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Sankita Agrawal

Drama Tragedy

4  

Sankita Agrawal

Drama Tragedy

अनकहा प्यार

अनकहा प्यार

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अक्सर नंदिनी और अविनाश की ड्यूटी एक ही वक्त पर खत्म हो जाया करती थी और दोनों का हॉस्पीटल से घर तक का लंबा सफर, एक दूसरे के साथ दिन भर की बातों से बीत जाया करता था, पर आज अविनाश हॉफ होलीडे की छुट्टी लेकर पहले ही कार से घर जा चुका था और नंदिनी हॉस्पीटल में लंबे ऑपरेशन के कारण घर के लिए लेट हो चुकी थी। उसके दिल में अजीब घबराहट घर कर रही थी, इसकी वजह शायद ही आधी रात के वक्त सुनसान रास्ते पर अंजान टैक्सी ड्राइवर के साथ सफर करना रहा होगा, इसकी वजह था अविनाश के व्यवहार में आया बदलाव। नंदिनी को फ्लैट पर पहुँचे आधा घण्टा बीत चुका था पर, ना तो अविनाश ने दरवाजा खोला ना ही नंदिनी की आवाज का कोई जवाब दिया, हारकर नंदिनी ने ही गमले के नीचे से डुप्लीकैट चाबी निकाली और दरवाजा खोला, देखा तो घर में घुप अंधेरा था और अविनाश का कोई नामू-निशान नहीं था। उसने अविनाश को कॉल लगाया तो फोन स्वीच ऑफ था। अब तक उसकी घबराहट डर में तब्दील हो चुकी थी, वो अविनाश को घर के बाहर ढूंढने जा ही रही थी कि उसकी नज़र टेबल पर पड़े, एक कागज पर पड़ी। 

डियर नंदिनी,

मैं जानता हूँ, कि ये चिट्ठी लिख मैं अपने कायर होने का प्रामाण दे रहा हूँ पर मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि, मैं तुमसे नजरें मिलाकर अपनी सालों पहले की गयी गलती को कबूल कर लूँ, वो गलती जिसने हम दोनों की जिंदगी को तबाह कर दिया ! मैं जानता हूँ कि तुम्हें मेरी इस गलती की वजह से कितनी तकलीफ हुई है, एक चेहरे पर नकली सी मुस्कान लेकर तुम अन्दर ही अन्दर घुटती रहती हो। जब वेद बाबा ने मुझसे वादा लिया कि मैं तुम्हारा जिंदगी भर साथ निभाऊं, तब मैंने बिना कुछ सोचे हामी भर दी, पर अब मैं समझ चुका हूँ कि हमारा साथ जिंदगी भर का हो ही नहीं सकता। ना जाने कितने महीनों से तुम मुझसे नजरें मिलाने से कतराने लगी हो, बात करते करते एकदम से शांत हो जाती हो, कभी कभी तो मुझे इग्नोर ही कर देती हो..शायद तुम्हें डर है कि तुम्हें जिंदगी भर अपनी नजरों के सामने मेरा चेहरा देखना होगा जिससे तुम्हें सख्त नफरत है, तुम्हारे वजूद के इर्द-गिर्द मेरा साया होगा जिसे तुम इतने सालों से ना चाहते हुए भी झेल रही हो..तुम फिक्र मत करो ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि मैं चाहकर भी तुम्हारे करीब नहीं रह सकता..मुझे नफरत होती है खुद से..जब तुम्हारी आँखों से बहता पानी उस काले काजल को तुम्हारे चेहरे पर बिखेर तुम्हें बदसूरत कर देता है, जब घर में तुम्हारी मीठी आवाज गूंजने की बजाय सन्नाटा पसर जाता है..जब किसी त्योहार को मनाने की बजाय तुम अपना सारा वक्त हॉस्पीटल में बिता देती हो ..और जाने क्या कुछ नहीं, जो तुम्हें मेरी चुलबुल जोया से अलग कर देता है। सच कहूँ तो मैं थक चुका हूँ एक घर में दो लाशों को झूठी हँसी, झूठी खुशियों के नाकाब के पीछे अपनी हकीकत को छुपाते हुए..शायद मेरे जाने के बाद तुम्हें जिंदगी को नाटक समझ अभिनय करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। अलविदा, मेरी जोया उर्फ नंदिनी !

तुम्हारा शाहिद उर्फ अविनाश

नंदिनी ने एक पल उस काग़ज को देखा, फिर घर में लगी तस्वीरों के चेहरों को..और फिर रोने लगी, उसे समझ ही नहीं आया कि एक पल में उसकी जिंदगी ने ये कैसी करवट ले ली, वो ये सोचकर परेशान हो गई, क्या फिर से उसकी जिंदगी बिखर जायेगी ! जो वो सपने में भी नहीं सोच सकती, वो अविनाश कैसे लिख सकता था ! उसने कार की चाबी ली और अविनाश को ढूढ़नें निकल गयी, शायद वो जानती थी कि उसका शाहिद उर्फ अविनाश इस वक्त कहॉं होगा। 

फलेशबैक...

हमारे देश के इतिहास की वो घटना जिसने ना सिर्फ देश को विभाजित किया था, बल्कि इंसानों को भी आपस में बॉंट दिया था। धर्म के नाम पर लोगों ने ना जाने कितने दंगे किये ! ना जाने कितने लोग बेघर हो गये, ना जाने कितने मॉं-बाप बेऔलाद हो गये वहीं ना जाने कितने बच्चे अपने माता-पिता से बिछड़ गये, ना जाने कितने लोग मौत की सूली चढ़ गये, ना जाने कितनी लड़कियों ने अपनी इज्जत गँवा दी !

इसी घटना से प्रवाभित हुई, जोया और शाहिद की जिंदगी। पंजाब के एक छोटे से गॉंव के रहने वाले थे, जोया और शाहिद। एक तरफ थी, अपने अम्मी-अब्बा की आर्दश बिटिया " जोया " और दूसरी तरफ था, नाजों से पला बढ़ा शरारती शाहिद..अपने अम्मी-अब्बा की बिल्कुल भी नहीं मानने वाला। दोनों बच्चे अपने अम्मी-अब्बा के इकलौते बच्चे थे। दोनों के घर आपस में सटे होने के कारण, उनके परिवारों के रिश्ते पड़ोसियों से ज्यादा भी परिवारिक थे। दोनों बच्चों की दोस्ती भी पूरे गॉंव में मशहूर थी। 

हॉं, तो हुआ कुछ यूँ था कि दोनों के अम्मी-अब्बा ने सख्त निर्देश दिये थे, घर से बाहर ना जाने के..शायद उन्हें डर था कि कहीं कुछ गलत ना हो जाये, पर शाहिद हमेशा की तरह जोया से बाहर खेलने की जिद करने लगा !

शाहिद - चल ना जोया, बाहर खेलकर आते है। ना जाने कितने दिन हो गये इस घर में कैद हुए..तू समझती नहीं है, अम्मी-अब्बा तो ऐसे ही कहते रहते है। मैं वादा करता हूँ, हम बस आधें घंटे खेलेंगे और फिर घर लौट आयेंगे..किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। 

जोया - नहीं ! बिल्कुल भी नहीं शाहिद !! अम्मी-अब्बा जो भी कहते है, हमारी भलाई के लिए ही कहते है। मैं नहीं जाऊंगी !

शाहिद - ठीक है, तेरी मेरी कट्टी, तू रह घर में कैद..मैं तो चला अकेले बाहर खेलने। 

जोया - शाहिद क्यों जिद कर रहा है ! अच्छा ठीक है, पर सिर्फ आधें घंटे के लिए और अम्मी-अब्बा को भी पता नहीं चलना चाहिए। 

दोनों अपने घर से बाहर निकल आये और अपना पंसदीदा खेल खेलने लगे..

" लुका-छुपी "..शाहिद गिनती करने लगा और जोया छुपने की कोशिश। एक तरफ शाहिद की गिनती की आवाजें थी, वहीं अचानक से गॉंव में अनचाहा शौर दस्तक दे रहा था। जैसे ही शाहिद ने गिनती पूरी की, अपनी आँखों को खोला..वो भौचक्का रह गया, उसने गॉंवों के लोगों को इधर-उधर भागते हुए देखा। वो कुछ समझने की कोशिश कर ही रहा था कि उसने जोया को बेहोश देखा..उसके सिर से खून बहे जा रहा था। उसे समझ हीं नहीं आ रहा था, वो क्या करे ! जोया अपनी जान से प्यारी दोस्त को कैसे बचाये। इस हालत में उसे देखकर वो बेसुध हो गया, फिर भी, कैसे भी हिम्मत जुटाई और जोया को उठाकर, गॉंव के वैध जी के घर की तरफ दौड़ लगा दी। 

गॉंव के सभी लोग वैध जी को ' वेद बाबा ' के नाम से बुलाते थे। उन्होनें कभी भी धर्म के नाम पर चिकित्सा में भेदभाव नहीं किया, चाहे मरीज किसी भी धर्म का हो, उनके लिये सिर्फ मरीज होता। कभी खुद के बच्चे नहीं हुए तो बच्चों से अधिक प्रेम था, पत्नी जी तो सालों पहले ही उन्हें छोड़, स्वर्ग सिधार चुकी थीं। वेद बाबा का घर गॉंव के एकांत इलाके में आता था, छोटा सा पीले रंग से रंगा, बाहर पेड़-पौधों की भारी मात्रा थी, जिनमें से कुछ सिर्फ ओषौधि के प्रयोग के लिए ही इस्तेमाल

होते थे। 

शाहिद - वेद बाबा ! वेद बाबा कहॉं है आप !! देखिये ना जोया को चोट आयी है, वो ठीक हो जायेगी ना ?

वेद बाबा- तुम डरो मत बच्चे, मैं इलाज शुरु करता हूँ। 

 थोड़ी देर में जोया को होश भी आ गया, शाहिद ने जोया को सही देख, राहत की सॉंस ली। इधर जोया और शाहिद को घर में ना पाकर, दोनों के अम्मी-अब्बा की जान सूखने लगी। वो लोग माहौल के परवाह किये बिना, निकल गये अपने बच्चों को ढूढ़ने..पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। थोड़ी देर बाद शाहिद और जोया को कहीं से खबर मिली की, उनके अम्मी-अब्बा..उन्हें गॉंव में ढूढ़ते ढूढ़ते इंसान बने हैवानों के शिकार हो गये..मौत ने उन्हें गले लगा लिया। दोनों बच्चों को समझ आ चुका था, कि दो पल की आजादी ने उन्हें जिंदगी भर के लिए आँसुओं में कैद कर दिया था। वो दोनों वेद बाबा के गले लगकर फूट- फूट के रोने लगे और वेद बाबा उन्हें संभालने लगे। 

 वेद बाबा को कुछ समझ नहीं आया कि वो करे तो क्या करे, इन बच्चों को किसके हवाले करे ? आखिर उन्होनें अगली सुबह को अंतिम फैसला लिया, उन बच्चों को गोद लेने का और किसी दूसरे गॉंव जाकर बस गये। हॉं, शुरुआत में शाहिद और जोया को सब कुछ अजीब लगा, अम्मी-अब्बा की कमी खलने लगी पर वेद बाबा के प्यार की थैरिपी ने दोनों को सब कुछ भुला दिया। हॉं, यादें अभी भी दिल और दिमाग में डेरा डाले हुई थी पर जिंदगी भी आगे बढ़ने का नाम है। वेद बाबा ने उनका दुबारा नामकरण किया..जोया हो गई ' नंदिनी ' और शाहिद को हो गया ' अविनाश '। वैसे तो वेद बाबा ने दोनों को कभी घर में अपने धर्म का पालन करने से नहीं रोका, पर गॉंवों वाले के सामने वो दोनों सिर्फ नंदिनी और अविनाश थे। जोया और शाहिद ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, नंदिनी और अविनाश बनने में..छोटी सी छोटी बात, आदत, तहजीब का ख्याल रखा। हॉं, शुरुआत में थोड़ी मुश्किल हुई पर फिर आदत पड़ गई दोहरी जिंदगी जीने की। छोटी सी उम्र में जोया खाना बनाने सीखने लगी, वही शाहिद वेद बाबा की हर तरीके से मदद करता, दोनों खूब मन लगाकर पढ़ने लगे..वेद बाबा ने उनको खूब सारा प्यारा दिया, कभी किसी भी चीज़ की कमी नहीं होने दी। साल बीतते गये, और जोया व शाहिद बड़े होते गए..कद के साथ साथ समझदारी भी बढ़ने लगी, वही वेद बाबा भी बूढ़े होने लगे। दोनों ने वेद बाबा की तरह डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल एट्रेंस एग्जाम दिया और पास भी हो गए। जब कुछ सालों बाद ही दोनों को शहर के एक मशहूर हॉस्पीटल में जॉब लगी, गॉंव से खबर आयी कि वेद बाबा को अचानक हार्ट-अटैक आया और उनकी मत्यु हो गई है। एक वो दिन था, जब दोनों अनाथ बच्चों को वेद बाबा ने अपनाया था..और एक ये दिन था, जब वेद बाबा भी उन्हें छोड़कर जा चुके थे, शायद दोनों फिर अनाथ हो चुके थे। उस रात, फिर दोनों एक दूसरे के गले लगकर फूट-फूट कर रोये। 

  दोनों ने गॉंव को अलविदा कहा, और शहर में किराये पर फ्लैट में रहने लगे। कहने को दोनों डॉक्टर थे, अच्छा खासी इनकम थी, पेशे की वजह से सभी लोगों से आदर भी मिलता पर कमी थी तो सबसे कीमती चीज़ की, वो थी खुशी। कोई नहीं था, जो उनसे पूछता " बेटा खाना खाया ? बेटी लाओ बालों में तेल लगा दो ? अरे बेटा जन्मदिन पर क्या खास करने का प्लान है ? कहीं घूमने चले बिटिया रानी ! " कोई नहीं था, उनकी परवाह करने वाला, घर देर से आने पर उन्हें डॉंटने वाला, उन्हें प्यार देने 

वाला। इतने साल दोनों वेद बाबा के साथ रहते रहते, अपनी परिस्थति से समझौता कर चुके थे पर अब वेद बाबा के जाने के बाद ये कमी और भी खलती थी। 

वर्तमान...

वेद बाबा के जाने के बाद, जब दोनों शहर आये तो जोया ने खुद को संभालने की तमाम नाकाम कोशिशें की पर सफल ना हो सकी। रात भर बालकनी में तारों को ताकती रहती, इस उम्मीद में कि कभी अम्मी-अब्बू उसे दिख जाये, वो रात भर खुदा से शिकायतें करती कि क्यों खुदा ने उसकी और शाहिद की जिंदगी कॉंटों से भर दी। शाहिद से दूर रहने की कोशिश में वो घर पर कम, हॉस्पीटल में ज्यादा समय बिताने 

लगी। उसे लगता जितना वो शाहिद से दूर रहेगी, शाहिद को कम तकलीफ पहुँचायेगी..वो अपना उदासी भर चेहरा शाहिद से छुपाकर रखने लगी, बातचीत भी कम होने लगी, साथ रहने के बावजूद मुलाकात सिर्फ हॉस्पीटल जाते वक्त और लौटते वक्त होती, दोनों के बीच दूरियों की पनपने की वजह था..जोया अपने आप को कसूरवार समझ रही थी कि क्यों उसने शाहिद को उस दिन घर से बाहर जाने के लिए क्यों नहीं रोका ! जब शाहिद उसकी हर बात मानता था तो शायद ये बात भी मान जाता..अगर उसे उस दिन सिर पर चोट नहीं लगती तो शायद दोनों के अम्मी-अब्बू को अपनी जान गँवानी नहीं पड़ती। उधर शाहिद को जोया की कमी खलने लगी थी, वो अपने आप को किसी अपराधी जैसा महसूस कर रहा था कि जो तकलीफ भरी जिंदगी उन दोनों ने जी, वो सिर्फ उसकी गलती की वजह से है..कि काश ! उसने बाहर जाने की जिद ना की होती तो ये सब ना होता। शायद जोया की सोच बिल्कुल गलत थी, क्योंकि वो जितना शाहिद को तकलीफ पहुँचाने के डर से, खुद को उससे दूर कर रही थी, उतनी ही शाहिद की गलतफहमी बढ़ती जा रही थी और अंत में उन दोनों के बीच का अनकहा प्यार, इस गलतफहमी का शिकार हो ही गया।

 जोया ने कार की रफ्तार बढ़ा दी, वो तो बस खुदा से दुआ करते हुए जा रही थी कि खुदा उसे उसकी गलती की इतनी बड़ी सजा ना दे, बस शाहिद से मुलाकात हो जाये ! 

 एक घण्टे के बाद वो उस जगह पहुँची, जहॉं उसे शाहिद के होने का पूरा विश्वास था। उसने कार साइड में लगाई, और भागी भागी अन्दर गई। जब जब शाहिद दुखी होता, या उसे खुदा से शिकायत होती तो, वो दरगाह में पहुँच जाता पर आज देखा तो सीन अलग था। शायद, आज शाहिद को खुदा से कोई शिकायत नहीं थी, वो तो सुकून से नींद ले रहा था। वो अपने छोटे बैग को तकिया बनाकर, साइड में बैग रखकर नींद के आगोश में जा चुका था पर उसका शरीर कड़कती ठंड में सिकुड़े जा रहा था, पर भला एेसा कभी हो सकता है जब आप खुदा के दरबार में हो और वो आप पर मेहर ना करे ! उसने शाहिद को अपनी शॉल उढ़ायी और उसके पास बैठ गई। अपनी आँखों से झलकते आँसूओं को, वो आज आखिरी बार सैलाब के रुप में बहा दे जाना चाहती थी। शायद दोनों के लिए कल का दिन एक नई सुबह लाने वाला था, सभी गलफहमियों को दरकिनार कर उनके अनकहे प्यार को एक जुंबा मिलने वाली थी। 


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