प्यार इन Bhaad - 5
प्यार इन Bhaad - 5
वैलेंटाइन डे मतलब " प्यार का दिन "...यकीन मानिए, इस दिन चारों तरफ हवाओं में पूरी दुनिया का प्यार का उमड़ता है, चाहे पंद्रह साल का लड़का हो या अस्सी साल की बुढ़ी आंटी..इस दिन को सभी अपने तरीके से मनाते है ! जैसे पंद्रह साल का लड़का अपनी नयी नवेली ग्रलफेंड के लिए..अपनी पॉक्ट मनी से पैसे बचाकर चॉकलेट खरीदकर लाता है, या फिर पच्चास साल के अंकल अपनी प्यारी पत्नी जी के काले रेश्मी बालों में लगाने के लिए...मॉर्निंग वॉक के बहाने बेला के फूलों का गजरा खरीदकर लाते है, या फिर लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में प्यार निभाने वाले अपना पूरा दिन स्काइप या फोन पर गुफ्तगू करके बिता देते है ! लेकिन कुछ एेसे भी लोग होते है, जो इस प्यार के भोले दिन के अत्यधिक विरुद्ध होते है.. जैसे कुछ लोगों का माना होता
है " क्या सिर्फ वैलेंटाइन डे ही प्यार को सेलिब्रेट किया जा सकता है..हर दिन ' प्यार का दिन ' मनाओ ! " या फिर कुछ एेसे भी लोग होते है जो विदेशी संस्कृति से उत्पन्न, इस त्यौहार को समाज के लिए एक कीटाणु समझते है जो उनकी भारतीय संस्कृति को जड़ों से खत्म कर देगा !! ये दूसरी कैटेगरी की ही सोच वाले थे " प्यार इन Bhaad " दल के मेंबर्स, कभी कभी तो मैं भी इस उटपटांग सोच से इतना प्रभावित हो जाता था कि शीतल को अपने दिल और दिमाग से निकालने की कोशिश करने लगता था !! पर जब उसकी ऑंखों के समुंदर में डूबता था तो डूब कर ही रह जाता था, वो मुझे अपनी पल भर की मौजूदगी से पूरे हफ्ते के प्यार का राशन दे जाती थी ।
आजकल जब नयी जनरेशन की युवक-युवतियों को वैलेंटाइन डे मनाते देखता हूँ तो उनसे जलन भी होती है और उन पर तरस भी आता है ! बताता हूँ, कैसे... तरस क्योंकि फोन पर मन को मोहित करने वाली इमोजी के चलते..प्यार करने वाले लव-लेटर जैसी प्यार की निशानी या कहूँ प्यार के पाठ को भूल गए है, लव-लेटर में जो बात होती थी..वो इन इमोजी में कहॉं !! जलन क्योंकि हमारे प्यार के दिनों को अगर मैग्निफाइंग ग्लास से करीब से देखा जाए, तो आपको नजर आएगा " प्यार इन Bhaad " दल जैसे बजरंगी दलों का अत्याधुनिक प्रभाव और दवाब, जिनका एकमात्र लक्ष्य होता था, " प्यार करने वालों की रसगुल्ले जैसी मीठी आवाज को दबाना ", ताकि वो भारतीय संस्कृति को नुकसान ना पहुँचा सके ! पर क्या प्यार जैसी सुंदर भावना किसी को नुकसान पहुँचा सकती है ? चलिए, छोड़िए इस बहस को यादों की ट्रेन में यहीं अंजाम देते है..वरना आपके और मेरे दिल का स्वाद फीका ना हो जाए, हाहा !!
उस दिन को जब भी याद करता हूँ, सिर्फ एक गाना याद आता है,
" प्यार किया तो डरना क्या
जब प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की
प्यार किया...
प्यार किया कोई चोरी नहीं किया
छुप छुप आहें भरना क्या
जब प्यार किया तो डरना क्या "
अब इस गीत से क्यों यादों की लहर चली आती है, मुझे प्यार के समुंदर में डूबोने.. ये बाद में बताऊंगा ! उस दिन मैनें हर्ष भईया से " प्यार इन दौड़ " दल से छुट्टी मॉंग ली थी, वो क्या है ना ! " प्यार इन Bhaad " के प्यारे हेड प्रीतम भाई ने नोटिस जारी किया था, " आज वैलेंटाइन डे के दिन, हमारा दल कॉलेज के बाहर जाकर शहर के अन्य दलों की मदद करेगा, ताकि प्यार के इस त्यौहार को सरेआम मनाने वालों को अच्छा सबक सिखाया जा
सके ", एक तरफ ये नोटिस जारी हुआ, दूसरी तरफ मेरे दिमाग में लव-लेटर लिखने का आइडिया आया,
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प्यारी शीतल,
तुम मुझे बेहद करीब से जानती हो, तुम्हारी ऑंखों के सामने से..मैं रोज गुजरता हूँ..तुम्हारी जुबॉं पर मेरा नाम अक्सर गूंजता रहता है..कभी तुम मुझसे लड़ जाती हो तो कभी तुम मुझसे ना चाहते हुए शर्मा जाती हो, पर क्या तुम जानती हो.. जब तुम मेरे पास से गुजरती हो तो तुम्हारे इत्र की खूशबू मेरी सॉंसों में ठहर सी जाती है, तुम्हारी ऑंखों में लगे काले काजल के अधेरें में कुछ खो सा जाता हूँ, तुम्हारे होठों पर कभी-कभी आने वाली खबसूरत हँसी के लिए..मैं तरस सा जाता हूँ !
इस चिट्ठी को लिखकर, मैं तुम्हें उस शख्स से मुलाकात कराना चाहता हूँ..जो कुछ सालों से तुम्हारी सादगी का कायल होकर, तुम्हारी खूबसूरती के जाल में फँसकर, तुम्हारी कातिलाना आवाज का घायल होकर..सिर्फ तुम्हारा होकर रह गया है ।
कॉलेज में जब पहली बार कदम रखा तो तुम्हारे प्रिय प्रीतम भईया जी से टकरा गया..पर उस मुलाकात ने मेरी नजरों में तुम्हें इस कदर घुला दिया कि अब हर शख्स के चेहरे में सिर्फ तुम नजर आती हो, जब किताबों के पन्ने पलटता हूँ तो सिर्फ तुम्हारे ख्यालों का भवर उमड़ पड़ता है...हो सकता है, मेरी लिखी हुई, ये बातें काफी ना हो तुम्हारे दिल में मेरे नाम के प्यार की लौ जलाने के लिए, इसलिए मैनें इस वैलेंटाइन वीक के हर दिन कुछ एेसा किया जो तुम्हें स्पेशल फील कराए, मेरे प्यार को तुम्हारे दिल के अन्दर गहराई से महसूस कराए.. हॉं, मैं वहीं शख्स हूँ, जिसने तुम्हारे कमरे में वो प्यारे लाल गुलाबों से भरा छोटा गमला रखवाया, तुम्हारे कमरे में चॉकलेट्स का बुके रखवाया, तुम्हारे बैग में टेडी का कीचेन लटकाया, जिसकी नजरों को तुमने मिनटों तक घूरा, हाहा !! क्या इतने सुराग काफी नहीं है, तुम्हें अपने इस आशिक को पकड़ने के लिए ?
" शाम चार बजे, बिरला मंदिर "
में तुम्हारा इंतजार करूँगा, अपनी हॉं या ना को साथ लेकर आना विदाउट अपने भईया के !!
तुम्हें बेइंतहा प्यार करने ...
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जब " प्यार इन Bhaad " दल के मेंबर्स प्यार करने वालों की बैंड बजाने में लगे हुए थे, मैनें किसी तरह इस चिट्ठी को शीतल के बैग में डाल दिया और चुपके से, वहॉं से खिसक लिया ।
बिरला मंदिर, दिल्ली ....
उस वक्त मेरे हाथ-पैर ठीक उसी तरह फूले हुए थे, जिस तरह पानी में किशमिश !! मैं उसके इंतजार में बार-बार मंदिर के अन्दर-बाहर हो रहा था, इसी वजह से वहॉं के लोग भी मुझे घूरने लगे थे, पर इस घटना से एक बात साफ हो गयी थी, कि शीतल का प्रपोज डे वाले दिन मुझे घूरना प्यार झलका रहा था ! मैं इतनी गहराई से सोच रहा था कि कोई मेरे ख्यालों को कान लगाकर सुने तो मुझे " प्यार का फिलोसोफर " कह दे !
करीब पंद्रह मिनट बाद, जब मुझे शीतल दूर से आती हुई नजर आई, तो मेरा दिल हिप हॉप डांस करने लगा..
" कृष्णा तुम यहॉं ?? ", शीतल ने पूछा ।
" अगर यहीं सवाल मैं तुम से पूछूँ ? वैसे यहॉं मेरी किसी के साथ जरुरी मीटिंग है, भईया से परमिशन लेकर आया हूँ । ", मैनें ना चाहते हुए भी उससे झूठ बोला ।
" अरे, कुछ नहीं ! बस एक लड़का है, मुझे हफ्ते भर से परेशान कर रहा है !! कहता है, मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ..मुझे लव-लेटर भेजता है और, तो और गिफ्टस भी । उसने मुझे यहॉं बुलाया है, मैनें पहले सोचा खुद ही डील कर लूँ..अगर वो नहीं माना तो बाद में भईया से पीटवा दूँगी ! ठीक रहेगा ना !! वो मुझे अच्छे से जानता नहीं है, बड़ा आया प्यार करने
वाला !! ", शीतल ने तेज आवाज में कहा ।
उसने पूरे मंदिर में उस लड़के को ढूढ़ने के लिए, मतलब मुझे ढूढ़ने के लिए छापा मार डाला, हाहा !! इस वक्त भले ही मैं हँस रहा हूँ पर उस वक्त हालात से ज्यादा मेरे दिल की तबियत खराब हो रही थी, क्या सच में इसे मेरा प्यार महसूस नहीं हुआ !! थोड़ी देर बाद, मुझे वो मंदिर से बाहर जाती हुई दिखाई दी..मैनें सोचा, शायद प्रीतम भाई को बुलाने गई है..मुझे समझ ही नहीं रहा था, इसका इतना हदय परिर्वतन कैसे हो गया, डायरी में कुछ या कुछ !!
उस वक्त सिर्फ एक गीत ने मेरे दिमाग में दस्तक दी, हॉं..आपको सही याद आया.,
" प्यार किया तो डरना क्या
जब प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की
प्यार किया ",
बस फिर क्या था, मैनें अपने हाथों को कसकर पकड़ा, एक गहरी सॉंस ली और शीतल का इंतजार करने लगा, ये सोचकर " जो होगा, देखा जायेगा, ज्यादा ये ज्यादा भाई पीटेगा ना, पीट लेगा ! ".. शीतल दस मिनट बाद लौटी, पर प्रीतम भाई दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे थे ! इधर मैं सोच में पड़ गया, उधर वो पल भर में मेरी नजरों के सामने खड़ी थी..
" ये लो, इस काग़ज पर साइन करो ", शीतल ने तेज आवाज में कहा ।
" क्यों ? ", मैनें हैरान होते हुए पूछा ।
" मुझ पर भरोसा है ? तो साइन करो ! ", उसने हक जताते हुए कहा ।
मैनें भी कागजों को बिना देखे साइन कर दिया, जब सवाल पूछा " अब तो बता दो, ये किसके काग़ज है ? ", तो उसने जवाब में खुद पढ़ने के लिए कहा ।
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LEAVE APPLICATION FROM
" PYAAR IN BHAAD " GROUP
मैं कृष्णा मोहन " प्यार इन Bhaad " दल छोड़ना चाहता हूँ, वो क्या है ना..इस दल में आने की एकमात्र वजह थी, " शीतल, उसके दिल में जगह बनाना ", क्योंकि अब मैं उसके दिल में अपनी पैठ जमा चुका हूँ, तो इस दल को छोड़ रहा हूँ । कृपया मुझे माफी के साथ, दल को छोड़कर जाने की अनुमति प्रदान करें !
और हॉं, प्यार करने वालों को प्यार करने दे, आपकी बड़ी कृपा होगी ।
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जैसे ही मैनें इस Leave Application को पढ़ा, मेरा दिल खुशी से फूला नहीं समाया..
" ये तुमने लिखी है, सच्ची तुमने लिखी है ?! " मैनें खुश होते हुए पूछा ।
" हॉं, मैनें ही लिखी है ", शीतल ने शर्माते हुए कहा ।
" अच्छा, ये दूसरे काग़ज में क्या लिखा
है ?? ", मैनें पूछते हुए कहा ।
" ये मेरी Leave application है । अब तुमसे प्यार करने की खता कर ही ली है, तो " प्यार इन Bhaad " दल से बाहर जाना ही पड़ेगा ना ? " ये कहते हुए शीतल ने मुझे " आई लव यू " कहकर गले लगा लिया और मैं उसे अपनी बॉंहों में जकड़कर घूमाने लगा ।
जब हम दोनों की नजरें एक दूसरे की प्यार वाली खामोशी को समझ ही रही थी..तभी ना जाने कहॉं से प्रीतम भईया अपने पूरे दल के साथ, वहॉं पहुँच गये !!
" तुमने भईया को बुलाया ? ", मैनें शीतल से पूछा और शीतल ने मुझसे.. जाहिर सी बात है दोनों का जवाब " ना " रहा होगा, वरना कौन प्यार में डूबा बेवकूफ खुद से बंजरग दल को न्यौता देगा, इतनी देर में शीतल और मेरी Leave Application, ना जाने कैसे हवा के बहाव से प्रीतम भईया के पास पहुँच गयी, पता ही नहीं चला !!
" कहॉं जा रहे हो ?? ", शीतल ने प्रीतम भईया की तरफ मेरे बढ़ते कदम को देखते हुए पूछा ।
" देखो प्रीतम भईया, चाहे कितने भी बुरे हो ! पर वो तुम्हारे भाई है.. मुझे विश्वास है, अगर मैं उन्हें सब कुछ प्यार से समझाऊंगा, हमारे प्यार की गहराई में ले जाऊंगा तो वो जरुर समझ जाएगें और हमें गले लगा लगें ", मैनें खुद में विश्वास भरते हुए कहा ।
" ओफो ! तुम भी ना, भईया को किसी और दिन प्रपोज कर लेना !! फिलहाल यहॉं से
भागो ", शीतल ने कसकर मेरा हाथ पकड़ा और हम दोनों मंदिर के बाहर भागने लगे, उस पल हम दोनों ठीक मायनों में " प्यार इन Bhaad " दल से " प्यार इन दौड़ " दल में शामिल हो गए.. वैसे एक बात कहूँ, उस वक्त मुझे अच्छे से समझ आया कि प्यार करने वालों ने अपने दल का नाम " प्यार इन दौड़ " क्यों रखा, हम आगे आगे और प्रतीम भाई अपने दल के साथ हमारे पीछे पीछे, हाहा !!
बस इतना ही था, मेरी यादों की ट्रेन का सफर.. हॉं, एक बोनस चैप्टर जरुर है..जिसमें आप पढ़ेगे " शीतल की जुबानी, इस प्यार की कहानी ", जरुर पढ़ियेगा ।।
to be continue...
