ही नहीं चला।

हम घर पहुँच गये थे तन से, पर मन अभी भी बस में ही डोले खा रहा था, उन बालों की महक से लेकर उन आँखों की खूबसूरती में डूबा हुआ था, एक अज़ब सी हलचल हुई दिल में, जिसमें खुशी भी है और उदासी भी, क्या ये प्यार है ?

त्यौहार की छुट्टियाँ खत्म हुई और आ गये हॉस्टल। दूसरे दिन स्कूल पहुँचे तो चमत्कार ही हो गया, वो हमारे ही स्कूल में हमारी ही क्लास में पढ़ने आई थी, न्यू एडमिशन इन कॉर्मस सेक्शन इन मिड सेशन। शायद पहली बार एडमिशन के लिये आई होगी, नाम था 'पंखुडी'। होना क्या था, हमारी उम्मीदों को भी पंख लग गये।

जहाँ एक लड़का स्कूल के हॉस्टल में पड़ा रहता था, वहीं आज फुल अटेन्डेंस लगाता था। रोज उसको इतना निहारते कि मन ही भर जाता, स्कूल की प्रेयर के समय वहीं बैठा करते जहाँ से हम अपनी देवी की पूजा कर सकें। बात करने की मैनें भरपूर कोशिश की, पर हर बार होने से रह जाती। कभी किस्मत दगा कर जाती कभी हौसलों में ही कमी रह जाती। एक दिन हम भी ठान लिये, अब तो आर या पार हो ही जाए।

अक्षत - हैलौ पंखुड़ी !

पंखुड़ी - हाय अक्षत !

अक्षत - मुझे तुम से कुछ ज़रूरी बात करनी है, क्या हम दोनों आज स्कूल के पीछे वाली पहाड़ी पर मिल सकते हैं ?

पंखुड़ी - ओके !

शाम का समय ...

ना जाने क्यों लोग सिर्फ़ शुरूआत को ही क्यों खूबसूरत मानते हैं, अंत भी तो खूबसूरत हो सकता है। इस बात का अहसास मुझे हर बार होता है जब अद्भूत सूर्यास्त देखता हूँ। पंखुड़ी का इंतज़ार करते-करते भी एक घंटा बीत गया पर वो नहीं आई, गुस्सा तो बहुत आ रहा था, फिर वहाँ से चले जाना ही ठीक समझा। मैं वहाँ से जा रहा ही था कि वो दूर से आती हुई दिखी।

पंखुड़ी - सॉरी ! सॉरी ! लेट हो गयी।

अक्षत - इट्स ओके ! अच्छा, मुझे तुम से कुछ कहना था और पूछना भी। बस समझ नहीं आ रहा, कैसे शुरुआत करूँ।

पंखुड़ी - अक्षत मैं जानती हूँ, तुम क्या कहना चाहते हो।

अक्षत - अच्छा जी, एेसा क्या? तो बताओ मैं क्या कहना चाहता हूँ ?

पंखुड़ी- मुझे याद है, उस दिन बस में तुम मुझे किस कदर देखे जा रहे थे, मुझे सब नजऱ आ रहा था। स्कूल में भी तुम एक मौका नहीं छोड़ते हो मेरे पास आने का, ब्लैकबोर्ड से ज्यादा तो तुम्हारी आँखें मुझे ही ढूँढ़ती रहती हैं। मैं जानती हूँ तुम मुझे पंसद करते हो, पर ये तुम नहीं जानते कि मैं किसी और से प्यार करती हूँ। शायद ये एक इकतरफा प्यार है पर प्यार तो प्यार होता है ना।

अक्षत - (मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी) पर मेरा क्या ? मैं तुमको सिर्फ़ पसंद ही नहीं, तुमसे प्यार भी करता हूँ ।

पंखुड़ी - इसका अहसास है मुझे, इसीलिए तो तुम्हें खुद से दूर जाने के लिए कह रही हूँ। अब मुझे चलना चाहिए।

अक्षत - क्या हम दोस्त भी नहीं हो सकते ?

{ वो दो पल रुकी, पीछे भी मुड़ी और तेज कदमों से वहाँ से चली गयी }

मैनें उससे बहुत बार ये सवाल पूछा, पर हर बार जवाब में 'न' मिलता। एक दिन एेसा भी आया, कि हारकर उसने हाँ कर ही दिया। पर एक अहम बात भी कही 'ये सिर्फ़ मेरे लिए दोस्ती होगी पर तुम्हारे लिए जीते जी खुदकुशी होगी'। झूठ भी कहाँ कहा था उसने।

सात साल बाद...

इतने सालों में हम दोनों करीब तो आये, पर ये सिर्फ़ रिश्ता सिर्फ़ दोस्ती तक ही सिमटा रहा। मैंने बहुत बार इशारों में उससे इज़हार करने की नाकाम कोशिशें भी की, पर शायद वो दुबारा प्यार न करके, अपने आपको बिखरने से बचाना चाहती थी। मुझे सिर्फ उसकी हल्की मुस्कान से ही सुकून मिल जाता था, उसकी मीठी आवाज़ जब भी कानों में पड़ती तो बस जी करता कि उसे सुनता रहूँ, वो जब भी मेरी करीब होती तो दुनिया ठहर सी जाती पर आज जब वो मेरी दोस्ती से भी मुँह मोड़ कर, अपनी नई दुनिया की शुरुआत करने जा रही है। मैं टूट रहा हूँ, रातों के अधेंरों को अपना यार मानने लगा हूँ। बचपन में जब माँ पापा लड़ाई करते, तब मैं सिर्फ वायलिन बजाता। आज फिर अपने पुराने दोस्त के पास लौट रहा हूँ। देखना शायद कहीं वायलिन बजाता हुआ कहीं मिल जाऊँ। वो सही कहती थी, उससे दोस्ती करना मेरे लिए जीते जी खुदकुशी करना ही होगा। हाँ टूटा जरुर हूँ पर बुज़दिल नहीं हूँ, मैं जियूँगा, तुम्हारी यादों में ही सही पर जियूँगा। कुछ दिन पहले मुझे उसकी आखिरी चिट्ठी मिली जो उसके दोस्त ने मुझे दी। जो उसने सिर्फ़ मेरे लिए अपनी शादी के चंद पलों पहले लिखी थी।

डियर अक्षत,

क्या तुम्हें याद है हमारी पहली मुलाकात, हाँ वही मुलाकात जिसमें तुमने मुझे अपनी सबसे प्यारी चीज़ 'खिड़की वाली सीट' दी थी। मुझे अभी भी याद है कैसे तुम एक छोटे से बच्चे की तरह खिड़की को कसकर बैठे थे ? सच बोलूँ तो, जिस तरीके से तुम्हारी आँखें, मेरी मौजूदगी को हर वक्त तलाशती थीं। मुझे मेरे जिंदा होने का अहसास दिलाती थीं कि कोई है, जिसके लिए सिर्फ मेरा खूबसूरत होना ही मायने नहीं रखता। मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आता है कि क्यों मैनें तुम्हें रोका नहीं मेरे पास आने से।

चाहे हमारे बीच सिर्फ़ दोस्ती का रिश्ता था, पर सच क्या है ये तुम भी जानते हो। मेरे चेहरे पर लायी हर एक मुस्कान ने तुम्हारी मुस्कान छीन ली। मेरे दिन को उजाला देते देते, तुम्हारी रातें अधेंरे से भर गयी। मेरे हर ज़ख्म पर मरहम लगाते लगाते, तुमने अपनी जिंदगी दर्दों से भर ली। मैं तो तुम से बात करके अपना दिल हल्का कर लेती पर तुम कागज़ पर अपने दर्द को लिखते गये। तुम तो मेरे दोस्त, हमदर्द बन गये, पर मैं तुम्हारी जिंदगी का नासूर बन गयी।

आखिर में इतना ही कहूँगी तुम मेरे सिर्फ़ दोस्त नहीं, मेरे आखिरी प्यार हो और रहोगे। तुम्हारे बाद मैं शायद ही किसी से प्यार कर पाऊँगी। इन सालों में जितनी खुशी तुमने मुझे दी हैं। दुआ है उससे दुगनी खुशी से तुम्हारी ज़िंदगी भर जाये।

अलविदा अक्षत।

मेरी पंखुड़ी थी वो। हाँ मेरी पंखुड़ी थी वो जो मुझसे आज बहुत दूर जा चुकी थी। शायद आज जाकर, उसने अपना प्यार का इज़हार इस चिट्ठी में किया पर ये प्यार तो उसकी आँखों में सालों से झलकता आ रहा है। याद है पंखुड़ी, तुमने कहा था, "तुमसे दोस्ती करना मेरे लिए जीते जी खुदकुशी करना होगा, पर क्या मुझसे प्यार करके तुम जी पाओगी ? " जहाँ भी जाओगी, मेरे अक़्स को अपनी रुह का हिस्सा पाओगी।

बस यही था, मेरा पहला प्यार और शायद आखिरी भी।


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