पहला धर्म है राष्ट्रहित और भाईचारा
पहला धर्म है राष्ट्रहित और भाईचारा
कहीं गोलियां चल रहीं थीं, तो कहीं आग जल रही थी। हर जगह धुंआ धुंआ सा उठ रहा था। लोग यहां से वहां दौड़ रहे थे। सारे लोग डर के मारे कहीं न कहीं छुपने की जगह ढूंढ रहे थे। कुछ देर पहले जिस बाज़ार में रौनक छाई हुई थी, वहां पर अब वीरानी छाई हुई थी। अभी कुछ देर पहले यह बाज़ार रंगबिरंगी कपड़ों, जूतों एवं खिलौनों से सजा हुआ था। बच्चे अपनी पसंद के खिलौने ले रहे थे तो बड़े अपनी पसंद के कपड़े। कोई जूते खरीद रहा था तो कोई अपनी पसंद की चाट खा रहा था। परंतु जैसे ही कुछ फिरंगी अपनी बंदूकें लेकर वहां पहुंचे सारे लोगों के बीच भगदड़ मच गई। उन्होंने यहां वहां आग लगानी चालू कर दी। चारों ओर आग और खौफ़ का माहौल था। सारा सामान रास्ते पर यहां वहां बिखरा पड़ा था। किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी उन आतंकियों के सामने जाने की। लोगों को और डराने की खातिर उन्होंने और गोलियां चलानी शुरू कीं जो गलती से एक मकान के ऊपर से गुज़री जहां एक छोटा लड़का छत पर खड़ा इस वारदात को देखने की कोशिश कर रहा था। उस के मुंह से चीख निकली और वह धड़ाम से छत पर गिरा। उसकी चीख सुनकर भी वहां किसी की हिम्मत नहीं हुई उसके पास जाकर उसकी मदद करने की। सभी चुपचाप छुपकर यह दृश्य देख रहे थे और वह लड़का वहां छत पर गिरकर दर्द के मारे चिल्ला रहा था और या अल्लाह कह कर अपने खुदा को याद कर रहा था। इतने में तीन बच्चे, अपनी जान की परवाह किए बगैर, अचानक से उस घर के नीचे से दौड़कर ऊपर की ओर भागे। पहनावे से वे तीनों हिंदू, सिख और ईसाई लग रहे थे। इतने में उन आतंकियों में से एक ने उन बच्चों को देख लिया, और चिल्लाया, " पकड़ो इन बच्चों को, और ले चलो अपने साथ। इन बच्चों से हम अपना दो नंबर का काम करवाएंगे। जैसे ही वो उस घर की ओर बढ़े, पुलिस की गाड़ियों और अग्निशमन वाहनों का हॉर्न उन्हें सुनाई दिया और वो लोग तुरंत वहां से भाग गए। धीरे धीरे कर के लोग भी बाहर आने लगे । अग्निशमन विभाग के कर्मचारियों ने आग बुझानी चालू कर दी। तब पुलिस इंस्पेक्टर ने लोगों से कहा, " कौन है वो जिसने हमें समयसर इस वारदात की सूचना दी, हम उसका शुक्रिया अदा करना चाहते हैं, जिसने एक सच्चे नागरिक का आज कर्तव्य निभाया है और किसी अनहोनी के होने से सब को बचा लिया है।" सभी लोग एक दूसरे का मुंह ताकने लगे तभी वे तीनों बच्चे छत से नाचे उतरे और कहा कि हमने फोन किया था, सर जी। " उनको देखकर पुलिस इंस्पेक्टर दंग रह गए और हैरानी से बोले, " तुमने! पर तुम तो इतने छोटे हो। तुम्हें हमारा नंबर कैसे पता है!" तब उस बच्चे ने कहा, " मेरे पापा कांस्टेबल हैं। उन्होंने मुझसे कहा था, "बेटा, जब भी तुम किसी मुसीबत में पड़ो तो इस नंबर पर फोन करना। ये हमारे भगवान होते हैं और हमारी मदद करने तुरंत पहुंच जाते हैं।उन्होंने भगवान के नाम से ही आपका नंबर सेव कर के दिया है, इसलिए जब मैंने आतंकियों को यहां गोलियां चलाते देखा तो मैंने ही इस नंबर पर इस वारदात की सूचना दी थी। इसपर पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, " शाबास बेटा , आज तुमने एक अच्छा नागरिक होने का फर्ज़ निभाया है। मैं सिफारिश करूंगा कि तुम्हें गणतंत्र दिवस पर सबके सामने एक अच्छे और जागरूक नागरिक होने का प्रमाणपत्र दिया जाए।" इस पर वह लड़का बोला, " मुझे अकेले को ही क्यों सर, मेरे ये दोनों साथी भी मेरे साथ हैं जिन्होंने मुझे आपको फोन करने की सलाह दी थी और मुसीबत में फंसे हमारे मित्र की मदद करने में मेरी सहायता की थी, जो छत पर ... " इस पर पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, " किस दोस्त की तुम बात कर रहे हो? " तब बच्चों ने इशारा कर के बताया कि वह वहां ऊपर छत पर है, हमारा दोस्त अब्दुल,जो कुछ दिन पहले ही गांव से इस शहर में अपने मामा के घर पढ़ने के लिए आया है। इसके मामा मामी किसी शादी में दूसरे गांव गए हैं। अब्दुल की परीक्षाएं हैं इसलिए हमारी ज़िद्द पर इसके मामा मामी इसे हमारे घर पढ़ने के लिए छोड़ गए हैं। अब्दुल बहुत ही बहादुर है। उसने जैसे ही आतंकियों को देखा वह चुपचाप छत पर जाकर उन आतंकियों की फोटो निकाल रहा था, तब..." इतने में ऊपर छत पर ज़ख्मी पड़े अब्दुल के कराहने की आवाज़ आई तो सब छत की ओर भागे। वहां देखा तो अब्दुल की बांह में गोली छूकर निकल गई थी, गोली की तीव्रता की वजह से अब्दुल को दर्द महसूस हो रहा था। उसको देखकर पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, " चिंता की कोई बात नहीं है, गोली इसको छूकर निकल गई है। हम इसे अभी अस्पताल ले जाते हैं और इसकी मरहमपट्टी करवा देते हैं। इसे कुछ नहीं होगा। जाने के पहले इसका मोबाइल मुझे दे दो जिससे हम उन आतंकियों को पकड़ सकें " अब्दुल का मोबाइल पुलिस इंस्पेक्टर को दिया गया। पुलिस उसे अपने साथ मरहम पट्टी कराने के लिए लेकर गई।
दूसरे दिन ही उसी पुलिस इंस्पेक्टर ने आकर बताया कि इन चारों बच्चों की सूझबूझ की वजह से वो दो आंतकवादी पकड़े गए है। इन बच्चों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर, बिना जाति भेद के प्रशंसनीय कार्य कर के एक मिसाल कायम किया है, इसलिए इन चारों बच्चों को गणतंत्र दिवस पर पुलिस चौकी के नज़दीक बने कम्युनिटी हाल में इनाम दिया जाएगा। इन चारों बच्चों के मां बाप या रिश्तेदार भी इस कार्यक्रम में आने के लिए आमंत्रित हैं।" इतना कहकर पुलिस इंस्पेक्टर वहां से चले गए।
गणतंत्र दिवस पर वे चारों बच्चे, अपने मां बाप एवं रिश्तेदारों के साथ शहर के कम्युनिटी हाल में पहुंचे। वहां पर प्रविष्ट होते ही सबके चेहरों पर खुशी की लहर छा गई। हाल के चारों ओर देशभक्ति के गीत बज रहे थे तथा दीवारों पर हर जगह पर राष्ट्रीय झंडे दिख रहे थे। मानवीय मूल्यों एवं देशभक्ति को दर्शाती तख्तियों पर स्लोगन दिख रहे थे। सामने की दीवार पर अपने देश के महान नेताओं और वीर शहीदों की तस्वीरें लगाईं गईं थीं। चारों ओर देशभक्ति और भाईचारे की महक गूंज रही थी। सभी लोग वहां पर लगाई गई कुर्सियों पर बैठ गए और कार्यक्रम चालू होने की प्रतीक्षा करने लगे। आखिर सभी के इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं और देशभक्ति के एक बहुत ही प्यारे और मधुर गीत से कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इसके बाद सबसे पहले उन वीर शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए जिन्होंने जाति भेद भूलकर सबसे पहले राष्ट्रधर्म को अपना धर्म मानकर, अपनी जान की परवाह किए बगैर देश के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा थी। इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम चालू किया गया। जिसमें देशभक्ति से संबंधित, गीत और संगीत का कार्यक्रम रखा गया था। सारा माहौल देशभक्ति से परिपूर्ण लग रहा था। लोग झूम झूम कर पूरे जोश और उमंग में भारत माता की जय, वंदे मातरम तथा जय हिंद के नारे लगा रहे थे। क्या हिंदू, क्या मुस्लिम, क्या सिख ईसाई किसी को अपना धर्म जैसे याद ही नहीं था। याद था तो सिर्फ अपना देश, भारत देश और अपने देश के प्रति राष्ट्रप्रेम। ऐसे ही देशभक्ति के सागर में घंटों डुबकियां लगाने के बाद आखिर वह पल आ गया जिसका सबको इंतजार था अर्थात प्रमाणपत्रों की घोषणा। पूरे वर्ष में देश को समर्पित कोई भी अच्छा या बहादुरी वाला कार्य करने वालों को प्रमाणपत्र दिए गए। उसमें उन चारों बच्चों को भी अपने मां बाप या करीबी रिश्तेदार के साथ सम्मानित किया गया जिन्होंने बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति एवं बहादुरी का बीज बोया था। अपना ऐसा सम्मान देखकर उनके मां बाप को अपने बच्चों पर फख्र होने लगा। उन्होंने ज़ोर से नारा लगाया, "जय हिंद" और फिर वे सभी स्टेज से नीचे उतर आए।
इतना लिखने के बाद रवि जैसे ही कुर्सी से उठा तो नेहा ने उसे टोक दिया, " अरे मैं कबसे आपको बुला रही थी पर आप लिखने में इतने व्यस्त थे कि आप मेरी आवाज़ सुन ही नहीं रहे थे। आप आखिर लिख क्या रहे थे और आप ये क्या चिल्ला रहे थे पकड़ो पकड़ो।" इस पर रवि ने कहा, गणतंत्र दिवस पर अपने मोनू के स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया है। जिसमें मोनू को अपने दोस्तों के साथ देशभक्ति के ऊपर नाटक का प्रदर्शन करना है। उसी कार्यक्रम के लिए मैं मोनू के लिए नाटक और संवाद लिख रहा था। इतने में नेहा ने कहा, " मैं भी तो देखूं, आखिर कैसा नाटक लिखा हैं मोनू के लिए।" इतना कहते ही उसने रवि की हाथ से नोटबुक छीन ली और उसे ऊंची आवाज़ में पढ़ने लगी। जैसे जैसे वह पढ़ती जा रही थी वैसे वैसे उसके मुंह से वाह वाह निकल रहा था। पूरा नाटक पढ़ने के बाद वह बोली, " अलग अलग मज़हब के होने के बावजूद भी बच्चों ने क्या दोस्ती निभाई है और जो बात बड़े भी नहीं समझ पाते हैं वो इन मासूम बच्चों ने हमें सिखा दी कि जाति धर्म के भेद से बढ़कर है हमारा देश, हमारे देश का हित और भाईचारा। इन बच्चों ने यह भी सिखा दिया कि मन में अगर हौंसला हो तो आंतकवाद को भी रोका जा सकता है। जो बात बड़े नहीं कर पाए वह बात छोटे बच्चों ने कर दिखाई। वाह कमाल है! आपने तो कमाल का नाटक लिख दिया है। इस पर तो ज़रूर मोनू और उसके दोस्तों को पुरुस्कार मिलेगा। " इस पर रवि ने कहा, " पुरुस्कार मिले या न मिले, परंतु इस समाज को एक मैसेज तो ज़रूर मिलेगा।" तब नेहा ने कहा," हां, बिलकुल सही कहा आपने। अरे, मैसेज से याद आया कि अपने पड़ोस वाले शर्मा जी आए थे। उनके घर पर अभी सत्यनारायण भगवान की पूजा है, उसकी याद कराने आए थे। आप जल्दी से तैयार हो जाओ, हमें वहां जाना है ।" तब रवि हंसकर बोला, " जो हुक्म सरकार का। सरकार जैसे चाहेगी, वैसा ही होगा " इतना कर कर वह देशभक्ति के गीत गुनगुनाता हुआ तैयार होने चला गया।