Jyoti Naresh Bhavnani

Inspirational

4.5  

Jyoti Naresh Bhavnani

Inspirational

झूठा दिखावा_हिंदुस्तान के भविष्य को खतरा

झूठा दिखावा_हिंदुस्तान के भविष्य को खतरा

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के आर हॉल खचाखच भरा हुआ था। आज शहर के सारे स्कूलों के बच्चों का *मेरा हिंदुस्तान* कार्यक्रम के तहत रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया था। जिसमें किसी को नाटक, तो किसी को गायन, किसी को भाषण की प्रतियोगिता हेतु नामांकित किया गया था। सभी बच्चों के मां बाप तथा शहर की जानी मानी हस्तियां वहां पहुंच चुकी थीं। हॉल में देशभक्ति के गीत गूंज रहे थे। स्टेज को तिरंगे झंडों से सजाया गया था। दर्शकों के बिलकुल सामने कुछ देशभक्तों और शहीदों के फोटो लगाए गए थे तथा साइड की दीवारों पर देशभक्ति के स्लोगन लिखे गए थे। बस हरकोई इंतजार कर रहा था कार्यक्रम के शुरू होने का।


आखिर सबका इंतजार खत्म हुआ और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वहां के एम एल ए ने जैसे ही हॉल में प्रवेश किया, सभी ने तालियों के साथ उनका स्वागत किया। उनका शॉल से सम्मान कर के तुरंत ही कार्यक्रम चालू किया गया। एक एक कर के सारे स्कूल के बच्चे अपना देशभक्ति से परिपूर्ण प्रदर्शन देने लगे। कुछ समय के पश्चात स्टेज पर अचानक से पर्दे के पीछे शादी की धुन बजने लगी। स्टेज से धीरे धीरे पर्दा ऊपर उठने लगा। पर्दा उठते ही बिलकुल सामने की ओर एक और स्टेज बनाया गया था जहां पर एक नव विवाहित दंपति खड़ा था। उस स्टेज से थोड़ा दूर अलग अलग स्टॉल लगे हुए थे। कहीं पर अलग अलग रंगों के शरबत, ज्यूसिस और अन्य पेय पदार्थ दिख रहे थे, तो कहीं अलग अलग तरह की चाट दिख रही थी, जिसमें साउथ इंडियन, चाइनीज, पंजाबी और भी न जाने कितनी तरह के व्यंजन रखे गए थे। उस के बाद खाने में इसी तरह के बहुत सारे स्टॉल लगाए गए थे। खाने के ऊपर कुछ मीठा खाने के हिसाब से भी अलग अलग मिठाईयां और मिष्ठान रखे गए थे। उसके बाद आइसक्रीम एवं गर्म दूध तथा कॉफी के स्टॉल थे और अंत में था पान और मुखवास का स्टॉल।


लोग आते जा रहे थे और अलग अलग स्टालों से उनकी पसंद के व्यंजन उठा रहे थे। जो पसंद आ रहा था वह खा रहे थे और जो पसंद नहीं आ रहा था वो कूड़ेदान में फेंकते जा रहे थे। फिर वे दूसरे स्टॉल पर जा रहे थे और वहां पर भी वे उसी तरह से कर रहे थे जैसा पहले वाले स्टालों पे वे कर चुके थे।कुछ बुज़ुर्ग लोग सीधा खाने के स्टॉल पर जा रहे थे और अपनी पसंद का जितना चाहिए उतना ही खाना थाली में उठा रहे थे। अंत में वे स्टेज पर जा रहे थे लड़के लड़की को आशीर्वाद देने। इस तरह से करते करते धीरे धीरे भीड़ कम होना चालू हुई और अंत में सिर्फ लड़के और लड़की के रिश्तेदार ही बच गए। सब लोगों ने मिलकर खाना खाया उसके बावजूद भी वहां पर बहुत सारा खाना बच गया। वहां पर लड़की वालों की तरफ से एक रिश्तेदार आया था जो कि एक लेखक था, उससे आखिर रहा नहीं गया और उसने कहा, "आखिर इतना सारा खाना और इतनी सारी चीज़ें बनवाने की ज़रूरत क्या है? लोग खाना कितना व्यर्थ गंवाते हैं। जितना वो उठाते हैं उसका आधा भी नहीं खाते हैं, शेष तो सारा कूड़ेदान में ही फेंक देते हैं। यहां पर हमारे हिंदुस्तान में ऐसे कई घर हैं जिनके घरों में कई दिनों तक चूल्हा नहीं जलता है और यहां शादी के मौकों पर इतना खाना व्यर्थ जाता है। ज़रा सोचो किसान किस तरह से कड़ी धूप में, बारिश में और सर्दी में हर मौसम में कितनी मेहनत करके अनाज पैदा करता है पर उसकी मेहनत को लोग यूं ही झूठे दिखावे की खातिर बेकार गंवाते हैं। माना कि शादी ब्याह एक खुशी का मौका है पर इस तरह से किसी भी चीज़ का अपव्यय करना अच्छी बात नहीं है। लोग खा खा कर आखिर कितना खायेंगे? जितना पेट है उतना ही खायेंगे न, वो तो कम चीज़ों से भी भर सकता है, उसके लिए इतनी सारी चीज़ें बनवाने की क्या ज़रूरत है? इतनी चीज़ें बनवाकर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं कि हम किसी से कम नहीं हैं! क्यों हम झूठे दिखावे के पीछे पड़े हैं?क्या हम अपने घरों में भी इतना खाना बनवाते हैं या इतने खाने को बाहर फैंकते हैं? ये सिर्फ इस शादी की बात नहीं है पर हर शादी में ऐसा होता है। ज़रा अपने हिंदुस्तान और उसके भविष्य के बारे में सोचो। अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन हम दाने दाने के लिए मोहताज हो जाएंगे। क्या ये सब आपको मंजूर है?" वहां उपस्थित सारे लोगों के सिर नीचे हो गए। तब उसने फिर से सवाल किया,। " अब जो खाना बचा है उसका क्या करोगे? " तो किसी ने कहा कि और क्या करेंगे। यहीं छोड़ जायेंगे या बाहर फैंक देंगे और क्या?" तब उसी लेखक ने कहा, "ये दूसरी गलती जो हम लोग करते हैं। खाना फैंकने से तो अच्छा है किसी को दान किया जाए। यहां पर पास में कोई तो बस्ती होगी न जहां पर गरीब लोग रहते होंगे। जिनके घरों में आज रात का चूल्हा नहीं जला होगा और भूख के मारे उनके बच्चों को नींद नहीं आ रही होगी।" इस पर किसी ने कहा, " हां, पास में ही है ऐसी एक बस्ती, जहां गरीब लोग रहते हैं " इस पर लेखक ने कहा ,"तो चलो, मैं चलता हूं ऐसे नेक काम में आपका साथ देने के लिए। बचे हुए खाने को उठाने में मेरी मदद करो और ले चलो मुझे उन गरीबों की बस्ती में।" इतना कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ। उसके उठते ही दूसरे रिश्तेदार भी उठ खड़े हुए उसकी मदद करने के लिए। अपनी गाड़ी में खाना रखने के बाद वो लेखक चल पड़ा गरीबों की बस्ती की ओर जिनके बच्चों की ज़िंदगी में आज बड़े दिनों के बाद खुशियां आने वाली थीं। 


इसके साथ ही स्टेज पर धीरे धीरे पर्दा नीचे गिरने लगा। हॉल में लगातार तालियां गूंज रही थीं। लोग उस नाटक में भाग लेने वाले सभी बच्चों को बधाईयां दे रहे थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं निर्णायक एम एल ए ने खुद स्टेज पर आकर पूरे जोश के साथ सभी बच्चों का स्वागत किया और उनके नाटक को प्रथम नंबर पर विजयी घोषित किया। 



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