पहल
पहल
आज तुम्हारी याद बहुत शिद्दत से आ रही है! बेहद ही मुश्किल हो रहा है तुम्हारे बिना रहना, पास रहकर भी इतनी दूरियाँ! वो वक्त याद आ रहा है जब तुम मेरी एक झलक के लिए घंटों काॅफी शाॅप पर मेरे इंतजार में यूँ ही गुजार देते थे! मैं समय देकर भी इंतजार कराती रहती और बहुत बार वहाँ जाती ही नहीं। तुम इंतजार करते ही रहते जबतक की काॅफी शाॅप के बंद होने का समय न हो जाता!
लेकिन तब में और अब में जमीन आसमान का अंतर है तब मैं इंतजार कराती थी अब मैं इंतजार करती हूँ।समय के साथ सबकुछ अचानक ही बदल गया है।इनदिनों तुम काम में इतने व्यस्त हो जाते हो कि खाना पीना तक भूल जाते हो, तो मेरी याद कैसे रहेगी तुम्हें!एक ही घर में होकर भी इतने दूर हैं जैसे मीलों का फासला हो,अभी यही सोच रही हूँ कि कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा नहीं तो हम ये सब अच्छे समय को खो देंगे और हमारे पास कुछ शेष नहीं रह जायेगा।
रूपया तो सारी उम्र ही कमा सकते हैं लेकिन यह बहुमूल्य समय लौटकर नहीं आने वाला !मुझे ही कुछ करना होगा। मुझे ही पहल करनी होगी।