पावस
पावस
सावन की सपूर्ण छवि मेरे दिल में आ जाती है जब मुझे गीली मिटटी की खुशबू आती है। जिस्म की तरह तपी हुई धरा पर जब इत्र की बूँदें गिरती हैं, तब लिहाज़ की सभी दीवारें गिर जाती हैं और मन पावस में भीग जाने को करता है। पर बीते दिनों में कोई भी इस वर्षा का लुत्फ़ नहीं ले पा रहा है। सुना है की बारिश शापित हो गयी है। रोज़ सुबह बरगद के पेड़ पर लटकी लाशों के क्रम को देख कर सब भय से बेबस हो गए हैं। सब के घर दीपक भुजने लगे हैं।
मेरे जीवन में केवल एक ही दीपक था जिसने मेरे घर को अद्वित्य द्युति से युक्त कर दिया था। पिछले बरस उसने ज़िद्द की तो मैंने उसे बारिश में खेलने जाने दिया। अब कोई बताये जब एक छोटा बच्चा खेल रहा तो कैसे कोई उससे धक्का दे सकता है? मेरा बेटा उस दिन सड़क हादसे में मारा गया। पर हर सावन वो मुझे दर्पण के पीछे छिपकर बुलाता है, कहता है - 'माँ! खेलना है !'
मैं नहीं चाहती की अब कोई उससे धक्का दे।

