बूंद बूंद है अनमोल
बूंद बूंद है अनमोल
डॉक्टर सी जी हाई स्कूल की प्रधानाध्यापिका श्रीमती सरोज सुजानसिंघानी के कमरे में मीटिंग चल रही थी। आठ मार्च महिला दिवस के उपलक्ष में कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने हेतु सभी महिला अध्यापिकाओं को विचार विमर्श हेतु वहां बुलाया गया था। सभी से इस विषय पर उन के मत पूछे जा रहे थे। सभी अध्यापिकाओं ने अपने अपने विचार पेश किए। सभी अध्यापिकाओं के विचार सुनने के बाद प्रधानाध्यापिका मिसेज सरोज ने कहा कि शालिनी ने पानी के अपव्यय को रोकने संबंधी जो सुझाव दिया है, वह सब को कैसा लगा है? सभी ने कहा कि उसका सुझाव बहुत ही अच्छा है लेकिन इस के लिए उनको एक एक के घर जाना पड़ेगा और जाकर हर घर का मुआयना करना पड़ेगा और एक एक को समझाना पड़ेगा। तो इसपर प्रधानाध्यापिका ने कहा कि इसमें धिक्कत वाली तो कोई बात ही नहीं हैं। स्कूल की अध्यापिकाओं और कुछ विद्यार्थियों की पांच छह टोलियां बनाई जाएंगी जो घर घर जाकर मुआयना करेंगी और सभी को पानी के अपव्यय को रोकने तथा पानी की बचत संबंधी समझाएंगी। सभी अध्यापिकाओं ने इस संबंध में अपनी सहमति दी और कहा कि वे सब इस मुआयने हेतू तैयार हैं। तो मीटिंग में तय किया गया कि आठ मार्च को होली का त्यौहार होने की वजह से यह कार्यक्रम 9 तारीख को किया जाएगा जिसके लिए सुबह आठ बजे पहले स्कूल जाया जाएगा और फिर वहां से पांच छह टोलियां बनाकर मुआयने हेतू जाया जाएगा।
चूंकि 9 मार्च कामकाजी दिन था इस वजह से स्कूल के सारे अध्यापक और बच्चे 8 बजे ही स्कूल पहुंच गए। जहां पर प्रार्थना सभा होने के बाद जिन जिन अध्यापिकाओं को मुआयने के लिए चुना गया था वे और कुछ विद्यार्थी प्रधानाध्यापक के कमरे में पहुंचे और उनकी अनुमति से गली गली में मुआयना करने हेतु निकल पड़े।
एक गली के आगे पहुंचकर सभी अपनी अपनी दिशाओं में चल दिए। उनमें से एक टुकड़ी आगे जाते जाते रुक गई क्योंकि जिस गली से वे गुजर रहे थे उस गली में किसी के घर से निकलकर बाहर सड़क तक पानी आ रहा था। वह टुकड़ी पानी की धारा को देखते देखते आगे बढ़ी और देखा कि एक घर के आंगन से ये पानी बाहर आ रहा था। उन्होंने आगे जाकर देखा कि घर में काम करने वाली बाई आराम से धीरे धीरे फर्श धो रही थी और पानी ऐसे ही घर के आंगन में बह रह था। बीना नामक अध्यापिका तुरंत उस घर के अंदर गई और अंदर जाकर कहा कि इतना पानी क्यों आंगन धोने में व्यर्थ गंवाया जा रहा है? आगे उसने पूछा कि वे आंगन कब कब धुलवाते हैं? इस पर अंदर से एक औरत ने बताया कि वे हर रोज़ ही आंगन धुलवाते हैं। घर की साफ सफाई के लिए ये ज़रूरी भी है और ये उनका निजी मामला है इसमें किसी और को क्या परेशानी है? इस पर बीना ने कहा , " माना कि साफ सफाई रखना ज़रूरी है परंतु इस के लिए इतनी सारे पानी से यूं हररोज़ आंगन धुलवाने की क्या ज़रूरत है? हररोज़ आंगन धोने से पानी का कितना अपव्यय होता है। " यह कहकर बीना ने उन्हें समझाया कि इस तरह से पानी का अपव्यय करना अच्छी बात नहीं है।और ये उनका निजी मामला नहीं है। पानी का मामला जन का मामला है। जल समाज की संपति है। जिसको संभालकर रखना प्रत्येक नागरिक का फर्ज़ है। आगे बीना ने कहा कि अगर आंगन रोज़ धोना ही है तो जो कपड़े धोने से पानी बचता है उसी को अगर आंगन धोने के काम में लाया जाए और अंत में थोड़े साफ पानी से धोया जाए तो पानी की कितनी न बचत होगी जिसका उपयोग ज़रूरी काम में किया जा सकता है। इस पर उस घर के सदस्यों ने उनसे माफी मांगी और वायदा किया कि अब वो कभी भी पानी का अपव्यय नहीं करेंगे ।
स्कूल की दूसरी टुकड़ी दूसरी गली में गई। जहां पर उन्होंने देखा कि किसी घर की नाली से पानी बाहर निकल कर बह रहा है। इस पर वह टुकड़ी तुरंत उस घर के आंगन में गईं जहां उन्होंने देखा कि उस घर में काम करने वाली बाई आंगन के पीछे का नल खुला छोड़कर आराम से आगे के आंगन में झाड़ू लगा रही थी। यह देखकर आशा नामक अध्यापिका ने उस बाई से कहा, " इस तरह से नल खुला छोड़ना अच्छी बात नहीं है। यहां पर कितने लोग ऐसे भी हैं जिन्हें पीने का पानी भी नसीब नहीं होता है और तुम इस तरह से पानी को बर्बाद कर रही हो!" इस पर उस घर से एक बुज़ुर्ग महिला निकली और उसने आश्वासन देते हुए कहा कि आगे से ऐसा नहीं होगा। वह खुद इस बात का पूरा पूरा ध्यान रखेगी।
स्कूल की तीसरी टुकड़ी तीसरी गली का मुयायना करने लगीं। वहां उन्हें कहीं भी बाहर पानी दिखाई नहीं दिया। वे सभी बहुत खुश थे कि उन्हें जिस गली का मुआयना करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है वहां के लोग समझदार दिखते हैं। तभी अचानक से किसी को प्यास लगी और उसने कहा कि उसे पानी पीना है। इस पर सभी ने कहा कि उन्हें भी प्यास लगी है और फिर वे सब किसी घर में पानी मांगने के लिए गए। तुरंत उस घर की महिला ने पांच छह गिलास निकाले और सबको अलग अलग गिलास पकड़ा दिया तो उन्होंने दो तीन गिलास वापस करते हुए कहा कि वे इन तीन गिलासों में ही पी लेंगे। इस पर उस महिला ने कहा कि वे पानी में भी इतनी कंजूसी कर रहे हैं। इस पर स्कूल की अध्यापिका शालिनी ने जवाब दिया, "हमें तो आधे आधे गिलास की ही ज़रूरत है जो इन तीन गिलासों से पूरी हो जाएगी। अगर हम छह गिलास लेते हैं तो इसमें से आधा आधा पानी तो बेकार ही जाएगा न, जो नाली में बहा दिया जाएगा। आज अगर हम एक एक बूंद के महत्व को समझेंगे और उसे बचाएंगे तभी तो हम आने वाला कल सुरक्षित कर पाएंगे।" इस पर उस महिला ने कहा, "सिर्फ आप के ऐसे सोचने से क्या होगा?" तभी शालिनी ने कहा, " इसलिए तो हम घर घर जाकर जल के महत्व और आने वाले समय में पानी की होने वाली कमी से सबको बचाने के लिए निकले हैं, ताकि आज की छोटी छोटी दिखने वाली बचत से हम आने वाले मुश्किल समय में खुद को बचा सकें।" इतना कहकर शालिनी अपनी टुकड़ी सहित उस घर के बाहर निकल गई।
अब बारी थी स्कूल की चौथी टुकड़ी की, जिसे ये ज़िम्मेदारी दी गई थी कि वे घर घर जाकर लोगों के बाथरूम चेक करेंगे और जहां पानी का लीकेज होगा उन्हें तुरंत ही वे ठीक कराने के लिए कहेंगे। सो इस टुकड़ी की अध्यापिका अनिता अपने विद्यार्थियों सहित एक एक घर का मुआयना करने लगीं जहां पर कहीं पानी के नलों में लीकेज था या फिर बाथरूम के फ्लश लीक हो रहे थे। वहां जाकर उन्हें पानी की एक एक बूंद के महत्व को समझाते हुए इस तरह के पानी के अपव्यय को रोकने के लिए उन लीकेजों को जल्द से जल्द ठीक कराने के लिए कहा गया और जब तक यह लीकेज ठीक हो तब तक उनकी मेन सप्लाई को बंद रखने की हिदायत दी गई।
इसी तरह सभी लोगों को समझाते समझाते दोपहर का एक बज चुका था। स्कूल की सारी टुकड़ियां निर्धारित समय और स्थान पर फिर से इकठ्ठा हुईं और चल पड़ीं वापस स्कूल की ओर अपनी प्रधानाधपिका को आज के अनुभव एवं आज के कार्य की रिपोर्ट प्रस्तुत करने।