parakh
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पिछले कुछ दिनों से सोना भी अपने चहरे पर मास्क लगाए थी और दिन में कई बार अपने हाथ साबुन से धो रही थी।
इस पर भी संक्रमण के डर के चलते, आज उन तीनों घरों के काम से,उसे कुछ दिन की छुट्टी दे दी थी।जहाँ की मालकिनों का वह बड़ा आदर करती थी।
और उन्हें अपना हितैषी मानती थी।
क्योकि अभी महीने के शुरुआती कुछ ही दिन बीते थे,इसीलिए उन तीनों ही घरों से उसे मजदूरी के नाम पर भी कुछ न मिला।
फिर वह बेचारी भरी दोपहरी में,उदास मन लिए अपने उस आख़री घर काम करने पहुँची।
जहाँ की मालकिन का अपने प्रति रूखा व्यवहार उसे बिलकुल अच्छा नही लगता था।
क्योकि वह आए दिन सोना के काम मे कुछ न कुछ मीनमेख निकाल।उसे खरीखोटी सुना ही दिया करती थी, जिससे उसका चेहरा रुआँसा हो जाता।
फिर वहां का सारा काम निपटा,सोना ने अपने चहरे का पसीना पोछते हुए, एक पल उस मालकिन की ओर देखा।
उससे नजर मिलते ही, वह सख्त लहजे में बोली। "ऐरी सोना अब कल से कुछ दिनों तक, मेरे यहाँ काम पर ना आना"।
और हाँ जाते हुए, अपनी आठ दिन की पगार और एक महीने के रुपये एडवांस ही मुझसे ले जा।
ठहर मैं कुछ सूखा अनाज भी, तेरे बच्चों के लिए दिए देती हूं।
अब राम ही जाने ये सब कब तक चलेगा, मालकिन की बात सुन आज फिर एक बार सोना की आंखों में नमी उभर आई।
