Vandana Singh

Tragedy

3  

Vandana Singh

Tragedy

फाइल

फाइल

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"सुनील, तुमने फाइल अभी तक साइन क्यों नहीं की? "

"सर, अभी मैं उसे स्टडी कर रहा हूं !"

"इतना टाइम क्यों लेते हो स्टडी करने में ? जल्दी करो, ऊपर से प्रेशर आ रहा है। यह काम टाइम से करना है। "

"जी सर। " अनिल की निगाहें फिर से फाइल के पन्नों पर दौड़ रही थी। एक-एक आंकड़ा गौर से देख रहा था वह। 

उसने अपने मातहत नरेश को बुलाया और बोला-" यह आंकड़े किसी भी तरह से मुझे ठीक नहीं लग रहे। आपने देखा कि नहीं? ठीक से वेरीफाई किया है ?"

नरेश बोला-" जी सर ! "

"पर मेरी जानकारी के हिसाब से यह आंकड़ा हो ही नहीं सकता। मैं यहां बैठकर इतने दिनों से वॉच कर रहा हूँ। मुझे तो जो आउटपुट इनपुट आप ने दिखाया है वैसा नहीं दिखता!" अनिल पहले से ही नरेश की संदिग्ध गतिविधियों से परेशान था अब कागजी लिख पढ़त में भी नरेश का कार्य भ्रष्टाचार की ओर इशारा कर रहा था। 

"सर, सालों से मैं यही काम कर रहा हूं। आपके पहले के कोई ऑफिसर कभी भी मेरे काम में कोई कमी नहीं निकाल पाए। 20 साल से मैं हूं यहाँ पर। इस बीच कितने ऑफिसर आए और गए अब आप आए हैं तो आपको मेरी काम में कमी दिख रही है ? "

नरेश रोष में बोला। 

"आप जाइये मुझे आपसे कुछ नहीं कहना है।" सुनील से ये सुनते ही नरेश केबिन के बाहर चला गया था और सुनील  इस उधेड़बुन में कि क्या करें? 


"सर, मैं इस फाइल को साइन नहीं कर सकता। मैंने आपको पहले भी बताया था कि नरेश जी के काम से और उनके व्यवहार से मैं संतुष्ट नहीं हूँ। उनके द्वारा जो आंकड़े दिए गए हैं विश्वसनीय नहीं है। जो गलतियां की गई है जानबूझकर की गई है। मैंने उन्हें पहले भी कई बार चेतावनी दी है पर उनमें सुधार नहीं हो रहा है। आप कुछ कीजिए। " बड़ी देर की उधेड़बुन के बाद उसने आखिर अपने बॉस को सूचित किया। 

"ओ के !"के बाद फोन दूसरी तरफ से डिस्कनेक्ट कर दिया गया। 

अगले दिन सुनील को हेड ऑफिस की ओर से चेतावनी पत्र मिला, जिसमें उसकी कार्यशैली और व्यवहार को पद के अनुरूप नहीं बताया गया था। 

सुनील समझ चुका था कि वह किस तरह के जाल में फंस चुका है।

उसकी सैलरी रोक दी गई थी, कार्य बढ़ा दिए गए थे और कार्यों की निगरानी भी। पर नरेश का कुछ भी नहीं बिगड़ा था वह अभी भी पहले की तरह काम कर रहा था। 

वो दबंग व्यक्तित्व का ऐसा भ्रष्टाचारी आदमी था जिसकी विभाग में अच्छी पैठ थी। 

सुनील अब टूटने लगा था नई नई उम्र थी, नई गृहस्थी, बूढ़े माँ बाप, दो अनब्याही बहनें, दो छोटे छोटे बच्चे और हाल में ही जो फ्लैट लिया था लोन लेकर उसकी किस्तें भरी जानी थी। इतना सब कुछ इसी नौकरी के भरोसे होना था। 

सुनील ने लाचार हो हथियार डाल दिये। 

आज 15 अगस्त को सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी को दिये जाने वाले अवार्ड की घोषणा की जानी थी, उसने नरेश की तारीफों के पुल बाँध दिये। 

बदले में उसकी रुकी हुई सैलरी भी रिलीज हो गयी और उस पर कसा शिकंजा भी ढीला कर दिया गया। 

सुनील अब पहले जैसा स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं रह गया है। 

उसके गले में बंधी टाई, टाई नहीं 

घर परिवार की वो जिम्मेदारियाँ हैं जो उसका दम घोंटती हैं। 

अब वो उस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा है जहाँ उसके कान बंद कर दिये गये हैं और मुँह भी अब वह उतना ही खोलता है जितना खोलने दिया जाता है।


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