Ragini Pathak

Abstract

4.4  

Ragini Pathak

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पछतावा

पछतावा

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आइने के सामने बैठी राधा आज मायके जाने के लिए तैयार हो रही थी, जैसे ही माथे पर लाल रंग की बड़ी बिंदी लगा कर खड़ी हुई।तभी पीछे से राधा की बेटी सिया ने कहा "वाओ माँ आप तो बिलकुल नानी की तरह दिख रही हो| बस एक कमी है रूको, ये पल्लू का गांठ खोल लो" सिया ने राधा का आँचल पकड़ कर गांठ को खोलने लगी।

राधा ने तुरंत सिया का हाथ पकड़ कर कहा "नहीं बेटा ये ऐसे ही रहेगा,पापा को बोलो चलें वरना लेट हो जाएंगे।"

राधा की आज सिल्क क्रीम कलर की साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी| राधा की माँ और राधा को जो भी देखता यही कहता "भगवान ने जैसे बडे फुर्सत में बनाया है माँ बेटी को, सुंदरता चुन चुन के इनकी झोली में डाली है।"

लोग कहावत कहते है कि बेटियां माँ का प्रतिबिंब होती है तो राधा बिलकुल अपनी मां सावित्री जी की प्रतिबिंब थी भगवान ने शक्ल सूरत के साथ साथ व्यवहार भी बिलकुल एक जैसा ही बनाया था शांत सौम्य व्यवहार और अपनो के प्रति प्यार और समर्पण की भावना कूट कूट के भरी थी।

सावित्री जी को साड़ियों का बहुत शौक था वो हर तरह की साड़ी पहनना और रखना पसंद करती थी उनके कलेक्शन में बनारसी से लेकर कांजीवरम तक सभी साड़ियों थी। हमेशा तैयार और फिटफाट बने रहना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। सुबह उठकर सबसे पहला काम वो कंघी कर के तैयार होने के बाद ही रसोई में या कोई दूसरा काम करती। सब देखकर दांतो तले उंगली दबा लेते,की आखिर इतना सब करती कैसे है ?

राधा कार से जैसे ही अपने मायके में उतरी एक पल को सबकी निगाहे उस पर रुक गयी , जो राधा को देखता देखता ही रह जाता। तभी राधा की बड़ी भाभी बोली"दीदी आप तो बिलकुल माँजी की तरह दिख रही है लेकिन ये पल्लू का गांठ तो खोल लेती लाइये मैं खोल देती हूं।"

राधा ने अपनी भाभी का हाँथ पकड़ते हुए कहा"नहीं भाभी!ये गांठ यूँ ही रहने दो।"

ठीक है अंदर तो चलिए |सब एक साथ घर के अंदर गए।

राधा ने अंदर जाकर कहा"माँ, देखो कैसी दिख रही हूं, सब कह रहे है बिलकुल आप के जैसी दिख रही हूं, सच सच बताना की क्या मैं आपकी तरह ही दिख रही हूं? बचपन मे जब आपकी साड़ी पहन लेती थी तो कितना गुस्सा होती थी ये कहते हुए की आप की सारी साड़ी खराब कर दी मैंने। आज बिलकुल वैसे ही पहनी और रखी भी है मैंने आप की साड़ी जैसे आप रखती थी। और ये देखो ये पल्लू का गांठ आप गुस्से से बांधती थी ना, की आपको हर बात याद रहे, मैंने नहीं खोली। क्योंकि ये वाली गांठ मेरी गलती की थी ना इसलिए, लेकिन हर बार तो आप मेरी गलती पर मुझे माफ़ करके मुझे गले लगा लेती थी इस बार ऐसा क्यों नहीं किया, क्यों अपने गुस्से में कही हुई बात को सच कर दिया मां ... क्यों क्यों एक बार तो मौका देती इतनी जल्दी क्या थी आपको मुझसे दूर जाने की"कहते हुए राधा घुटनो के बल जमीन पर बैठ कर अपनी माँ की दीवार में टँगी तस्वीर के आगे जोर जोर से रोने लगी।

"तभी राधा के बड़े भाई उमेश ने राधा को गले लगा लिया और कहा चुप हो जा राधा कब तक खुद को दोषी मानती रहेगी। जीना मरना सब ऊपर वाले के हाँथ में होता हैं।"

"भाई लेकिन उसदिन माँ मुझसे बात करना चाहती थी मिलना चाहती थी लेकिन मैंने क्या किया।

कहते हुए राधा पुरानी यादों में चली गयी"हेलो!माँ क्या हुआ?"

"बेटा!ये देख साड़ी लायी थी तेरे पापा के साथ बाजार जाकर"सावित्री जी ने कहा

"ओफ़ ओह्ह माँ , आप भी ना, आप और आपका ये साड़ियों से प्रेम ,अभी बिजी हूं माँ बाद में करती हुँ" कहकर मैंने फोन रख दिया और ऑफिस के काम मे बिजी हो गयी।

मुझे लगा साड़ियों की शौकीन मेरी मां मुझे फिर से अपनी लायी हुई किसी नयी साड़ी के बारे में सिर्फ बताना चाहती है। तो बाद में बात कर लुंगी। और आपको पता है भाई उसदिन वीडियो कॉल पर इस साड़ी में आदतन गुस्से में गांठ लगाते हुए उन्होंने कहा"ये ले राधा मैं गांठ बांधती हुँ की अब तुझे फोन करके कभी परेशान नहीं करूँगी,मैं तो तुझसे अपने दिल की बात करना चाह रही थी, तुम लोग छोटे थे तो दिनभर माँ माँ करते थे और मैं सुनती रहती थी सब काम छोड़कर, लेकिन आज तुमलोगो के पास समय नहीं तो कोई बात नहीं रखती हूं अब नहीं करूँगी फोन, क्योंकि तुम लोग अब बड़े हो गए हो,अब तुम लोगो को माँ की जरूरत नहीं रही" कहकर सावित्री जी ने फोन रख दिया

दरसअल सावित्री जी की आदत थी दिन में एक बार जरूर अपने दोनो बच्चो से वीडियो काल करके बात करती।

इधर राधा ऑफिस और घर के कामो में इतनी व्यस्त हो गयी थी कि उसे याद ही नहीं रहता, आजकल कभी कभी तो बात करना भी भूल जाती।

उसदिन सावित्री जी का फोन राधा के लिए आखिरी वीडियो कॉल साबित हुआ ,थोड़ी देर बाद राधा के पापा का फोन आया कि मम्मी को अस्पताल में भर्ती कराया है। एक ही शहर में होने के कारण राधा ऑफिस से सीधा अस्पताल पहुंची । पता चला माँ को हार्टअटैक आया है । और जब तक डॉक्टर के साथ पूरी बात हो पाती माँ ने अपनी आखिरी सांस ली।

माँ की लाडली एकलौती बेटी राधा जिसे उसकी माँ अपना प्रतिबिम्ब कहती थी उसको अकेला छोड़ गयी।

राधा बेतहाशा रोये जा रही थी कहकर" माँ उठो ना, ऐसी भी क्या नाराजगी, कैसे रहेंगे हमसब आपके बिना, कौन करेगा हमे वीडियो कॉल्स.... माँ....."

लेकिन कहते है ना समय बहुत निष्ठुर होता है। जब समय रहते हम इसकी कद्र नहीं करते तो वो भी हमारी कद्र नहीं करता।उनके ना रहने के बाद उनके सामान की बारी आयी, साड़ियों का बॉक्स खोला गया, सब मे एक से बढकर एक साड़ी लेकिन इनको पहनने वाली और सहेज कर रखने वाली अब इस दुनिया मे नहीं थी।

सब रिश्तेदारों की मौजूदगी में जब राधा की भाभी ने कहा"अब कौन पहनता हैं साड़ियां इनको दान कर देते है ।"

तभी राधा जैसे होश में आयी, और बोल पड़ी"नहीं भाभी, ये साड़ियां मैं पहनुगी,आप मुझे दे दो"

एक पल के लिए राधा की भाभी को लगा कही जेवर भी ना मांग ले राधा वो आश्चर्य से देखने लगी उसकी तरफ।

राधा ने कहा "भाभी मुझे सिर्फ ये साड़ियां ही चाहिए, जेवरात आप अपने पास ही रखो"|

आधुनिक सामाजिक माहौल में सावित्री जी ने बहु बेटी के रखरखाव में कोई फर्क नहीं किया था लेकिन बेटी तो बेटी ही होती है।

तभी राधा के पिता जी ने कहा "चुप हो जा बेटा ऐसे रोयेगी तो तेरी माँ की आत्मा को शांति कैसे मिलेगी? एक माँ कभी नहीं मरती वो हमेशा जिंदा रहती है अपने बच्चो के रूप में, उनके संस्कारो में, उनकी यादों में ये तो सिर्फ शरीर है जो चला जाता है। आज तेरी माँ की बरखी है तो उन्हें हँसते हँसते विदाई देंगे हमलोग रोते हुए नहीं, उनकी आखिरी इच्छा भी तो यही थी कि जब वो इस दुनिया से विदा हो तो उनके बच्चों के आंखों में आंसू ना हो, और आज तूने तो ये साड़ी पहनकर उनकी ये इच्छा भी पूरी कर दी,तुझे इसी साड़ी में जो देखना चाहती थी।"

"हाँ पापा आप सही कह रहे है, माँ के दिए संस्कार और परवरिश हमेशा मेरे साथ रहेंगे और मैं उनका हमेशा पालन करूँगी। ये जब भी उनकी साड़ियां पहनूंगी तब तब मुझे उनके गोद और ममता का एहसास होगा। वही खूबसूरत एहसास हमेशा जिंदा रहेगा।

प्रिय पाठकगण बहुत बार ऐसा होता है कि हम ना चाहते हुए भी अनजाने में ऐसी गलती कर बैठते है जिसका पछतावा हमे जिंदगी भर रहता है। इसलिए जब भी माता पिता आपसे बात करना चाहे आप व्यस्त होते हुए भी उनके लिए समय अवश्य निकाले।


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