Saroj Verma

Romance

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Saroj Verma

Romance

फ़ौजी....

फ़ौजी....

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अरे, सूर्या की मां! सूर्या की पसंद के मोतीचूर के लड्डू बनाएं हैं ना!, दौलतराम जी ने अपनी पत्नी जानकी से पूछा।

लो जी! अब गुस्सा मत दिलाओ, कल से लगी हुई हूं अपनी बेटे की पसंद की चीजें बनाने में और अब जाके तुमको मोतीचूर के लड्डू याद आ रहें हैं, एक तो तुमसे किसी काम का आसरा नहीं है, बस बैठे बैठे हुक्म झाड़ते रहते हो, जानकी गुस्से से बोली।

अरी भाग्यवान ! नाराज़ क्यों होती हो? मदद के लिए कहा तो होता, दौलतराम जी बोले....

बस...बस...रहने भी दो ये झूठी हमदर्दी, बस तुम तो यूं ही हुक्का गुड़गुड़ाते रहें, यहीं बैठे बैठे सूर्या की गाड़ी का टेम भी जाएगा, जानकी बोली।

तू गलत समझ रही हो, मैं तो अपने दोस्त शिवराज की राह देख रहा था, वो फूलों की माला बनवाकर लाने वाला था, कह रहा था कि स्कूल मास्टर जी ने कहा है कि वो स्कूल के बच्चों से इस बार सूर्या का स्वागत करवाने वाले हैं, इतनी कम उम्र फ़ौजी जो बन गया है हमारा सूर्या, दौलतराम जी बोले।

सच में जी! मुझे भी बहुत गर्व है कि मैं सूर्या की मां हूं, जानकी बोली।

इस बार तो मैंने एक बात और सोची है, दौलतराम जी बोले।

वो क्या जी? जानकी ने पूछा।

उसके आते ही वो मेरा दोस्त दयानंद है, जो सीतानगर में रहता है, पिछले महीने उसके घर गया ना था उसकी बेटी बड़ी होनहार, घर के काम काज में निपुण और अभी उसने बारहवीं का इम्तिहान दिया है, मुझे तो वो सूर्या के लिए भा गई है, दौलतराम जी बोले।

अच्छा! ये तो बहुत बढ़िया बात है जी! वैसे लड़की का नाम क्या है? जानकी ने लालायित होकर पूछा।

सुपर्णा नाम है उसका, दौलतराम जी बोले।

बहुत सुंदर नाम है, नाक नक्शा तो अच्छा है ना! जानकी ने पूछा।

बहुत ही सुन्दर है, तुम देखते ही पसंद कर लोगी, दौलतराम जी बोले।

     तभी, बाहर दरवाजे पर से किसी ने जानकी को पुकारते हुए कहा.....

जानकी काकी !दूध ले लो, बुआ ने भेजा।

  अरे तू! बाहर क्यों खड़ी है? भीतर आजा, जानकी बोली।

तभी दौलतराम जी ने देखा कि सफ़ेद साड़ी में लिपटी हुई यही को अठारह उन्नीस साल एक लड़की ने आंगन में प्रवेश किया, दूध से भरी बाल्टी जमीन पर रखी और जानकी से बोली....

काकी! ये लीजिए दूध, आज आपने ज्यादा दूध के लिए कहा था , बस इतना ही बचा था, बुआ ने कहा दे आओ, नहीं तो कहीं खत्म ना हो जाए, अब मैं जाती हूं।

अरी! ठहर तो सही, जानकी बोली।

बहुत देर हो रही है, घर में बहुत काम पड़ा है, देर हो जाएगी तो बुआ गुस्सा करेगी,

और इतना कहकर वो लड़की चली गई....

दौलतराम जी ने जानकी से पूछा....

अरी! भाग्यवान! कौन थी ये लड़की! इतनी कम उम्र में विधवा का वेष देखकर अच्छा नहीं लगा, भगवान ने ना जाने कौन सा अन्याय किया है इसके साथ, रंगों की जगह फीका जीवन जीने को मजबूर कर दिया बेचारी लड़की को।

हां बेचारी ही तो है, मालती नाम है इसका, वो पानकुंवर जीजी है ना! उनकी भतीजी है, पहली बार ससुराल विदा होकर गई थी तो विधवा हो गई थी, पति की किसी एक्सीडेंट ने जान ले ली, ससुराल ने उसी दिन मनहूस कहकर घर से निकाल दिया और घर से सौतेली मां, इसलिए तो बाप ने जल्दी ब्याह कर दिया था कि लड़की पराए घर में ही सही सुख चैन तो रहेगी लेकिन बेचारी की किस्मत में ये सुख भी नहीं लिखा था, इसलिए पानकुंवर जीजी अपने घर ले आईं, लेकिन बेचारी को यहां भी तो आराम नहीं है, दिनभर कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती है, जानकी बोली।

सुनकर बहुत दुःख हुआ, दौलतराम जी बोले।

हां! मुझे भी इस पर बहुत तरस आता है, जानकी बोली।

  अच्छा तो मैं चलता हूं, शिवराज के घर ही देखकर आता हूं वो मिल गया तो स्टेशन चला जाऊंगा, सूर्या को लेने, ये कहकर दौलतराम जी चले गए।

  तो ये थे दौलतराम जी जो आज अपने इकलौते बेटे को लेने स्टेशन जा रहे थे, जिसका नाम सूर्य प्रकाश है, जिसे दो महीनों की फ़ौज से छुट्टी मिली है और जानकी ने उसके लिए तरह तरह के पकवान बनाएं हैं, सूर्या के पैदा होने के बाद किसी कारणवश जानकी फिर कभी दोबारा मां ना बन सकी, दौलतराम जी और जानकी की दुनिया बस सूर्या के इर्द-गिर्द ही घूमती है, इकलौता बेटा होने के बावजूद भी दौलतराम जी ने सूर्या को फौज़ में भेजा, दौलतराम जी भी पहले किसी ऑफिस में कैशियर के पद पर थे लेकिन ये काम उन्हें रास ना आया, क्योंकि गांव में उनकी बहुत जमीन जायदाद थी, वो उनके इकलौते वारिस थे इसलिए उन्होंने गांव में रहना ही बेहतर समझा।

      कुछ ही देर में सूर्या की ट्रेन स्टेशन पर आ पहुंची और गांव वालों ने उसका स्वागत शानदार तरीके से किया, फिर कुछ देर में सूर्या घर भी पहुंच गया, उसके साथ गांव के कुछ बुजुर्ग भी पहुंचे, जानकी ने सबको जलपान कराया और फिर सब अपने अपने घर लौट गए।

   सबके जाने के बाद अब मां और पिता ने अपने बेटे से जी भर के बातें कीं और साथ फिर सबने साथ बैठकर खाना खाया।

   सूर्या का सारा दिन ऐसे ही दोस्तों और पड़ोसियों से मिलते मिलाते बीत गया, दूसरे दिन सुबह सूर्या चिड़ियों की चहचहाहट के साथ जागकर बाहर आया, आंगन में लगे हैंडपंप से पानी निकाल मुंह धोया और आंगन के चबूतरे पर जाकर बैठ गया, हैंडपंप की आवाज सुनकर जानकी भी जाग गई और आंगन में आकर सूर्या से बोली___

जाग गया तू, चल मैं अभी तेरे लिए चाय बनाकर लाती हूं, इतना कहकर जानकी चली गई।

  तभी किसी ने दरवाज़े की सांकल खटखटाई....

जानकी ने भीतर से कहा....

सूर्या जरा देख तो कौन आया है?

अभी देखता हूं मां! और इतना कहकर सूर्या ने दरवाज़े खोले, देखा तो सामने मालती दूध की बाल्टी लेकर खड़ी थी, सूर्या एक पल को उसे देखकर बुत की तरह खड़ा रहा....

तब मालती बोली....दूध ले लीजिए.....

हां.... हां...लाइए और सूर्या ने वो दूध से भरी बाल्टी अपने हाथों में ले ली, बाल्टी देते ही मालती चली गई और सूर्या उसे एकटक देखता रहा।

  तभी जानकी ने दरवाज़े के पास आकर पूछा__

कौन था बेटा?

मां !कोई लड़की दूध देकर गई है, सूर्या ने जवाब दिया।

हां! मालती होगी, ला तो दूध की बाल्टी मुझे दे, मैं उबालने के लिए चढ़ा दूं और सूर्या ने दूध की बाल्टी जानकी को दे दी लेकिन मालती उसके ज़हन में समा गई थी, उसने दिन भर उसे भूलने की कोशिश की लेकिन वो उसे भूल ना पाया।

   अब वो रोज़ सुबह मालती के इंतजार में सुबह जल्दी उठकर आंगन में पहुंच जाता और दूध की बाल्टी वो ही लेता।

अब ये रोज़ का ही सिलसिला हो गया था, मालती कुछ ना बोलती, दूध की बाल्टी देती और चली जाती, एक दिन सूर्या से ना रहा गया और उसने मालती को टोकते हुए पूछा, जबकि सूर्या को उसका नाम पता था फिर भी उसने पूछा___

क्या नाम है आपका?

जी! मालती और इतना बताकर वो चली गई और सूर्या की बात शुरू ही नहीं हो पाई थी कि मालती ने खत्म कर दी, इस बात से सूर्या थोड़ा चिढ़ भी गया कि कैसी लड़की है ना बोलती है और ना मुस्काती।

   फिर एक रोज़ दौलतराम ने सोचा क्यों ना सूर्या को सुपर्णा से मिलवा दिया जाए और अगर पसंद आ गई तो सूर्या की छुट्टी खत्म होने से पहले सगाई कर देंगे और अगली छुट्टी पर घर आएगा तो शादी हो जाएगी।

लेकिन ये बात जब सूर्या से की गई तो वो बोला___

मैं कहीं भी लड़की देखने नहीं जाऊंगा,

जानकी और दौलत ने पूछा__

लेकिन क्यों?

क्योंकि मुझे कोई और पसंद है, सूर्या बोला।

तब तो और भी अच्छा, भला बता तो वो कौन है, जानकी ने पूछा।

वो मालती है, सूर्या बोला।

ये कैसे हो सकता है? वो तो विधवा है, पहली बार ससुराल गई थी तो पति नहीं रहा, वो तेरे लिए ठीक नहीं है, जानकी बोली।

मैं ये सब नहीं मानता, उसका पति नहीं रहा तो उसका इसमें क्या दोष? क्या उसे हक़ नहीं जिन्दगी हंसी ख़ुशी गुजारने का, सूर्या बोला।

लेकिन समाज क्या कहेगा? दौलत राम जी बोले।

तो ये समाज मालती को क्या दे रहा है? दुख, बेइज्जती, गालियां, क्या किया इस समाज ने उसके लिए, उसके दुखों से छुटकारा दिला दिया, सूर्या बोला।

लेकिन तुम एक फौजी हो, ये तुम्हें शोभा नहीं देता, दौलतराम जी बोले।

  वही तो मैं एक फौजी हूं जैसे मैं सरहद पर डटकर देशवासियों की रक्षा करता हूं, वैसे ही एक अबला और असहाय स्त्री की रक्षा करना भी मेरा धर्म है, यही एक फौजी का धर्म होना चाहिए और मैं वहीं फौजी होने का धर्म निभाना चाहता हूं, सूर्या बोला।

  सूर्या की बातों से उसके माता-पिता की आंखें खुल गईं और वो इस शादी के लिए मान गए, सूर्या ने एक उदाहरण पेश किया, एक विधवा से विवाह करके तथा एक सच्चे फ़ौजी का धर्म निभाया।

   इस शादी के लिए सूर्या ने मालती की भी रजामंदी ली, उसने कहा जब तक मालती राजी नहीं होगी तो ये शादी नहीं होगी मैं कोई तरस खाकर उससे शादी नहीं कर रहा उसकी पसंद नापसंद भी मायने रखती है और इस शादी से भला मालती को क्या एतराज़ हो सकता था, उसकी तो जिन्दगी संवर रही थी और वो इस शादी के लिए राजी हो गई।

धूमधाम से मालती और सूर्या का ब्याह हो गया,

सूर्या को असली फ़ौजी का दर्जा मिला, जिसने देश की सरहद पर दुश्मनों का नाश किया और समाज में फैली रूढ़िवादी परम्पराओं का भी नाश किया।

समाप्त...


    



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