काश, वो समझ पाते!
काश, वो समझ पाते!


जैसे ही मेहमानों ने दहलीज के अंदर कदम रखा उसने दरवाजा बन्द कर लॉक लगा दिया।
"आप दरवाजे को यूँ बन्द क्यों रखती हैं?" उन्होंने पूछा
"अरे, ये बच्चे हैं न! भाग जाते हैं तो परेशानी होती है। "
"किसे? किसे होती है परेशानी? "
"कहाँ जाते हैं भागकर? "
"कहीं नहीं बस आस पास के घरों में! उनको परेशानी होती है। "
"तो तुम क्यों परेशान हो? बच्चे हैं, पड़ोस के बच्चों के साथ खेलकर आ जायेंगे! उनका भी मन होता है। उन्हें भी वही चाहिये जो दूसरे बच्चों को। उनको रोको नहीं! "
"जी आप सही कह रहीं पर काश सभी समझते! "
पलकें भीग आईं थी उसकी।
आज बाबू का बर्थडे था। घर पर थोड़ी सी तैयारी की थी। कुछ लोगों को बुलाया भी था पर कोई नहीं आया! और फोन पर विश पहले सब करते थे पर धीरे धीरे अब उतना भी नहीं करते। पास- पड़ोसी, नात- रिश्तेदार, सगे -सम्बन्धी सब भूलते जा रहे उसे क्योंकि......
वह मानसिक रूप से विकलांग है!