Vandana Singh

Tragedy

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Vandana Singh

Tragedy

एक डॉक्टर की विवशता

एक डॉक्टर की विवशता

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"आइए ,बैठिए बताइए क्या हाल है?" उसने मरीज़ को बैठने के लिये इशारा किया ।

" ठीक है सर बीपी थोड़ा बड़ा रहता है और शुगर भी आजकल कंट्रोल में नहीं रहता । शरीर में बहुत थकान सी रहती है ।" उस अधेड़ से व्यक्ति ने बैठते बैठते बामुश्किल बताया ।

"आप एक्सरसाइज रेगुलर कीजिए । रोज सुबह शाम टहलना चाहिए ।खाना पीना सोना सब कुछ नियमित होना चाहिए और सब से जरूरी बात तनाव रहित जीवन ,जिसके लिए म्यूजिक सुनिए, योगा, प्राणायाम इत्यादि करिए ।दवाएं नियमित रूप से खाइए।" उसने हिदायतें दीं 


 "जी सर ,रोज इनको समझाता हूंँ । मेरी तो सुनते नहीं, आपके कहने से ही समझेंगे ।" मरीज़ के साथ आया तीमारदार जो उसका बेटा लग रहा था निराश भाव से बोला ।


उसने पर्चे पर दवाएं लिखकर पर्चा पकड़ाया और उस मरीज के जाने के बाद दूसरे मरीज का प्रवेश हुआ -"डॉक्टर साहब ,नींद नहीं आ रही है तीन-चार दिन से। सिर भारी भारी रहता है और किसी काम में मन भी नहीं लगता ।"

"क्यों ?ऐसा क्यों ?कोई वजह?"

 उसने पूछा

 "बच्चों के एग्जाम चल रहे हैं। बड़ा12वीं में है और छोटा दसवीं में ।दोनों बच्चों का बोर्ड है ।एग्जाम उनके, टेंशन मेरी । 

छोटा तो पढ़ता ही नहीं! बड़ा रात रात भर जग कर पढ़ता है ।"


"कोई बात नहीं ,मुझे देखिए मेरी बेटी भी में है। मैं टेंशन नहीं ले रहा ।यह दवाई लिख रहा हूं इसे रोज रात में सोने के पहले खा लीजिएगा आपको आराम हो जाएगा " कह कर उसने दवाइयाँ लिख दीं 


अब अगले मरीज की बारी थी ।महिला थी कोई 25 -30 की उम्र की । ग्रामीण पृष्ठभूमि की लग रही थी-" डॉक्टर साहब ,पेट में दर्द है! जब कुछ खावत है तब दर्द बढ़ जात है और उल्टी भी आवत है!" उसने मरीज का मुआयना किया और उसे समझाया -"आपको अल्सर बन रहा है पेट में ।रोज सुबह नाश्ता करती हैं आप ?"

"नहीं सर ,टाइम नहीं मिलत । बच्चों को आदमी को देत हैं टाइम से । हम सीधे 'लंच 'करत हैं 12 बजे ।"

"और रात का खाना कितने बजे?" उसने पूछा 

" साहब, आज 9:00 बजे तक हो जात है।"

 "ओके ,आप सुबह का नाश्ता बच्चों को देने के साथ-साथ खुद भी करें और अपना पेट इतनी देर तक खाली ना रखा करें वरना अल्सर बढ़ जाएगा। थोड़ी थोड़ी देर पर कुछ खाते रहें । देखिए, अपने खानपान की परवाह न करने के कारण आपको एनीमिया भी है! " उसने मरीज़ की स्थिति पर चिंता ज़ाहिर की 

"अनेमिया!वह क्या होता है डॉक्टर साहब? " बेचारी ग्रामीण महिला के माथे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं थी ।

"एनीमिया मतलब खून की कमी"

" तो साहब क्या खून चढ़ावे पड़ी?" 

"नहीं ,अभी उसकी जरूरत नहीं है।खानपान में सुधार कीजिए और यह दवाई खाइए ।"

इस मरीज के जाने के बाद एक-एक करके इस तरह से करीब 15-20 मरीज और आए लंच का टाइम हुआ ही था कि उसी समय एक इमरजेंसी केस आ गया। फटाफट उस इमरजेंसी को डील करने में लग गया वह । फिर भी करीब 25 से 30 मिनट उसमें लग गया।

 फुर्सत मिली तो एक करीबी रिश्तेदार अपने मित्र के साथ आकर बैठे थे -"डॉक्टरसाहब ,यह मेरे सबसे करीबी मित्र हैं ।इनको देख लीजिए ।बहुत विश्वास के साथ आपके पास लाया हूंँ ।" उसने मरीज के हाथ से फाइल ले ली और पुराने पर्चोँ को ध्यान से देखने लगा ।किसी भी विधा का डॉक्टर बचा नहीं था जिसके पास यह मरीज चक्कर ना लगाया हो पर उसे तसल्ली नहीं मिल रही थी।

" देखिए इनकी सारी जाँचें दोबारा करानी पड़ेगी। तभी रिपोर्ट देखने के बाद मैं कुछ बता पाऊंगा"

 "क्यों सर? पुरानी जांचें है ना! कुछ शंका और अधिकार के भाव से मरीज़ बोल पड़ा ।

" साल भर पुरानी है सारी जांचें! दोबारा रिपीट कर आइएगा तभी कुछ बता पाएंगे ।" उसने दृढ़ता से स्पष्ट किया ।

"सर जरूरी है क्या? पहले ही इतनी जाँच करवाये हैं!"रिश्तेदार के स्वर में मिन्नत का भाव था।

" हाँ, जरूरी है ।"कहकर उसने पर्चे पर जांच लिखकर पकड़ा दी। मरीज ने रिश्तेदार जी को हिकारत से देखा और पर्चा ले कर उठ खड़ा हुआ । निराश भाव से सिर हिलाते हुए दोनों उठ कर चले गए। 3:00 बज गया था लंच के लिहाज से वह लेट हो गया था । फोन उठाकर देखा तो 2-3 मिस्ड कॉल घर की पड़ी थी, जो उसी वक्त आई थी जब वह इमरजेंसी केस डील कर रहा था ।

उसने घर पर कॉल बैक किया । बेटी ने फोन उठाया - "गुड़ीया , मम्मी कहां है ?"

पापा, मां किट्टी में गई है। आज आप लंच पर नहीं आए थे तो थोड़ा गुस्सा थी ।चलो कोई बात नहीं पर मुझे यह बताओ ,आपको पता है ना अगले हफ्ते से मेरे एग्जाम है? मुझे मैथ्स में इक्वेशन समझ नहीं आ रही। आपने बोला था कि मेरे कंसेप्ट क्लियर कर दोगे ।तो कब पढ़ आओगे मुझे? मैं एक हफ्ते से आपका वेट कर रही हूँ ।" बिटिया ने शिकायत की


 "बस बेटा, आज ही! मम्मा से कहना मैं शाम को जल्दी आ जाऊंगा और तुम्हें पढ़ाऊंगा भी"


" ओके पापा ,"बेटी ने फोन रख दिया और और फिर से उसने मरीज देखना शुरू कर दिया ।आधे घंटे बाद उसे महसूस हुआ उसका सर भारी हो रहा था और पेट में हल्के दर्द के साथ मितली सी महसूस हो रही थी। उसने टेबल की दराज में से दवाई निकाली और बगल में रखे जग में से गिलास में पानी उड़ेल कर दवा पानी के साथ खा ली और फिर से मरीज देखने लगा । वह बार-बार घड़ी देखता जा रहा था मरीज देखते देखते भी ।

शाम के 5:00 बजे फ्री होकर फटाफट घर पहुंचा तो गुड़िया रानी इंतज़ार में ही थी । देखते ही वो बोला-" देख गुड़िया, मैं आ गया ना टाइम से !आओ, फटाफट तुम्हारे मैथ्स कंसेप्ट क्लियर करता हूंँ ।"

 ड्रॉइंग रूम में ही पढ़ाई शुरू हो गई ।पत्नी जी अंदर से निकलीं तो बिफर उठीं-" आते ही शुरू हो गए आप !पहले हाथ मुँह धोकर कुछ चाय नाश्ता कर लीजिए। "

जब तक चाय आती हॉस्पिटल में एडमिट पेसेंट के राउंड लेने का टाइम हो गया था । ना बेटी के मैथ्स कंसेप्ट क्लियर कर पाया ना ढंग से खा पी पाया और राउंड्स लेने निकल पड़ा । राउंड्स लेकर वापस आया तो 8:00 बज रहे थे । फिर बिटिया को पढ़ाने बैठा तो लगातार 3-4 फोन काल आ गयीं जिन्हें निपटाते निपटाते 9-9.15 हो गये ।

बीवी बच्चे सब नाराज !जो मिला चुपचाप खाया और बिस्तर पर पहुंचा तो नींद नहीं आ रही थी। कुछ टेक्सबुक पढ़ीं, न्यूज़ सुनी सोशल मीडिया खंगाला, फिर अपनी बी पी की दवाएँ खाईं , आखिर में नींद की दवा खाकर लेटा तो सोच में डूब गया-

 उसके रूटीन में नियमित जैसा कुछ नहीं था !बस, रोज हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों का राउंड लेना, सलाह देना ,ओपीडी में मरीज देखना ,इमरजेंसी हैंडल करना उसका जीवन था ।सबको नियमित दिनचर्या की सलाह देने वाला संयमित खानपान और तनाव मुक्त जीवन की सलाह देने वाला डॉक्टर खुद जरूरतों के आगे कैसा विवश हो चुका था!! 



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