देश के लिए खुद सुरक्षित रहना है ज़रूरी
देश के लिए खुद सुरक्षित रहना है ज़रूरी
कैम्ब्रिज स्कूल के सातवीं कक्षा के बच्चे बेसब्री से अपनी कक्षा के वर्गशिक्षक के आने का इंतजार कर रहे थे। आठ दिन बाद गणतंत्र दिवस का उत्सव जो होना था उनके स्कूल में। वे बहुत ही अधीर थे ये जानने के लिए कि आखिर इस वर्ष किस तरह से उनके स्कूल में गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा। वे एकदूसरे से इस विषय पर चर्चा भी कर रहे थे और बार बार वर्ग के द्वार की ओर भी देख रहे थे। उनकी बेसब्री का बांध तब टूटा जब उन्होंने अपने वर्गशिक्षक को कक्षा में प्रविष्ट होते हुए देखा। सारे बच्चे अचानक से शांत हो गए।
उनके वर्गशिक्षक ने सबसे पहले सबकी उपस्थिति सुनिश्चित की। उसके बाद उन्होंने बच्चों को बताया कि गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले उनके स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया है। जिसमें गीत, संगीत तथा नाटक की प्रतियोगिताएं रखी गई हैं, और उसमें हर एक कक्षा के विद्यार्थियों का सम्मलित होना अनिवार्य है। गीत, संगीत और नाटक की प्रत्येक श्रेणी में तीन अलग से ट्राफियां दी जाएंगी। जिस कक्षा का प्रदर्शन जिस श्रेणी में सब से अच्छा होगा उस कक्षा को उस श्रेणी में गणतंत्र दिवस की ट्रॉफी दी जाएगी। यह सब बताते हुए उन के वर्गशिक्षक ने कहा, " तो बच्चो, तैयार हो न इस प्रतियोगिता के लिए।" सब बच्चे जोश में चिल्ला पड़े, " हां सर, हां सर।" तब उनके वर्गशिक्षक ने कहा, " तो फिर तुम बच्चे आपस में विचार विमर्श करो और मुझे बताओ कि तुम किस विषय पर अपना बढ़िया प्रदर्शन दोगे जिससे कम से कम एक ट्रॉफी अपने वर्ग को मिले।"
बच्चे आपस में विचार विमर्श करने लगे और सोचने लगे कि आखिर किस विषय पर उनका प्रदर्शन सबसे बढ़िया हो सकता है। बहुत देर तक सोचने के बाद और आपस में विचार विमर्श करने के बाद एक विद्यार्थी जिसका नाम विनोद था तुरंत उठकर खड़ा हो गया और बोला, " मास्टर जी, हम एक नाटक कर सकते हैं। जो बहुत ही उद्देश्यपूर्ण और समाज के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है"। इसपर सर ने पूछा कि वो कैसे? तब उस बच्चे ने उस नाटक की विषयवस्तु के बारे में अपने वर्गशिक्षक और अपने सहपाठियों को बताया। जिसे सुनकर सब के चेहरे खुशी से खिल उठे और सबने कहा, " फिर तो हम ये प्रतियोगिता अवश्य ही जीतेंगे"। इतने में एक विद्यार्थी बोला, "पर, इस के लिए तो खर्चा करना पड़ेगा, वो रकम हम कहां से लाएंगे?" तब उनके वर्ग शिक्षक ने कहा, " चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। इस कार्यक्रम का जो संस्था आयोजन कर रही है वही इस कार्यक्रम का सारा खर्च उठाने के लिए तैयार है। इतने में तीसरे विद्यार्थी ने कहा, " तो फिर देर किस बात की! आज से ही इसकी प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं।" इसपर एक और विधार्थी ने कहा, " प्रैक्टिस तो तब होगी न जब इसके संवाद तैयार होंगे। बिना संवाद के प्रैक्टिस कैसे होगी?" यह सुनकर सब शांत हो गए। वर्ग में चुप्पी सी छा गई। तब विनोद पूरे जोश में भरकर बोला, " अरे इसमें घबराने वाली क्या बात है, हम सब मिलकर इसके संवाद तैयार कर लेंगे। हमारे वर्गशिक्षक जो हमारे साथ हैं हमारी सहायता करने के लिए, क्यूं ठीक कहा न मैंने मास्टर जी?" वर्गशिक्षक बोले," मैं बिल्कुल तैयार हूं, तुम लोगों का साथ देने के लिए। तो चलो आज से ही हम संवाद लिखना चालू करते है और उसके बाद करेंगे हम नाटक की प्रैक्टिस, क्यों ठीक है न बच्चो?" सब विद्यार्थी एक साथ बोले, " हां मास्टरजी, पर आज से क्यों अभी से ही हम लिखना शुरू करते हैं।" इस पर मास्टरजी बोले, " अरे बच्चो, अभी से लिखेंगे तो पढ़ाई कौन करेगा! गणतंत्र दिवस तक आखिरी के दो पीरियड में गणतंत्र दिवस की तैयारी की मंज़ूरी मिली है हमें। इसलिए अभी हम पढ़ाई करेंगे और अंतिम दो पीरियड में कार्यक्रम की तैयारी करेंगे। तो निकालो अपने पुस्तक और शुरू कर दो अपनी पढ़ाई।" सभी बच्चों ने बेमन से पुस्तकें निकालीं और मास्टरजी की बातें सुनने लगे। अंतिम दो पीरियड आते ही सभी बच्चे फिर से जोश और उमंग में भर गए और जुट गए कार्यक्रम की तैयारी में और उसे सफल बनाने में।
इस तरह एक सप्ताह निकल गया। कैम्ब्रिज स्कूल के सारे बच्चे गणतंत्र दिवस की प्रतियोगिता को जीतने के लिए पूरे जोश और उमंग में तैयारी करने लगे और इंतजार करने लगे प्रतियोगिता के दिन का। आखिर उनका इंतजार खत्म हुआ और प्रतियोगिता का दिन भी आ गया। सारे बच्चे अपने अपने वर्ग का प्रतिनिधत्व करते हुए कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगे। जब बारी आई सातवीं कक्षा के बच्चों की, तब स्टेज पे आईं कई गाड़ियां, जिनमें से दो तेज़ रफ्तार में एक दूसरे को ओवरटेक कर रहीं थीं और बाकी की गाड़ियां धीमे गति से उनके पीछे चल रहीं थीं। तेज़ रफ्तार से चलने वाली गाड़ियों में से कभी एक आगे होती तो कभी दूसरी। जो पीछे रह जाती वह तेज़ गति से आगे निकलने की कोशिश करती। मानों दोनों के बीच एक प्रतियोगिता चल रही हो कि कौन किससे आगे है? जिस वजह से पीछे चल रही गाड़ियों को अपनी गाड़ियां चलाने में बड़ी ही असुविधा हो रही थी। इस तरह पांच मिनट का समय निकल गया पर उनके बीच यह प्रतियोगिता चलती ही रही और आखिर में दोनों गाड़ियां आपस में टकरा गईं, जिसकी वजह से पीछे सारी गाड़ियां रुक गईं। दो गाड़ियां जो आपस में टकरा गईं उनके चालकों ने सीट बेल्ट नहीं बांधी थी, जिसके कारण झटके से सिर स्टीयरिंग से टकराने की वजह से दोनों के सिरों से ख़ून बहने लगा और दोनों बेहोश हो गए। यह सब देखते ही पीछे चल रही सारी गाड़ियों के चालक उनकी मदद करने के लिए आए और कहने लगे, " इन्हें जल्दी से अस्पताल पहुंचाओ, इन्हें तो बहुत चोट लगी है।" इतने में दूसरा बोला, " अरे! इन्हें तुरंत मेडिकल ट्रीटमेंट की ज़रूरत है, वर्ना कुछ भी हो सकता है।" इतने में चौथा बोला, " अरे! यह तो अकस्मात का मामला है। पहले पुलिस को बुलाओ।" यह सब सुनते ही पांचवां बोला, "अरे!यूं बातों में समय मत गंवाओ। कोई 108 पर फोन लगाओ, अगर वक्त निकल गया तो कहीं देर न हो जाए!" यह सुनते ही पहले वाले ने तुरंत 108 पर फोन किया जो तुरंत ही वहां पर पहुंच गई और घायलों को वहां से ले गई। उनके जाते ही पहली गाड़ी वाला बोला," क्या ज़रूरत थी इतनी तेज़ रफ्तार से गाड़ी चलाने की, खुद भी परेशान, हम भी परेशान।" इतने में दूसरा बोला, " एक तो तेज़ रफ्तार ऊपर से ओवरटेक। आप लोगों ने देखा नहीं कि किस तरह से एक दूसरे को ओवरटेक कर रहे थे।" तीसरे व्यक्ति से भी रहा नहीं गया और वह बोल पड़ा," अरे , यहां पर तो कोई ट्रैफिक के नियमों का पालन ही नहीं करता है। अगर सीट बेल्ट पहनी होती तो दोनों को कुछ नहीं होता।" इतने में चौथा जो अब तक सबकी बातें शांति से सुन रहा था बोल पड़ा," पता नहीं क्यों लोग ट्रैफिक के नियमों का पालन नहीं करते हैं। भाई, इसमें आखिर फायदा किसका है, हमारा ही न!क्यों जी? " उसने पांचवें की ओर इशारा करते हुए कहा तो पांचवां बोल उठा," और नहीं तो क्या। लोग क्यों नहीं समझते कि हमारी ज़िंदगी कितनी कीमती है हमारे लिए और हमारे परिवार के लिए..." उसकी बातों को बीच में ही काटते हुए पहला बोला, " अरे सिर्फ हमारे और हमारे परिवार के लिए ही नहीं परंतु हमारे देश के लिए भी । अरे हम नागरिकों को ही तो देश को सुरक्षित रखना है और अपने देश को ऊंचाईयों पर ले जाना है।" तब दूसरा बोल उठा, " और नहीं तो क्या। पर इसके लिए यह ज़रूरी है कि पहले हम खुद सुरक्षित हों, और हमारी खुद की सुरक्षा है...." बाकी के सारे बोल उठे," ट्रैफिक के नियमों को मानने में।" इस पर तीसरा बोला, "अर्थात"? बाकी सब बोल उठे, " मार्ग पर धीमी गति से वाहन चलाने में।" "और" चौथा बोला। " ओवरटेक न करने में" सारे बोल उठे। " और" पांचवां बोला। तब सब साथ में बोल उठे , " सीट बेल्ट बांधने में।" इतना सुनते ही हाल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। सब लोग खड़े होकर बच्चों का हौंसला बढ़ाने लगे जिन्होंने इतनी छोटी उम्र में समाज को इतने सुंदर ढंग से अपना संदेश पहुंचाया था। इस नाटक के सभी बच्चों को स्टेज पर ही रुकने के लिए कहा गया। कार्यक्रम के जज और प्रिंसिपल खुद स्टेज पर चढ़कर गए जहां उन्होंने देखा कि किस तरह से बच्चों ने कार्डबोर्ड, रंगों और रंगीन पन्नो की सहायता से सात अलग अलग रंगों और अलग अलग मॉडल की गाड़ियां बनाई थीं तथा एक एंबुलेंस बनाई थी। उन गाड़ियों को अपने ऊपर कवर करके उन्होंने तेज़ रफ्तार में और धीमी रफ्तार में गाड़ियां चलाईं थीं। हर गाड़ी के ऊपर एक एक तख्ती लगी हुई थी जिस पर संदेश लिखा हुआ था, " तेज़ रफ्तार है मौत का कारण, अपनी मृत्यु को बुलाओ न अकारण", "ओवरटेक से हमेशा बचना, अपने आप को सुरक्षित रखना", " सीट बेल्ट अगर बांधोगे, तो खतरों से तुम बचोगे", "मार्ग पे अगर प्रतियोगिता करोगे, मुसीबतों को खुद ही आमंत्रित करोगे", "जीवन है बड़ा ही अनमोल, अपनी नादानी से लगाओ न इसका मोल", "मार्ग पर करना न अपनी मनमानी, वर्ना अपनी ज़िंदगी पड़ेगी गंवानी" "अपने देश का तुम हो अनमोल खज़ाना, देखो इसे हरगिज़ न गंवाना "और अंत में एंबुलेंस पर लिखा था, "अपनी ज़िंदगी से न यूं लड़ो, सुरक्षा के नियमों का पालन करो "। स्टेज पे आए लोग ये सब पढ़ते जा रहे थे और तालियां बजाते हुए जा रहे थे। एक एक करके वे सब नीचे उतार आए और अपना स्थान गृहण करके आगे का कार्यक्रम देखने लगे।बच्चे देशभक्ति के गीत गाते रहे और कुछ बच्चों ने तो प्यानो, गिटार एवं बांसुरी पर देशभक्ति के गीतों की धुनें बजाईं, जिसे सुनकर सब मंत्रमुग्ध हो गए। कार्यक्रम के अंत में प्रतियोगिताओं के परिणाम घोषित किए गए जिसमें नाटकों की श्रेणी में प्रथम इनाम सातवीं कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा किए गए नाटक को ही दिया गया। यह सुनते ही हाल में ज़ोर से तालियां बजने लगीं। इस ग्रुप के सभी बच्चों को प्रमाणपत्र एवं वर्ग को ट्रॉफी दी गई। वहां उपस्थित सभी लोगों ने सारे बच्चों को बधाईयां दीं। सारे बच्चे अपने अपने प्रमाणपत्र लेकर खुशी खुशी देशभक्ति के गीत गाते हुए अपने घर की ओर चल दिए।