वैक्सीन- एक लघुकथा
वैक्सीन- एक लघुकथा


"मुझे डर है वो लोग माँ को vaccine नहीं लगवाएंगे" उसके स्वर में चिंता झलक रही थी।
"आपको ऐसा क्यों लगता है? पढ़े लिखे हैं वो दोनों, जानते हैं कि कितनी खतरनाक बीमारी है? सरकारी नौकरी में हैं दोनों लोग, उन्हें तो सारी गाइड लाइन पता होंगी। भारत सरकार ने कितने व्यवस्थित तरीके से ये सारी चीजें लोगों तक पहुंचाने का अभियान चला रखा है, क्या उन्हें नहीं पता? केवल रेजिस्ट्रेशन कराना और वैक्सीनेशन के लिये बतायी जगह और समय पर पहुंचना है।"
पत्नी का जवाब आया।
"अरे... ये बात नहीं तुम समझती नहीं हो" वो झल्ला उठा था।
सीनियर सिटीजन को सरकार की ओर से कोविड वैक्सीन लगवाई जा रही है, ये जानने के बाद से ही वो बेचैन था।
वो बेचैन था -अपनी माँ के लिये ,जिससे वो दूर था अपनी नौकरी की खातिर।
यूँ तो माँ कोई अकेली नहीं थी बल्कि उनके पास उनका छोटा बेटा और बेटी थे, उनकी देखभाल करने के लिए।
शादी के बाद कुछ महीने बाद ही नौकरी के लिये वो दूसरे शहर आ गया था सपत्नीक। परिवार ने काफी विरोध किया था। उनकी मंशा थी कि वो अपनी पत्नी जो उस परिवार की बहू भी थी, को वही छोड़ दे परिवार की सेवा के लिये।
पत्नी पढ़ी लिखी थी उसी के समकक्ष और कैरियर ओरिएंटेड भी थी तो उसकी भी इच्छा थी साथ आने की।
माँ ने दोनों को नालायक घोषित कर दिया। बेटे से ज्यादा बहू को। भाई ने घोषणा कर दी - "भैया की तरह नहीं बनूँगा "
इतने सालों में भी नाराज़गी दूर नहीं हो पायी थी उन लोगों की
भाई और बहन दोनों की शादी की उम्र निकल गयी थी पर उन्होंने की नहीं और माँ सेवा करती रही उन दोनों की वो बीच बीच में हाल चाल पूछ लेता था खुद ही अपनी ओर से।
आज भी रहा न गया तो काल किया।
बहन ने फोन उठाया।
"माँ का रेजिस्ट्रेशन करवाया वैक्सीन के लिये? "
जवाब - "नहीं'
सवाल- "क्यों? "
जवाब- "उनकी BP की दवाएँ चल
ती हैं, कार्डियोलॉजिस्ट से पूछेंगे तब... "
सवाल- "रेजिस्ट्रेशन करवा सकती हो?
सरकारी गाइड लाइंस के अनुसार स्वास्थ्य अधिकारी तय कर लेंगे। मेडिकलहिस्ट्री बता देना।"
जवाब - "मुझे नहीं पता, घर पर छोटे से बात कर लो "
अगले दिन फिर फोन किया
भाई ने फोन उठाया - "आप जानते नहीं हो भैया कितना प्रेशर है यहाँ? मेरा बॉस सर पर चढ़ा रहता है, मुझे साँस लेने की फुर्सत नहीं है " उसके स्वर में झुंझलाहट और गुस्सा था
"वैक्सीन के लिये रेजिस्ट्रेशन करवाने तक की भी नहीं? " वो बामुश्किल पूछ पाया था कि बहन फोन पर आ गयी थी -
"उससे बात मत करो। वो बहुत गुस्से में है"
"तो तुम ही कर दो ये काम" उसने विकल्प सुझाते हुए याचना की
"मैं कैसे कर दूँ? मेरे यहाँ छुट्टी नहीं मिलती! अभी डेपर्टमेंटल विजिट्स चल रही हैं। मुझे लाइज़ानिग करनी होती है। एक एक मिनट का हिसाब होता है! "
उसे गुस्सा आने लगा था
"यार, तुमको नौकरी ही तो करनी है, वो तो मैं भी करता हूँ। मेरे पास तो फैमिली भी है, मशीन से मिनट मिनट का हिसाब रखा जाता है और CCTV कैमरे से निगरानी भी होती है। फिर भी निभा रहा हूँ न। माँ यहाँ होती तो मैं ही करवा देता ये काम! "
अब वो दुखी हो रहा था
फोन कट गया था।
उसने फिर मिलाया तो माँ फोन पर थी।
बोलीं- "बेटा, नहीं करवाएंगे ये लोग। वैसे भी मुझे क्या ज़रूरत वैक्सीन की? उमर बची ही कितनी है? "
उनकी आवाज़ में बेबसी और लाचारगी थी।
फिर झूठी हँसी में दुख को छुपा कर बोलीं- "बहू कैसी है? बच्चे क्या कर रहे? "
"वो अच्छी है, बच्चे भी मजे में हैं। अभी ड्यूटी पर ही है।
कह रही थी कोई न राजी हो रहा हो, तो तुम ही चले जाओ। माँ को यहाँ लाकर वैक्सीन लगवा दो।"
माँ चुप हो गयी थी। पता नहीं किसलिए- दुख से या अफसोस से, उनकी आँखें सजल हो उठीं थी।