राही
राही
"रोहन, रोहन ! यार, कहॉं भागा जा रहा है, ट्रेन पकड़ ही लेंगे, तेरा दोस्त फास्ट मै है !" अंशुमन ने कहा।
" हॉं, जरुर फास्ट मैन जी..आप सही समय पर ट्रेन तो पकड़ लेते है पर गलत डिब्बे में भी पहुँच जाते है, हाहा !", रोहन ने अंशुमन का मजाक उड़ाते हुए कहा।
" हॉं, तो सिर्फ एक ही बार तो हुआ था ! ", अंशुमन ने अपने बचाव में कहा।
" हॉं, और उस एक बार में ही तू कैसे बच गया था, अभी तक नहीं बताया है, तूने ! ", रोहन ने अपनी नजरें टेढ़ी करते हुए बोला।
" तुझे बताकर मुझे मरना है, क्या ? पता चला, तूने मजाक मजाक में एक्सपेंरिमेंट कर डाला, मैं तो तुझे जेल से निकालने के लिए अपनी चप्पलें घिसता रह जाऊँगा ! ", अंशुमन ने हँसते हुए कहा।
" कुछ भी बोलता है, मुझे तो यकीन है, तूने सभी औरतों और लड़कियों के सामने अपने हाथ-पैर जोड़कर गिड़गिड़ाया होगा और तेरी भोली शक्ल सी देखकर..उन्हें तुझ पर दया आ गयी होगी ! ", रोहन ने हँसते हुए कहा।
" कुछ भी ! वैसे तो, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था पर चल, तू यहीं समझ ले.. ", अंशुमन ने ट्रेन में चढ़ते हुए कहा।
" मैं भी पता लगाकर ही रहूँगा, चाहे इसके लिए मुझे तुझे किसी दिन ट्रेन के लेडिज डिब्बे में धक्का हीं क्यों ना मारना पड़े ! ", रोहन ने अपनी शैतानी हँसी दिखाते हुए कहा।
अंशुमन के जिस राज को जानने की हर कोशिश रोहन महीनों से कर रहा था, उसे पता ही नहीं है, कि वो राज हर दिन अंशुमन के साथ उसके बैग में सफर करता है !
अंशुमन बैग में से दो डायरी निकलता है, और ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट खाली होने पर झट से बैठ जाता है..
क्योंकि बेचारा रोहन अभी भी भीड़ में खड़ा हुआ है, तो वो चिल्लाते हुए कहता है, " शहजादे को उनकी शाही गद्दी मुबारक हो ", और ट्रेन के डिब्बे में बैठे सभी लोग हँसने लग जाते है !
अंशुमन को भी ना चाहते हुए हँसी आ जाती है..वो कानों में हेडफॉन्स लगाकर, एक डायरी में कुछ लिखने लगता है..
" तेरी यारी पर अपनी सॉंस कुर्बान
पर शाही गद्दी कभी नहीं ! ",
और खुद ही में हँसने लगता है, रोहन और अंशुमन की बचपन की दोस्ती, अब कॉलेज की दोस्ती बन चुकी थी..कभी हमेशा साथ रहने वाले दोस्त, अब सिर्फ घर से कॉलेज और कॉलेज से घर..ट्रेन के सफर में साथ वक्त गुजारते है ! शायद, सही कहते हैं।
" दोस्ती, वक्त के साथ जरुर बदल सकती है पर दोस्त की वजह से चेहरे पर आने वाली हँसी कभी नहीं, चेहरा खिलखिलाता ही है !",
ऐसे ही, एक दिन जब दोनों कॉलेज के लिए साथ निकले, रेलवे प्लेटफॉर्म पर खड़े ही थे, कि अंशुमन के फोन पर किसी का कॉल आ गया और वो बातों में इस कदर गुम हुआ कि वो गलती से लेडिज डिब्बे में चढ़ गया ! रोहन ने भी सोचा, अंशुमन उसके पीछे आ रहा है..इसलिए कुछ नहीं बोल पाया ! अंशुमन अपनी बातों में गुम, एक लड़की के पास जाकर बैठ गया..पर सीट पर बैठने के एक दो मिनट बाद ही जब उसका कॉल नो सिग्नल की वजह से कट गया, तो वो गुस्से में चिल्लाया " इस फोन के सिग्नल की तो ऐसी की तैसी ", अंशुमन के चिल्लाने पर लेडिज डिब्बे की सारी लड़कियॉं और औरतें चौंक पड़ी और होश में आते ही अंशुमन और भी बुरे तरीके से चिल्लाया ! उसे समझ ही नहीं आ रहा था, वो क्या करे ? खिड़की के बाहर खुद को फेंके, या फिर दरवाजे से कूद जाये या फिर रोहन का खून ही कर दे ! उसके माथे पर पसीने आते देर ना लगी और हाथों ने कंपकंपना शुरु कर दिया..डिब्बे की घुसट आँटियां अंशुमन पर धावा बोलने ही वाली थी, कि तभी एक लड़की ने अंशुमन का हाथ पकड़ा और बोलनी
लगी, " क्या हुआ, क्यों घबरा रहे हो..मैं यहीं हूँ...मैं यहीं हूँ..", लड़की ने जल्द ही सबको यकींन दिला दिया कि अंशुमन, उसका हमउम्र भाई है..और अंधा है ! अंशुमन ने भी चालाकी से काम लेते हुए, ड्रामा करना ही ठीक ही समझा..वो भी फुल फार्म में अँधे होने का नाटक करने लगा, चिल्लाने लगा " बहन, मेरी छड़ी खो गई.. मेरी छड़ी खो गई.. ", जिसके जवाब में लड़की ने..अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, " मेरा हाथ है, ना भाई ! ", दोनों को बेसहारा सोचते हुए, सभी ने उन्हें ढॉंढ़स बधॉंना ही ठीक समझा..
इतना ड्रामा होने के बावजूद, अंशुमन खुश था और उसके चेहरे की हँसी ये जगजाहिर कर रही थी !
" ओए, हँसना बंद करो..वरना, मुँह तोड़ दूँगी और हाथ छोड़ो मेरा ! ", लड़की ने अंशुमन से धीमी आवाज में कहा।
जिसके जवाब में, अंशुमन ने कहा, " समझो सबको शक हो जाएगा, मुझे थोड़ी देर के लिए बर्दाश्त ही कर लो..",
फिर लड़की ने गुस्सा होते हुए कहा, " तुम्हारे हाथ की पकड़, बड़ी ही मजबूत है..और मुझे दर्द हो रहा है..मैं चिल्ला दूँगी ! ",
अंशुमन ~ " सॉरी ", कहा और उसका हाथ तुंरत छोड़ दिया..
थोड़ी देर बाद, लड़की ने अपनी डायरी निकाली और कुछ लिखने लगी... सबकी नजरों से बचाकर, अंशुमन अपनी नजरों से उस लड़की के शब्दों पर नजर फेरने लगा, कि तभी उस लड़की ने अंशुमन को टोका.. " तुम्हें शर्म नहीं आती, किसी के पर्सनल लेख को पढ़ते
हुए ! "
अंशुमन ने हँसते हुए कहा, " मुझे तो लगा, तुम मेरे लिए ही लिख रही हो ! मुझ जैसे हैंडसम लड़के को इंमप्रेस करने का इरादा है..", जिस पर लड़की ने गुस्से में अपनी डायरी बंद की और कहने लगी, " एक तो आजकल लड़को को अपनी खूबसूरती पर लड़कियों से ज्यादा ही नाज होता है, तभी तो टिक-टॉक पर लड़की बने फिरते रहते हो ! और दूसरी बात, मैं दुनिया के लिए नहीं लिखती !"
अंशुमन ने लड़की को चिढ़ाने के लिए कहा, " तुम टिक-टॉक चलाती हो, क्या ? वो क्या है, ना मुझे बड़ा ही बोंरिग लगता है..पर तुम्हारे लिए डाउनलोड भी कर लूँगा.. बोलो, बोलो ! ", और होना क्या था, इस बार तो लड़की ने अपना मुँह ही फूला लिया..
अंशुमन ~ " अच्छा, वैसे बहुत हो गया..तुम्हें तंग करना, ये बताओ..तुम्हारा लिखा हुआ दीवारों को सुनाती हो क्या ! ", इस पर तो लड़की ने अंशुमन के पैर पर अपनी सैंडल ही चुभो दी ! इधर सैंडल चुभी, उधर अंशुमन फिर जोर से चिल्लाया और खड़ा हो गया..फिर से सबकी नज़र अंशुमन पर हो गयी, कोई कुछ बोलता इससे पहले ही लड़की ने अंशुमन का हाथ कसकर पकड़ा और उसे अपने पास बिठाने लगी.. अंशुमन को भी मजाक सूझा और वो बुद्धू भाई होने का नाटक करने लगा ! थोड़ी देर इस तरह इन दो नकली भाई बहनों का ड्रामा चला और फिर स्टेशन आ गया..
प्लेटफार्म पर..
स्टेशन के आते ही लड़की ने अंशुमन का हाथ छोड़ा और भागने लगी, थोड़ी दूर पहुँची ही थी कि अंशुमन ने उसका हाथ प्लेटफॉर्म पर पकड़ लिया.. " सुनो, सॉरी..तंग करना मेरा मकसद नहीं था, बस तुम्हारे जैसे खूबसूरत चेहरे को देखते ही मेरा दिल फिसल गया और कुछ भी बड़बड़ाने लग गया ! अच्छा, सुनो मुझे " वो लड़का ", वाली कविता दुबारा पढ़नी है, कहॉं से पढ़ सकता हूँ. ", लड़की ने अपने हाथ से अंशुमन के हाथ की पकड़ को कमजोर किया और कहने लगी, " तुमने वो कविता पढ़ ली थी, क्या ! कैसे कर सकते हो, तुम ऐसा.. मैं दुनिया के लिए नहीं लिखती हूँ, मुझे डर लगता है ! ", बस, इतना कहकर वो अंशुमन की नजरों से दूर चली गयी ! अंशुमन, उस लड़की का पीछा करता तो इससे पहले ही रोहन ने उसके कँधे पर अपना हाथ रखकर उसे रोक लिया,
" शहजादे जी, आप रानियों और माताओं के कोप-भवन से सही सलामत कैसे बाहर आये..हमें भी बताएँ, ये राज़ की बात ! ", बस, उस दिन से रोहन ने अंशुमन की नाक में दम करके रखा है, एक तरफ अंशुमन रोहन के लिए हँसी का पात्र बन गया है, दूसरी तरफ वो राही के लेखों की नगरी से खुद को बाहर निकाल ही नहीं पा रहा है ! जी, हॉं.. अंशुमन और वो लड़की की लड़ाई के वक्त, उस लड़की " राही " की डायरी अंशुमन के बैग में जा गिरी थी.. अब अंशुमन इस उलझन में है, कि उस लड़की का नाम " राही " है, या कुछ और..वो उसे कभी पढ़ भी पायेगा या नहीं ! रोज, हर दिन वो कॉलेज जाते समय, लौटते समय, लेडिज डिब्बे के पास अपनी नजरें घुमाता है, उन दो हाथों की छुअन को दुबारा महसूस करना चाहता है, उन्हें कसकर पकड़ना चाहता है ! उसका दिल तो बहुत करता है, लेडिज डिब्बे में घुस जाए..जो होगा, देखा जाएगा..पर फिर सोच में पड़ जाता है.. " राही का साथ उसे मिलेगा भी या नहीं !"
रोहन ने दुबारा, अंशुमन को आवाज लगाई है, पर अंशुमन ' राही ' की डायरी में गढ़े शब्दों पर अपनी अुंगलियों को फिराने में वयस्त नज़र आ रहा है,
कविता का शीर्षक है,
" वो लड़का "
वो लड़का चिल्लाता है
घबराता है, कॉंप जाता है
पर एक लड़की का हाथ
पकड़कर शर्माता भी है,
उसकी आवाज में मीठास है
हाथों की छुअन में हल्कापन है
जुबान कैंची की तरह पैनी है
फिर भी, दिल उसका बच्चा है,
वो लड़का शरारती है,
खामोश है, हैंडसम है
मुझसे कद में लम्बा है
और मेरे दिल के लिए
नयी पहेली भी है।
