फिर वही कहानी
फिर वही कहानी
फिर वही कहानी दोहराता हूँ । सच और झूठ फरेब और मक्कारी की। यह संघर्ष तो चलता रहेगा सदियोंसे चलता आया हैं। आगे भी चलता रहेगा। जब तक मनुष्य जिन्दा हैं।
कहानी हैं स्वार्थी की अजब - गजब मगर हैं तो कमाल की । लेकिन कहानी शुरू करने से पहले मेरा नम्र निवेदन हैं की यह कहानी सर्वथा काल्पनिक हैं और इसमें जो भी घटना ,पात्र भी काल्पनिक हैं वास्तविक जीवन का कोई सम्बन्ध नहीं हैं अगर कोई साधर्म्य होगा तो यह महेज इत्तेफाक हैं।
एक था रंगा एक था बिल्ला , एक पातालयंत्री दूसरा बिलकुल निठल्ला। दोस्ती उनकी खूब जमी। मिलकर दोने ने एक प्लान बनाया। अमितजादे चंगु - मंगू को भी साथ लिया। फिर क्या देखना था चल पड़े। ना कोई रोकनेवाला ना कोई टोकनेवाला खुद ही मर्जी के मालिक।
अंधेर नगरी चौकट राजा अपने हिसाब से वह चलने लगे चाटुकार को साथ लेके नेक और ईमानदार लोगो को परेशांन करके कभी बंदी बनाकर तो कभी दहशत फैलाकर राज करने लगे। रंगा ने रंग दिखाए बिल्ला ने बिल्ले पहनाये चंगुने डंडे मुस्तैदी से मुस्टंडे की फ़ौज बनाई। मंगू ने झंडे लहराए गुलामी के सुनहरे बताकर मुंगेरीलाली बहकाया। देखते - देखते माहौल बना। हिन्दू - मुस्लिम शिख ईसाई साथ मिलकर रहनेवाले आपस में लड़ने लगे। सुख दुःख में साथ देनेवाले एकदूसरे के जान के दुश्मन बने।
चंडालचौकडी बेहद खुश थी सबकुछ उनके मुताबिक जा रहा था। वह अपने हिसाब से कुछ खरीद लेते कुछ बेच देने लगे। देखते - देखते लोगो को जूठे सपने दिखाकर जाट धर्म प्रदेश में बांटकर कभी दंगे फसाद में उलझाकर लूटने लगे। लोग परेशां हो गए। मगर उनकी ताकद के आगे कुछ कर नहीं पा रहे थे।
कुछ बुजुर्ग ईमानदार लोग उनकी चाल समाज गए मगर कुछ कर ही नहीं प् रहे थे। करे तो क्या करे ? फिर उसने एक बैठक बुलाई और सबकुछ एकता और इंसानियत की बात मिलजुलकर चांडाल चौकड़ी के खिलाफ लड़ाई करने की तैयारी की। फिर क्या होना था वही हुवा जिसका इंतजार था। कल तक जो एकदूसरे के जानी दुश्मन बन बैठे थे। वही गले मिलके पछतावा करने लगे माफी मांगने लगे गले मिलने लगे। बड़ा ही दिलचस्प माहौल था। इतना खूबसूरत सिन था। रोना धोना गले लग जाना। चंडालचौकडी का डर कर सहम कर ग़ुस्से से भाग जाना। इतिहास ने फिर से वही पन्ना दोहराया। जो कभी कालचक्र में दफ़न हुवा था। फिर से आबाद हुवा इंसान। हंसी खुसी प्यार मोहब्बत का जन्नत और स्वर्ग का साक्षात्कार हुवा।