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Sankita Agrawal

Abstract

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Sankita Agrawal

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ज्यादा देर नहीं हुई

ज्यादा देर नहीं हुई

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" सुनते हो, चाय बना दी है और पंराठे होटकैस में रख दिये है !! ध्यान से, खा लेना ", मिसेज वर्मा ने जोर से आवाज लगाई, अपना सामान उठाया और गेट की कुंडी बाहर से लगाकर चल दी । 

" और मिसेज वर्मा, आज तो आप बहुत ही सुंदर लग रही है ?? ", मिसेज शर्मा ने हँसकर पूछा तो मिसेज वर्मा शरमा गयी !

" अरे ! एेसा कुछ भी नहीं है, बस ये कुछ दिनों की आजादी जो मिली है, शायद वहीं वजह 

है ", मिसेज वर्मा आगे कुछ कहती की बीच में रामपाल जी बोल पड़े, " और क्या नहीं, एक बार वर्मा जी ठीक हो जाए, फिर तो वो अपनी नौकरी पर वापस और आपके हिस्से में वहीं चौका-बर्तन, कपड़ा और घर की चहारदीवारी ही आएगी !" 

रामपाल जी की बात सुनकर मिसेज वर्मा अचानक से हँसने लगी, जिसे देखकर रामपाल जी की मुँह टेढ़ा हो गया। 

स्कूल के लंच में " रामपाल जी ने बात तो सौ-टका की कही है, तीस साल लग गए आपको उस घर की चाहरदीवारी से बाहर आने में ! अब फिर आप इन तीस दिनों के पूरे होने के बाद फिर से वहीं सब करने लगोगी ! मैं तो कहती हूँ, सोचिए ये आपके चेहरे पर आयी खूबसूरती और खुशी क्यों है ?" मिसेज शर्मा ने कहा। 

मिसेज वर्मा जी ने कुछ सोचा, फिर कुछ पक्तियों में अपनी बात कही और वहॉं से चल दी, 

" देर लगी, बहुत देर लग गयी 

पर अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है,

एक बार जो पंछी उड़ना सीख जाए

फिर कहॉं उसे घौसला रास आए।"


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