कोरोना काल में डॉक्टर
कोरोना काल में डॉक्टर


"आप आज सुबह 7 बजे के निकले केवल लन्च के लिये आये और तब से अब आ रहे हैं? रात के साढ़े नौ बज रहे हैं! "
विनीता के गुस्से में आशीष के लिये परवाह थी।
"क्या करूँ ,पूरा दिन दौड़ते बीता। कई लोगों को भर्ती करवाने, बेड दिलवाने, ऑक्सीजन सिलिंडर के इंतज़ाम में लगा हुआ हूँ।
कितने लोग अपनी कॉलोनी के कोरोना पॉजिटिव हो गये हैं, कुछ पता है तुमको?
लोगों में 'पैनिक ' फैलता जा रहा है। "
डॉ. आशीष एक जिम्मेदार चिकित्सक था। कोरोना काल में उसके बॉस ने कोरोना सम्बन्धित मैनेजमेंट की सारी जिम्मेदारी उसे दे रखी थी।
"मैं समझती हूँ, पर मुझे एक डॉक्टर होने के साथ साथ एक पत्नी और माँ का फ़र्ज़ भी निभाना है। "
कह कर चुप हो गयी डॉ.विनीता। पेशेगत जिम्मेदारियों और मजबूरियों का अहसास तो उसे भी था।
बच्चे सो गये थे, खाना खा कर बिस्तर पर जाते ही उसको भी नींद आ गयी। थोड़ी देर बाद नींद खुली तो पतिदेव फिर नदारद थे।
कॉल किया - "कहाँ हो?
अरे यार, पेसेंट सीरियस है। कॉल आया था। तुमको बताये बिना निकल आया। सॉरी"
"कोई बात नहीं, इज़ एवरी थिंग अंडर कंट्रोल? " विनीता ने पूछा
"हाँ यार, तुम सो जाओ" आशीष का ज़वाब आया
"ओ. के.! "
थोड़ी देर वेट करके वो सो गयी।
सुबह पति से पूछा-" कब लौटे रात में? "
"2.30 पर, एक्चुअली कई लोग आ गये थे, ऑक्सीजन के लिए।
डिमांड ज्यादा, सिलिंडर उतने थे ही नहीं। बहुत माथापच्ची करी, किसी तरह मैनेज हुए। " आशीष
ने बताया
"हम्म... ये तो बहुत बुरे हालात हैं।
आगे क्या करोगे। " डॉ. विनीता सोच में पड़ गयी थी
"शासन प्रशासन से मदद मांगेंगे और क्या? " आशीष बोला
"संदीप के पापा सीरियस हैं, कॉल आया था। उनको ICU में एडमिट करवाना है। मैं अपने रिसोर्सेस से बात कर रही हूँ, तुम भी देखो कहीं कुछ गुंजाइश हो? " विनीता ने कपड़े बदलते हुए कहा।
"देखता हूँ। "लेटे लेटे ही डॉ.आशीष का ज़वाब आया।
"सुनो, कल मेरी ड्यूटी पर तो एक आदमी ने बड़ा हँगामा किया।" विनीता ने आशीष को बताया।
"क्यों? " आशीष ने पलट कर उसकी ओर देखा । उसकी आँखों में हैरानी और गुस्सा था।
"उसे कुछ परेशानी थी। कोरोना पॉजिटिव था। एडमिशन चाहता था हॉस्पिटल में। "
"तो? " आशीष का गुस्सा ये जानकर भी कम नहीं हुआ।
"मैंने उसे कोविड् हॉस्पिटल के लिये रेफर कर दिया। पर वो तैयार ही नहीं हो रहा था। सामान्य मरीजों के बीच उसे रखने से बाकी मरीज भी संक्रमित हो सकते हैं, ये बात समझने को वो तैयार ही नहीं था। कोविड् हॉस्पिटल में तैनात स्टाफ कोविद् के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं और इलाज़ के लिये ज़रूरी सुविधाओं से युक्त भी। ये बात उसको समझने में बहुत वक़्त लगा। खैर, बाद में समझ गया। "
विनीता ने उसे तसल्ली दी तो वो समझ गया।
आखिर डॉक्टर होने के साथ वो एक पति भी था।
"तुम अभी तक लेटे हो? तबियत तो ठीक है? आज ड्यूटी....? "
विनीता उसे यूँ लेटा देख चिंतित हो रही थी।
"शरीर टूट रहा है। पता नहीं क्यों? 
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रात में नींद नहीं मिली शायद इसीलिए! " आशीष ने पलटे हुए ही ज़वाब दिया।
उसकी बात सुनकर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी पर दिल सिहर गया था - कोविड की आशंका से।
12 बजे वो फिर निकल गया घर से हॉस्पिटल। एक तरफ शहर में कोरोना की वजह से हालात बिगड़ रहे थे तो दूसरी ओर अलग ही आलम था।
वो सारी प्रीकाशंस लेकर ही जाता था हॉस्पिटल । ग्लव्स, मास्क, फेसशील्ड, सैनिटाइजर अब यूनिफॉर्म का हिस्सा थे।
मरीज देखते हुए सोशल डिस्टेंसिङ रखने की कोशिश करता, PPE kit पहनता ,तो कई पढ़े लिखे मरीज़ भी भुनभुनाते।
आज भी एक भुनभुनाते हुए सुना रहा था-
"फालतू तमाशा बना रखा है। इतना भाव खा रहे हैं डॉक्टर लोग! दूर से ही देखते हैं। हाथ तो लगाते नहीं। दूर दूर खड़ा कर रखते हैं। आपस में दो लोग बात कर रहे हो पास आकर, तो भी डाँट देते हैं। इतना क्या हउव्वा बना रखा है! मामूली सर्दी जुकाम है। सबका ठीक हो जाता है । "
पीछे खड़े व्यक्ति ने पूछ लिया - "फिर शहर में अफरा तफरी क्यों मची है? TV में काहे दिन रात दिखा रहे? "
"कुछ नहीं, पैसा बना रहे हैं सब डराय के। " उसने बड़ी अकड़ के साथ ज़वाब दिया।
"अच्छा? जैसे तुम कह रहे हो न चाचा, वैसे नदीम भी कहता था। कहता था- हॉस्पिटल न जाऊंगा। न भर्ती होऊँगा। काढा पीकर रेस्ट लेकर ठीक हो जाऊँगा।
जब 6 दिन न ठीक हुआ तब घर वाले भर्ती करवाने दौड़े। हॉस्पिटल में जगह तो मिली पर वेंटिलेटर नहीं। कल शाम को मर गया। "
डॉक्टर आशीष सुन रहे थे समस्त वार्तालाप। मन को थोड़ा तसल्ली हुई।
उनको याद आया जब वो पिछले हॉस्पिटल में थे और एक गम्भीर मरीज को वेंटिलेटर पर डालकर 3 दिन इलाज़ करने के बाद जब मरीज़ की मौत हुई तो कैसे उसके रिश्तेदारों ने हँगामा काटा था और लोकल मीडिया ने भी उनका साथ दिया था।
लोग मानते थे कि वेंटिलेटर पर मरीज़ को सिर्फ पैसे कमाने के लिये डाला जाता है।
आज लोग और मीडिया ख़ुद देश में वेंटिलेटर क्यों नहीं हैं, वेंटिलेटर विशेषज्ञ क्यों नहीं हैं? ये सवाल पूछ रहा है।
शरीर में दर्द बढ़ रहा था, पर लोग कतारों में खड़े थे। कुछ कोविड की जाँच करवाने आये थे, उनके चेहरे अलग से पढ़े जा सकते थे। मास्क पहना सबने था पर पहनने का तरीका बहुतों का गलत था।
जब दर्द न सहा गया तो उसने बॉस को फोन किया- "सर, तबियत ठीक नहीं। शायद मैं भी कोविड पॉजिटिव हो गया हूँ। "
"ठीक है, तुम्हें अर्ली लीव की परमिशन दी जा रही है। पेसेंट मेरे पास भेज दो। " बॉस ने कहा
घर पहुँचा तो पत्नी भी खाँस रही थी। देखकर घबरा गया। अभी तक अपनी बात थी पर अब...
"चलो अभी के अभी टेस्ट करवाओ "
उसने कहा
"हाँ, बच्चों का भी। "
"RTPCR का रिजल्ट आने में टाइम लगता है। एंटीजन टेस्ट करवा लेते हैं पहले हम दोनों। "
एंटीजन टेस्ट दोनों का पॉजिटिव आया। RTPCR का सैंपल दे दिया गया। उसका रिजल्ट भी पॉजिटिव आया। पूरी फैमिली कोरोना पॉजिटिव बच्चों सहित।
आज होम इसोलेशन के 6 दिन हो गये थे और वो सोच रही थी - हमेशा से चाहती थी, कुछ तो रेस्ट मिले उनको भी, मुझे भी। अब मिला तो ऐसा। हम डॉक्टर हैं न!