Kumar Vikrant

Romance

4  

Kumar Vikrant

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पैसे

पैसे

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जूही और मैं हम दोनों रेलवे स्टेशन पर जूही की ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। हम दोनों के बीच ख़ामोशी की एक दीवार सी खड़ी हो गई थी। वजह थी कल रात जब जूही का फोन आया था तो मम्मी ने उसी कमरे आकर जूही के बारे में मुझे बहुत उल्टा-सीधा कहा था और जबतक मैं फोन काटता जूही बहुत कुछ सुन चुकी थी। 

हम दोनों का एक साल पुराना प्रेम अब दुनिया पर जाहिर हो चुका था खास तौर पर मेरे परिवार पर। मेरा परिवार किसी भी तरह के प्रेम विवाह के पक्ष में नहीं था इसलिए मेरे माता-पिता ने मुझे जूही से दूर रहने कि चेतावनी दे दी थी। 

"उस लड़की से दूर रह, उससे शादी की बात को मन से निकाल दे। तू अच्छे जॉब पर है बहुत अच्छे-अच्छे रिश्ते आ रहे हैं , कोई अच्छी सी लड़की मिलते ही तेरी शादी कर देंगे.........सिड की मम्मी ये हर टाइम फोन पकड़ कर बैठा रहता है इसे थोड़ा फोन से दूर रहने की अक्ल तो सिखा दे।" पिता जी ने मेरी तरफ नाराजगी भरी निगाह से देखते हुए मम्मी से कहा था। 

"कहाँ-कहाँ से रोकोगे, जवान लड़का है घर में पहरा लगा लोगे लेकिन घर के बाहर तो ये उस लड़की से मिलता ही होगा........हे भगवान कैसी मत मारी गई है इस लड़के की, लगता है ये खानदान का नाम डूबा कर ही मानेगा। सत्यानाश हो उस जादूगरनी का, पता नहीं क्या खिला-पिला दिया है उसने कि न तो इसे माँ-बाप की चिंता है और न खानदान की इज्जत की फ़िक्र।" मम्मी घर का काम करते हुए गुस्से से बोली थी उस दिन। 

"मम्मी बोय तुम यहाँ क्यों चले आये? जाओ अपने घर, मैं खुद ही ट्रेन पकड़ लूंगी ।" जूही ने स्टेशन पर ट्रेन का वेट करती भीड़ की तरफ देखते हुए कहा। 

"स्टॉप इट जूही ऐसा न कहो, मैं इस टाइम तुम्हारे साथ हूँ मम्मी के साथ नहीं।" मैं जूही को समझाते हुए बोला। 

"ब्रेव मैन, हिम्मत है मम्मी के खिलाफ जाकर मुझसे मैरिज करने की?" जूही हँसते हुए बोली। 

मैं कुछ बोलने ही वाला था कि तभी मेरे सामने एक भिखारी आ गया और बोला, "दान करो पुण्य करो।"

मैंने खुद को दानवीर कर्ण का वशंज साबित करते हुए रूपये का एक सिक्का उसके हाथ पर रख दिया। भिखारी ने मेरे तरफ गुस्से से देखा और सिक्का अपनी जेब के हवाले कर आगे की तरफ बढ़ गया। 

इसके बाद तो भिखारियों और भिखारिनो का ताँता लग गया और मैं उन्हें सिक्के देते-देते परेशान हो गया। एक टाइम ऐसा आया कि मेरी जेब के सिक्के लगभग खत्म हो गए और मैं अंतिम सिक्का भिखारी के हाथ पर रखते हुए बोला, "ले बाबा ये अंतिम सिक्का है अगर अब कोई माँगने आया तो मुझे भी तुम्हारी तरह पूरे स्टेशन से घूम-घूम कर भीख मांगनी पड़ेगी। 

मेरी बात जूही ने सुनी तो वो खिलखिला कर हँस पड़ी और बोली, "सिद्धार्थ के बच्चे तुम सुधरोगे नहीं।"

हम दोनों के बीच ख़ामोशी की दीवार ढह चुकी और हम कल क्या होगा की परवाह न करते हुए अपने आज के रिश्ते को बेहतर करने का प्रयास करने लगे। 


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