Jyoti Naresh Bhavnani

Inspirational

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Jyoti Naresh Bhavnani

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पड़ोस की साफ सफाई भी है ज़रूरी

पड़ोस की साफ सफाई भी है ज़रूरी

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में एकता महिला मंडल की सभी महिलाओं ने एक बैठक आयोजित की यह विचार करने के लिए कि इस बार किस तरह से महिला दिवस मनाया जाए जिससे वह वर्ष भर के बाकी दिनों से कुछ अलग सा लगे । किसी ने सुझाव दिया कि किसी हिल स्टेशन पर पिकनिक पर जाया जाए तो किसी ने कहा कि दूर किसी मंदिर में दर्शन हेतु जाया जाए। किसी ने कहा कि किसी अच्छी फिल्म को देखने जाया जाए और बाद में खाना किसी होटल में जाकर खाया जाए तो किसी ने कहा कि किसी आरोग्य विशेषज्ञ को बुलाकर महिलाओं में हो रही बीमारियों के निवारण हेतु तथा उनके स्वास्थ्य को ठीक तरह से चलाने के आसान और घरेलू उपाय बताए जाएं। बहुत ही लंबी चर्चा के बाद नेहा ने सलाह दी, "क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जिससे यह दिन हमारे लिए तो यादगार हो ही पर समाज के लिए भी प्रेरणादायी सिद्ध हो।" इस पर सभी ने पूछा," वो किस तरह से?" इस पर नेहा बोली, " हम अपने अपने घरों को तो साफ और सुथरा रखते ही हैं पर कई बार घर के बाहर हम सफाई नहीं रख पाते हैं, जिसके कारण एक तरफ तो पड़ोस में गंदगी दिखती है तो दूसरी तरफ उस कचरे पर मच्छर मंडराते रहते हैं जिस की वजह से घरों में बीमारियां फैलती हैं । तो इस संबंध में गली गली जाकर इसकी रोकथाम हेतु क्यों न कोशिश की जाए?" यह सुझाव सब को पसंद आया और सभी महिलाओं ने इस के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। 


बैठक के अंत में यह तय किया गया कि आठ मार्च को होली का त्यौहार होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ग्यारह मार्च को मनाया जाएगा और उस दिन सुबह आठ बजे घर से निकलकर अपने आस पास की गलियों में जाया जाएगा और सबको स्वच्छता हेतु जागरूक किया जाएगा।


ग्यारह मार्च को निर्धारित समय और निर्धारित स्थान पर सभी महिलाएं इकट्ठा हुईं और एक एक घर के बाहर जाकर मुआयना करने लगीं। किसी के घर के बाहर किसी ने पुराने चप्पल फेंक दिये थे तो उस के घर जाकर महिला मंडल की सदस्या लता ने उन्हें समझाया कि घर की तरह ये पड़ोस भी अपना ही है। घर की साफ सफाई के साथ पड़ोस को भी साफ सुथरा रखना ये प्रत्येक नागरिक का फर्ज़ है। इस तरह पुराने जूते रास्ते पर फेंकने से अच्छा है किसी गरीब को ये जूते दान दे दिए होते यह कह कर जैसे ही महिला मंडल की सदस्या लता वे जूते उठाने लगी तो वह पड़ोसी तुरंत अपनी करनी पर शर्मिंदा हुआ और उसने खुद ही वे जूते उठाए और अपने घर पर काम करने वाली औरत को दे दिए । महिलाएं और आगे बढ़ीं तो एक घर के बाहर उन्हें पुरानी दवाएं और दवाओं के खाली बक्से दिखे। तुरंत वे उस घर के अंदर गईं और अंदर जाकर उन्हें समझाया कि जब रोज़ कचरे वाले कचरा घर से लेने आते है तो फिर क्या ज़रूरत है इन्हें यहां फेंकने की? इस पर उस पड़ोसी ने हिचकिचाते हुए कहा," आज कचरे वालों ने छुट्टी रखी है इसलिए......"। उसकी बात को आधे में ही काटते हुए महिला मंडल की सदस्या मीना ने कहा, " इसलिए आपने घर का कचरा यूं बाहर निकालकर फेंक दिया! कचरेवाले आज ही नहीं आयेंगे न? कल तो आयेंगे न? क्या ये पड़ोस आपका नहीं है? इस को साफ रखने की क्या आपकी ज़िम्मेदारी नहीं है? " यह कह कर मीना खुद वो पुरानी दवाओं के एवं खाली बक्से उठाने लगी इस पर उस पड़ोसी ने शर्मिंदा होकर माफी मांगी और उन पुराने एवं खाली बक्सों को खुद उठाकर घर के कचरे के डब्बे में डाल दिया। महिलाएं थोड़ा और आगे बढ़ीं तो उन्हें किसी घर के बाहर पानी की तथा कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतलें दिखीं। वे तुरंत उस घर में गईं और उन्हें समझाया कि यूं खाली बोतलें रास्ते पर फेंकना अच्छा नहीं है। इस पर उस घर के किसी पुरुष ने कहा, "हमने अपने घर के बाहर इन्हें फैंका है इसमें आपको क्या तकलीफ है?" इस पर ग्रुप की सदस्य सुहानी ने उन्हें समझाया कि बजाय इन बोतलों को रास्ते के बीचों बीच फेंकने के, इन्हें किसी बंगार वाले को दे दिया होता तो इनका रीसाइक्लिंग करके इनको पुनः किसी काम में लाया जा सकता था। यह कह कर सुहानी ने पास से गुज़रते भंगार वाले को रोका और उसे सारी खाली बोतलें पकड़ा दीं ।यह देखकर उस पड़ोसी को भी शर्मिंदगी महसूस हुई और उसने भी माफी मांगी।


अब महिलाओं ने अपने एक पड़ोस का मुआयना पूरा किया और अपने पिछले पड़ोस की और चल दीं। वहां एक एक घर के बाहर उन्होंने पुराना झाड़ू और पुराने सफाई के कपड़े देखे जो किसी ने अपने घर की सफाई करने के बाद बाहर सड़क पर फैंक दिये थे। वे तुरंत उस के सामने वाले घर में चलीं गईं और वहां जाकर पूछा कि क्या उन्होंने ही यह सब कचरा घर के बाहर फैंका है तो उस घर के किसी सदस्य ने कहा, " हां, तो इसमें क्या हो गया। ये सामान अब हमारे काम का नहीं है इसलिए हमने इसे फैंक दिया, इससे आपको क्या परेशानी हो रही है?" इस पर महिला मंडल की सदस्या शारदा ने कहा, " इसमें हमें ही नहीं पर सब को परेशानी हो सकती है। आपने अपने घर की सफाई कर के इस सामान को तो बाहर फैंक दिया पर देख नहीं रहे हो इस मैले कपड़े पर किस तरह मच्छर मंडरा रहे हैं? इस तरह से बीमारी नहीं फैलेगी तो और क्या होगा? इनको यहां फैंकने से अच्छा होता कि इन्हें किसी प्लास्टिक में बांध कर कचरे के डब्बे में फेंका होता।" यह कह कर शारदा खुद उन मैले कपड़े को प्लास्टिक में ढालने लगी तो पड़ोसी अपनी करनी पर शर्मिंदा हुआ और शारदा के हाथ से वो प्लास्टिक लेकर अपने घर के कचरे के डब्बे में फेंक दिया।


यूं मुआयना करते करते दोपहर का समय हो चुका था। सूरज की गर्मी से सभी महिलाएं पसीने से लथ पथ हुई जा रहीं थीं। उन्होंने यह निश्चय किया कि अब सिर्फ इसी पड़ोस का मुआयना करके आज के कार्यक्रम को विराम दिया जाएगा। इसी निश्चय के साथ महिलाएं और आगे बढ़ीं तो उन्हें एक घर के बाहर रद्दी कागज़ात दिखे तो वे उस घर के अंदर चली गई। ग्रुप की सदस्या पूजा ने उन्हें समझाया कि यूं रद्दी कागज़ सड़क पर फेंकने से वे हवा का एक झोंका लगते ही पूरे पड़ोस में इधर उधर फैल जाएंगे और पूरे पड़ोस की रौनक को ख़राब कर देंगे। बजाय इन्हें यूं रास्ते पर फेंकने के अगर इन्हें अपने घर के कूड़ेदान में फेंका जाए तो घर के साथ साथ पूरा पड़ोस भी साफ साफ दिखेगा।" पूजा ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, " मोदीजी पूरे देश को साफ सुथरा रखने के लिए कितनी मेहनत और कोशिश कर रहे हैं। पर उनके अकेले की कोशिश से क्या होगा। जब तक हम सब एक होकर इस कोशिश में उनका साथ नहीं देंगे तब तक न तो देश में कहीं सफाई दिखेगी और न ही देश से बीमारियां दूर होंगी । " इतना सुनते ही उस घर के पुरुष सदस्य तुरंत घर के बाहर गए और रद्दी कागज़ उठाकर अपने घर के कचरे के डब्बे में डाल दिए। महिला मंडल की महिलाएं जो कड़कती धूप में अब पूरी तरह से थक चुका थीं, वे आज के इस कार्यक्रम को यहीं पर विराम देकर अपने घरों की ओर चल दीं अपने घर के दायित्वों को पूरा करने के लिए।



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