पहला प्यार
पहला प्यार
मैं अपनी कक्षा में चंचल, शरारती बच्ची थी, वो शांत एकदम।
मुझे बहुत अच्छा लगने लग गया था वो पर शायद तब ये समझ भी थी कि इन सब बातों के लिए अभी हम छोटे हैं तो कभी कहा नहीं उसको या तब पता भी नहीं था कि कुछ कहना है। उसका चलना, उसका बोलना सब कुछ क्या खूब लगता था। साथ वाले डेस्क से उसको टेडी नज़रों से ताकना क्या ही दिल की धड़कने बढ़ा जाता था। यूं लगता था मानों सारा आसमान मुझ पर बूंदों की बौछार कर रहा हो जैसे, प्यासी धरती पे पड़ी पानी की पहली बूंदों सी खुशबू आ पड़ती थी जैसे मेरे नथुनों में।
पहला प्यार वो एहसास कुछ अलग ही होता है। फिर उन एहसासों पे बारूद के गोले अान पड़े, पापा का तबादला हो गया दूसरे शहर, नहीं जाना था मुझे पर जाना तो पड़ा ही, उसकी यादों में ही वक़्त बीता।
जैसे तैसे करके दो साल बीते और फिर से पापा का तबादला वापिस उसी शहर में हो गया जहां वो रहता था, मन ने तो जैसे छलांगे लगानी शुरू कर दी कि वापिस उसी स्कूल में उसी के साथ पर वक़्त को सब कुछ थोड़े ही मंज़ूर होता है। मम्मी पापा ने दूसरे स्कूल में दाखिल करा दिया पर मन खुश था कि चलो शहर तो वहीं है, एक दूसरे के दोस्तों के सहारे मिलना हो जाएगा।
यहां तक आते आते मेरी उसके लिए चाहत बढ़ गई थी पर मम्मी पापा को वादा किया था कि बारहवीं से पहले इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना।
नए स्कूल में एक दोस्त बना जो उसको भी जानता था, आजकल के वक़्त में जिन लड़कियों के ब्वॉयफ्रेंड नहीं होते उनका दोस्त बहुत मज़ाक बनाते हैं तो मैं खुद को बचाने के लिए इस का नाम ले देती थी, ये बात स्कूल के दोस्त ने जा के इसको बता दी, हुआ तो एक तरह से अच्छा पर मैं ठहरी भिरू, इसने फोन किया मुझे और पूछा कि क्या ये मैं सही सुन रहा हुं, मैं घबरा गई और बोल दिया कि पगला है क्या ? ऐसा कुछ नहीं है। उसने मुझ से फिर पूछा मैंने फिर भी मना कर दिया।
वक़्त बीत रहा था, मुझे लगता था कि अगर ये प्यार है आकर्षण नहीं तो बारहवीं करते करते पता लग जाएगा फिर उसके बाद हम बात कर लेंगे।
पर नहीं जानती थी कि ऐसा नहीं होता, ये 4g का ज़माना है यहां कब क्या हो जाएगा पता भी नहीं लगेगा।
यूं ही हुआ, दोस्तों से पता चला कि जनाब तो क्लास की टॉपर को डेट कर रहे हैं, ऐसा दिल टूटा, मैं स्कूल में ही बहुत रोयी। घर आ के मम्मा ने चेहरा देखते ही पूछा क्या हुआ ? उनको बताया तो वो भी रो दी, मै सब सांझा करती हूं अपनी मम्मा से। उनको रोता देख मैंने खुद को संभाला, मम्मा ने बोला कि कोई नहीं तू बारहवीं कर आराम से फिर देखते हैं।
बारहवीं के बाद मम्मा ने सुझाया कि फोन कर और अपने मन कि बात बोल दे, ना तो है ही, हां का चांस भी हो सकता है। कम से कम मन में मलाल तो नहीं रहेगा की उसको कभी बताया नहीं।
बहुत हिम्मत की, कई दिनों तक हिम्मत बटोरी और फिर फेसबुक पे उसको मैसेज किया, इधर उधर की बातें की, यहां मैं बता दूं कि उसका ब्रेकअप हो चुका था, तो उसको मैंने बोला कि मैं सालों से तुम को बहुत पसंद करती हूं, उसका जवाब आया कि तुम बहुत अच्छी लड़की हों, मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं, तुम्हे मुझसे अच्छा कोई ना कोई मिल जाएगा, क्यों मेरे साथ अपनी ज़िंदगी खराब करना चाहती हो ? उस पागल को क्या पता मेरे सपनों का, मेरे उसके लिए दीवानेपन का, बहुत टूटा हुआ महसूस किया मैंने, पर मेरी मम्मी ने बहुत संभाला मुझे।
आज मैं कामयाब हूं, शादी होने जा रही है मेरी पर वो मेरी यादों में है और हमेशा रहेगा पर एक बात जल्दी ही समझ आ गई की अच्छा है उसने हां नहीं बोला वरना फिर मैं बस उसकी परछाई बन के ही रह जाती, एक कामयाब मैनेजर नहीं बन पाती।
पहले प्यार का ना कोई वादा है मेरे पास ना कोई निशानी बस ढेर सारी यादें हैं और उसकी वो निगाहें जो जब तब पीछा करती हैं मेरा, अब भी कभी आमना सामना हो जाता है तो एक सिहरन से दौड़ जाती है, एक मीठी सी हलचल हो ही जाती है मन में, कभी कभी अधूरे ख्वाब आपको पूरा कर देते हैं।
इश्क़ के सदके ये जीवन के फलसफे।

