चोर दरवाजा
चोर दरवाजा


" मैडम, एमज़ॉन से आपका ऑर्डर आया है, ले लीजिये" फोन पर ये कॉल सुनकर वो तुरंत ही दरवाजे पर पहुँची तो देखा कुरियर बॉय 2 पैकेट लिये खड़ा था। दोनों प्रीपेड थे तो झटपट उसने पैकेट लिये और खोल कर देखने लगी। एक में उसका पसंदीदा सूट और दूसरे में उसका मैचिंग ब्लाउस था जिसके इंतज़ार में वो अपनी पसंदीदा साड़ी अब तक नहीं पहन पायी थी। सूट का साइज चेक करने जब वो कमरे में गयी तो ब्लाउस को बाहर ही चेयर पर छोड़ गयी।
साइज चेक करके निकली तो आलमारी खोल साड़ी निकाल ही रही थी नये ब्लाउस का साइज चेक करने और मैचिंग देखने के लिये कि उसकी कामवाली रेखा ने आवाज़ दी- " दीदी, दरवाज़ा बन्द कर लो, हम जा रहे हैं। "
बाहर आई तो देखा, रेखा एक झोले में कपड़े डाल रही थी। ये वही कपड़े थे जो उसने उसे आज ही दिये थे - होली पर बच्चे को पहनाने के लिये । नयी शेरवानी और खुद की एक नयी मैक्सी ,जो ऑनलाइन मँगवा तो ली थी पर साइज में छोटी निकल आयी थी। उसे कंपनी को वापस करने की बजाय उसने उसे रेखा को देना उचित समझा। इसके पीछे उसका थोड़ा सा आलस और कामवालियों को खुश रखने की मानसिकता भी थी।
खैर रेखा कपड़े झोले में रखते समय खूब खुश भी थी तो उसे तसल्ली भी हुई।
उसके जाते ही वो फिर से आलमारी की ओर गयी और वो साड़ी हाथ में लेकर चेयर की ओर गयी अपना मैचिंग ब्लाउस लेने। पर ये क्या? ब्लाउस तो नदारद था। उसकी निगाहों को यकीं नहीं आया, तो ऊपर नीचे, अगल बगल सब जगह ढूंढा। सोचा, कहीं और रख दिया होगा। यहाँ होता तो मिल ही जाता।
पूरे दो घण्टे वो ढूँढती रही, आखिर जब घर में कहीं नहीं मिला तो रेखा को फोन किया। उसका फोन स्विच ऑफ था। उसके हसबैंड के नम्बर पर फोन किया तो फोन उठा।
"मैं विष्णुपुरी से बोल रही हूँ जहाँ रेखा, तुम्हारी वाइफ काम करती है। क्या वो घर पहुँच गयी? पहुँच गयी हो तो बात करा दो"
उसके स्वर में थोड़ा सख्ती थी, जिसे शायद वह व्यक्ति भाँप गया था।
"मैडम, मैं अभी बाहर हूँ। घर पहुँच कर बात कराता हूँ"
"ओके" कह कर उसने फोन काट दिया।
शाम को रेखा आयी खूब मुस्कुराती हुई। वो तो इंतज़ार में थी ही, उसने पूछा- "मेरा एक सामान नहीं मिल रहा, ढूँढ ढूँढ कर थक गयी हूँ"
"अच्छा, इसीलिए आप फोन की थी? क्या खोया है मैडम? कोई कपड़ा है क्या? "
"हाँ यार, ऐमज़ॉन से आज ही आया था"
"अरे, मैडम वो यहीं कुर्सी पर था न? गलती से हमारे कपड़ा में चला गया" रेखा भोली बनते हुए बोली।
"ऐसे कैसे? जो कपड़े हमने तुम्हें दिये वो तुम्हारे हाथ में खुद से दिये । फिर जो अभी अभी पैकिंग से निकला कपड़ा था और जिसकी पैकिंग भी वहीं थी, उसे तुमने गलतफहमी से कैसे रख लिया? " गुस्से और तल्खी को दबाते हुए वो बोली।
"नहीं मैडम, बस गलतफहमी से ही चला गया " रेखा ने अपना बचाव कि
या
"ठीक है, वापस तो लाना चाहिये था" उसके स्वर में अब क्षोभ और हताशा थी ।
"अरे मैडम भूल गये, ले आयेंगे" रेखा कह रही थी
"चलो, ठीक है" उसने कहा
अगले दिन सुबह फिर रेखा नहीं लायी उस ब्लाउज़ को फिर से भूलने का बहाना किया। अब उसका मूड खराब हो रहा था। उसने डिक्लेअर कर दिया- "अब रहने दो तुम। जितने का सामान था तुम्हारी सैलरी से उतने पैसे कटेंगे। अब सामान वापस नहीं चाहिये। "उस शाम को रेखा नहीं आई काम करने।
देर शाम तक वेट करने के बाद जब उसने जोमैटो से खाना ऑर्डर कर दिया और ऑर्डर रिसीव करने के लिये दरवाजा खोला तो एक पैकेट सामने पड़ा था जिसमें वो सारे कपड़े थे जो कल रेखा ले गयी थी।
अगले दिन रेखा आयी तो महीने की उसकी पगार पूरी बिना कोई पैसा काटे उसे दी गयी।
"देखो रेखा, मैं जानती हूँ तुमको अच्छे कपड़ों का शौक है, पर तुमको छोटी सी चीज पर लालच करने की क्या ज़रूरत? मैंने तुम्हें हमेशा बिना माँगे भी बड़ी बड़ी चीजें दी हैं। और मुझसे माँगती तो इससे भी कहीं ज्यादा अच्छा तुम्हारे नाप का ब्लाउस तुम्हें देती। " कहते हुए उसने सच में एक नया ब्लाउस जिसमें सलमा- सितारों वाला काम भी था और कलर भी सुंदर ,उसे दिया। ये उसकी शादी के समय की साड़ी का ब्लाउस था जो बगैर पहने ही छोटा हो गया था। पूरी पगार पा कर और नया ब्लाउस पा कर रेखा खुश तो लग रही थी। सिर झुकाये झुकाये ही बोली-" मैडम, हम लिये नहीं थे । "फिर वो काम करके चली गयी।
शाम को फिर नहीं आयी, अगले दिन फिर वो इंतज़ार ही करती रही। महिला दिवस का दिन था। उसे एक कार्यक्रम में बोलने के लिये बुलाया गया था पर उसे घर के कामों से ही फुर्सत नहीं थी। पतिदेव ने पूछा - रेखा नहीं आयी?
उसने जवाब दिया- "सैलरी मिली है, खर्चा करने के लिये भी तो छुट्टी चाहिये। वैसे भी आज महिला दिवस है। वो मना रही अपने हिस्से का महिला दिवस " कह कर हँस दी वो।
सारा काम करके कार ड्राइव करके जब वो फंक्शन में जाने के लिये निकली तो कॉलोनी के ही दूसरे कोने पर रेखा अपनी सहेलियों संग बैठी बातें करती दिखी। दिल कुढ़ कर रह गया उसका। उस दिन रेखा नहीं आयी। दो दिन वेट करने के बाद उसने रेखा के हसबैंड को फोन किया और उसे पूरी बात बतायी।
उसी शाम रेखा का फोन आया-" मैडम, आप हमको चोर कह रही हैं। हमारे पति कह रहे हैं कि तुम काम न करो"
वो अवाक् रह गयी थी ये सुनकर। उसने तो रेखा की 'चोरी ' को भी गरीब की मजबूरी समझ कर उसे माफ कर दिया था और उसे सीधे तरीके से सामान गिफ्ट कर ले जाने का रास्ता भी दिया था पर शायद रेखा को नहीं चाहिये था सीधा रास्ता। उसे तो चाहिये था - सिर्फ और सिर्फ ' चोर रास्ता'। अब एक महीने पहले गायब हुई अँगूठी और पर्स का भी रहस्य उसी 'चोर' और 'चोर दरवाजे ' की ओर ही इशारा कर रहा था।