Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Romance

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Romance

फिरदौस का शिशु, अभिमन्यु …

फिरदौस का शिशु, अभिमन्यु …

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फिरदौस का शिशु, अभिमन्यु …        

अब तक फिरदौस का घाव पूरा भर चुका था। मगर सातवां महीना लग जाने से फिरदौस ने कोर्ट जाना स्थगित कर दिया था। अपने केसेस, अन्य अधिवक्ता को दे दिए थे।  

तीन दिन बाद कोर्ट से वापिस आकर हरिश्चंद्र जी ने, फिरदौस को बताया - आपने, हमारी प्रथम रात्रि पर यह कहा था ना! कि - 

“हमारे संविधान में, यह प्रावधान कर दिया जाए कि दो अलग संप्रदाय के लड़के-लड़की, जब शादी करने का फैसला लें तब लड़के को, लड़की का धर्म स्वीकार करने की कानूनन बाध्यता रहे। “

इस बात की अनुशंसा, मैंने तब कानूनविद एवं सरकार से की थी। 

आपको जानकार ख़ुशी होगी कि सरकार ने, नया अधिनियम पास कराया है। जिसमें अपना झूठा धर्म बताकर, कोई लड़का छल से किसी लड़की से शादी करे तो उसके सख्त दंड का प्रावधान किया गया है। साथ ही भिन्न संप्रदाय में शादी करने के लिए, आपके विचार अनुसार लड़के के लिए, लड़की के धर्म को स्वीकार करने की बाध्यता कर दी गई है। 

फिरदौस बहुत खुश हुई। तब हरिश्चंद्र जी ने कहा - 

वाह, फिरदौस कितना आला दिमाग है आप का! इसमें उपजे विचार को, देश के दोनों सदनों में अनुमोदित किया गया है। 

फिरदौस ने सधैर्य कहा - 

जी, मेरी ख़ुशी इस कारण नहीं कि मेरे सुझाव को क़ानून में स्थान मिला है। मेरी प्रसन्नता का कारण यह है कि इससे नफरत की जड़ पर मठा पड़ जाएगा। 

वस्तुतः , अभी की जा रहीं, संप्रदाय बाहर की शादियाँ, दांपत्य सुख के इरादे से कम अपितु कट्टरवादी लोगों के द्वारा, अपने धर्म के अनुयायी बढ़ाने के दुष्प्रेरित विचार से अधिक की जाती हैं। 

दुखद रूप से, इसमें लड़की को झाँसे दिए जाते हैं। यह प्रावधान करने से अब, अपना धर्म लड़की को नहीं, बल्कि लड़के को बदलना होगा। जिससे लड़की पर झाँसे एवं छल की संभावना कम हो जायेगी। यह कानूनी प्रावधान हो जाने से, अब से संप्रदाय बाहर की जो शादी होंगी उसमें आधार, सच्चा प्यार ही हो जाएगा। 

फिरदौस के इतना कहे जाने पर, उसे गर्भ में, हलचल अनुभव हुई। जैसे कि सत माही गर्भस्थ शिशु, अपनी माँ के कथन की ताली बजाकर प्रशंसा कर रहा हो। 

फिरदौस ने इसे अनुभव कर, पति का हाथ अपने पेट पर रखा। हरिश्चंद्र जी ने अपने बच्चे की गतिविधि अनुभव की, फिर कहा, शायद आपने, अभिमन्यु की कहानी पढ़ी हुई हो। अभिमन्यु ने माँ के गर्भ में रहते हुए, चक्रव्यूह में प्रवेश का जटिल ज्ञान अर्जित कर लिया था। वास्तव में यह सच है कि गर्भ में रहते हुए ही, हर शिशु, संस्कार ग्रहण करना आरंभ कर देता है। 

अतः बच्चे की ज्ञान एवं संस्कार की बुनियाद अच्छी सुनिश्चित करने के लिए, गर्भवती माँ को, अच्छे विचार एवं अच्छी बातें पढ़नी, देखनी, कहनी एवं सोचनी चाहिए। 

जिस तरह आप अपने गर्भकाल को निभा रही हैं। उससे मैं, कह सकता हूँ कि हमारा जल्द ही जन्म लेने वाला यह बच्चा, विलक्षण रूप से प्रतिभावान रहेगा। 

अपने पति से, प्रायः ही किसी किसी बात पर प्रशंसा सुनना अब तक, फिरदौस की आदत हो गई थी। फिरदौस अपनी ऐसी प्रशंसाओं से लजा जाया करती थी। तब फिरदौस के मुखड़े पर गुलाबी आभा का बसेरा हो जाता था। 

जैसे फिरदौस को, पति के मुख से अपनी प्रशंसा सुनना अच्छा लगता था वैसे ही हरिश्चंद्र जी को पत्नी, फिरदौस का लजा कर, गुलाबी हुआ मुखड़ा मन मोहक लगता था। 

अभी के इस अवसर का हरिश्चंद्र जी ने, लाभ उठाया था और सावधानी पूर्वक फिरदौस को, अपने बाहुपाश में बांध लिया। फिरदौस के लिए पति का आलिंगन, स्वर्ग से भी अधिक सुंदर स्थान था। हरिश्चंद्र जी के आलिंगन में वह, अपनी सुखद अनुभूतियों में खो गई थी। 

इधर फिरदौस को सुख पर सुख मिल रहे थे। साथ ही फिरदौस के साथ से उसके, पति हरिश्चंद्र असीम सुख अनुभव कर रहे थे। 

तब ही फिरदौस को तीन तलाक देकर खो चुके, उसके पूर्व शौहर के जीवन में कारावास के दुःख टूटे पड़ रहे थे। 

लगभग इसी समय पूर्व शौहर खुद से पूछ रहा था कि वह, नियमित ही पांच वक्त की इबादत करता रहा है। तब भी पिछले दो सालों से अधिक समय से, उसकी ज़िंदगी में ख़ुशी रूठ क्यों गई हैं?

वह बीबी के सुख से तो वंचित हुआ ही है। साथ ही ज़िंदगी के बेहतरीन माने जाने वाले जवानी के इस समय को वह, जेल में व्यर्थ जाने देने को मजबूर है। 

उस के जेल में होने से उसके, कार सर्विसिंग वर्कशॉप से होने वाली आय चौथाई रह गई है। अब्बा, गंभीर बीमार हो गए हैं। उनके इलाज के लिए वह हाजिर नहीं हो पा रहा है। 

मजहब की सेवा करने के लिए उसके उठाये कदम, असफल रह गए हैं। इतना ही नहीं फिरदौस, जिस पर उसने कातिलाना प्रयास किया था, उसका यह प्रकरण, फिरदौस के ही पति के न्यायालय में लग गया है। मालूम नहीं, यह जज उसे कितनी सख्त सजा देगा? 

अगर सख्त सजा दे दी गई और चार, छह साल और उसे जेल में रहना पड़ गया तो तब रिहा होकर उसकी ज़िंदगी में क्या बच रह जाएगा?

आज ही उसने कैदियों में, नए क़ानून की चर्चा सुनी है। जिसमें संप्रदाय बाहर शादी करने के लिए लड़के को धर्म बदलना अनिवार्य कर दिया गया है। इसे सुनने के बाद वह, सोचने लगा था कि उसके (छद्म रूप से) योगेश बन कर, किसी काफिर की लड़की से शादी की योजना तो अब, धरी की धरी रह जायेगी। 

इन सब विचारों से उपजी गहन निराशा में उसने अब, उन्हें कोसना शुरू कर दिया जिनकी बातों से दुष्प्रेरित हो उसने, फिरदौस के गर्भस्थ शिशु को मारना चाहा था। 

वह, अभी इन मानसिक अवसाद में डूबा हुआ ही था कि एक संतरी ने, उसे आकर बताया - आपके वकील, आपसे मिलने आये हैं। 

तब उसे, वकील से मिलने के लिए ले जाया गया था। 

वकील ने बताया - अफ़सोस, आपके अब्बा हुजूर का इंतकाल हो गया है। 

सुन कर वह फफक फफक के रो पड़ा। रोते हुए वह बुदबुदा रहा था - 

जिन्होंने, मेरे लिए अपनी ज़िंदगी की ख़ुशी कुर्बान कर दी, उन अब्बा हुजूर की ज़िंदगी के लिए मैं, कुछ नहीं कर सका। मेरे जैसा बदनसीब बेटा (इंसान) क्या दुनिया में कोई और होगा ? 

वकील ने अगले दिन, उसके अब्बा के सुपुर्दे खाक के वक़्त, उसकी जेल से रिहाई के लिए कोर्ट से जमानत एवं कस्टडी पैरोल के लिए, आवेदनों पर उसके दस्तखत लिए थे। 

तब उसने, वकील से पूछा - आपको क्या लगता है वह ज़ालिम जज, मेरी ज़मानत मंजूर करेगा?

वकील ने कहा - 

आपने पैरोल पर रहते हुए यह अपराध किया है, इस कारण संभावना तो नहीं है कि आपकी ज़मानत एवं पैरोल मंजूर हो सकेंगे। फिर भी प्रयास तो करना होगा, सवाल आपके वालिद के सुपुर्दे खाक किये जाने का जो है। 

वकील यह कह कर चले गया था। 

एक के बाद एक दुःख के टूट रहे पहाड़ ने, पूर्व शौहर को तब विद्रोही बना दिया। उसने सोचा कि बेकार है उसका नियमित इबादत करना। इस विचार के बाद उसने स्वयं से कहा - 

मैं, कसम खाता हूँ कि अब से मैं, कभी इबादत नहीं करूँगा।   

अगले दिन उसे कोर्ट में ले जाया गया। उसके प्रकरण को सबसे पहले सुना गया। तदुपरांत जज हरिश्चंद्र ने कहा - 

यह अदालत किसी बेटे को, उसके पिता के प्रति, आदर एवं कर्तव्य के मार्ग में बाधक नहीं बन सकती है। यह कह कर हरिश्चन्द्र जी ने, उसकी सशर्त जमानत मंजूर कर ली थी। 

तब वह सीधे कब्रिस्तान की ओर ले जाए जाते हुए, विश्वास ही नहीं कर पा रहा था कि फिरदौस का पति, यह जज उसके साथ इतना भी उदार हो सकता है …. 

 


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