Padma Agrawal

Classics Inspirational

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Padma Agrawal

Classics Inspirational

पासिंग ऑउट परेड में शामिल होने का सपना

पासिंग ऑउट परेड में शामिल होने का सपना

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10 जून का वह खास दिन। जब नीला का नेशनल डिफेंस एकेडमी की पासिंग ऑउट परेड में शामिल होने का सपना पूरा होगा और वह देश सेवा का संकल्प लेगी। उसका सपना मूर्त रूप लेकर साकार होगा।आज सुबह से ही उनका रोम रोम पुलकित था , मन प्रफुल्लित और दिल हर्षित था।

सैनिक वर्दी को अपने मस्तक से लगाने के बाद आदर पूर्वक नमन करते हुय़े उनकी आँखों में खुशी के आंसू झिलमिला उठे थे। शहीद पति निशीथ की स्मृतियाँ उसके मानस पटल को आंदोलित कर रहीं थीं , आज उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि मानों निशीथ प्रसन्नता से उनकी ओर देख कर मुस्कुरा रहें हों।

सपना पूरा होने की प्रसन्नता के अतिरेक के कारण उत्तेजनावश उनकी आँखों से नींद ने उनसे दूरी बना ली थी।वह अपने बचपन की गलियों में विचरण करने लगी थी। तभी बिना मौसम ही जोरों की बादलों की गर्जन सुनाई पड़ी थी। वह उस पल की यादों में खो जाती है जब वह सहम कर निशीथ की बाहों में सिमट कर उनके सीने से लग जाती थी। पति की याद करके उनकी आँखें भर आईं थीं।

निशीथ को 26 जनवरी को वीरता पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था।वह हल्के आसमानी रंग की साड़ी में लिपटी हुई स्टेज पर गई थी , उसके चेहरे पर पति के लिये गर्व के साथ उनके बिछोह की उदासी की पर्त छाई हुई थी वह अपने हाथ में मेडल लेकर चुपचाप बाबा के पास आकर बैठ गई थी। सूनी आँखों से वह शून्य में देख रही थीं।

आज निशीथ की जय जयकार पूरा देश कर रहा था परंतु उनके परिवार पर क्या बीत रही है और उनका परिवार कैसे गुजर बसर कर रहा है।जिस परिवार का इकलौता कमाऊ चिराग, उनकी बुढापे की लाठी उनके हाथ से छूट जाये और उसके एवज में चंद रुपये और स्टेज पर दिय गये सम्मान से क्या जीवन बीत जायेगा। कोई भी उनके परिवार के बारे में क्यों नहीं बात करता।एक ऐसा प्रश्न जो हर शहीद के परिवार को उद्वेलित कर उठता है  परंतु देश प्रेम का जज्बा तो सबसे ऊपर होता है।

नीला की आँखों के सामने पुरानी यादें , मुलाकातें, भविष्य को लेकर संजोये हुय़े सारे सपने सजीव हो उठे थे , वह सोचने लगी। ये अवचेतन क्यों स्मृतिपटल में सारी यादें संजो कर रखे रहता है और जैसे जरा सी फूँक मारते ही कोयले की आग दहक उठती है वैसे ही स्मृति ठंडी हवा के झरोखे की तनिक सी आहट मिलते ही पुरानी यादें चल चित्र की भाँति आँखों के सामने अठखेली करने लगती है। पत्नी और परिवार को तो जाने कितने तानों , उलाहनों, और उपालंभों और संघर्षो से गुजरना पड़ता है।

शहीद की गाथा तो स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाती है , परंतु पत्नी और परिवार को क्या क्या झेलना पड़ता है , उसकी चर्चा कोई नहीं करता। उनकी पलकों के किनारे से अश्रु धारा प्रवाहित हो उठी थी।

वह अतीत के पृष्ठों को पलटने में ही उलझी हुई थी।जैसे कल की ही बात हो – वह बी ए में पास हुई भर थी। बाबा को उसकी शादी की चिंता सताने लगी थी। वह अपने परिचितों और रिश्तेदारों से कोई लड़का बताने के लिये कहते तभी पड़ोस की शांता चाची के यहाँ उनसे राखी बँधवाने उनका दूर का भाई निशीथ आया था , उस समय वह चाची के घर पर ही थी दोनों की नजरें आपस में मिलीं। सजीला सा बाँका जवान , गेहुँआ रंग ,लंबा गठा शरीर सौष्ठव , पतली पतली मूँछे ,वह तो पल भर को पलकें झपकाना ही भूल गई थी तभी चाची की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी। वह होश में आकर शर्माई हुई दौड़ती भागती अपने घर आ गई थी। उसकी साँसे धौंकनी सी चल रहीं थीं  वह सपनीला जवान तो जैसे उनके दिल में उसी क्षण से डेरा डाल कर बस गया था।

चाची और अम्मा के बीच में खुसुर फुसुर होती रहती थी। एक दिन चाची उसे छेड़ते हुय़े बोलीं ,” नीला , फौजी से शादी करेगी? “” निशीथ को तू पसंद आ गई है बहुत किस्मत वाली हो। उसके लिये तो लड़कियों की लाइन लगी है लेकिन निशीथ तो तुम पर मर मिटा है , कुछ सुनने को ही नहीं तैयार है।ससुराल में जाकर राज करोगी , मेरी बुआ के एक ही बेटी है और वह भी शादीशुदा। खूब पैसे वालों के घर में वह ब्याही है “

शांता चाची की बात सुन कर उनके मन में प्यार की कोंपलें फूटने लगी थी। बाबा को तो लग रहा था कि जैसे उनकी तो लॉटरी ही निकल पड़ी हो। घर में बैठे बैठे इतना अच्छा घर परिवार और फौज में अफसर लड़का, भी वह बिना दहेज की माँग के।उसकी छुट्टियाँ समाप्त होने के पहले ही उसका चट मँगनी पट ब्याह तय हो गया था। सगाई की रस्म थी , वह शर्माई हुई छुईमुई सी गठरी बनी हुई बैठी थी तभी निशीथ सबकी नजरें बचा कर उसकी हथेलियों को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया और बोले थे ,” मैं फौजी हूँ।इसलिये यदि शादी नहीं करना चाहती हो तो अभी ही बता दो। क्योंकि अभी तो कुछ भी पक्का नहीं हुआ है।”

वह आँखों ही आँखों में प्यार भरी नजरों से निशीथ की ओर देखते हुए मुस्कुरा कर बोली थी, “यहाँ पर सबकी निगाहें हम दोनों की ओर ही देख रही हैं “ सारे विधिविधान और पूजा पाठ को पूरा करने के बाद एक दूसरे की अंगुली में अँगूठी पहना कर रस्म अदा की गई।

 फिर भगवान् के दर्शन के लिये उन दोनों को मंदिर ले जाया गया था। सब लोग खाने की व्यवस्था और दूसरे कामों में व्यस्त हो गये थे। अकेला मिलते ही निशीथ उनका हाथ पकड़ कर मंदिर के पिछवाड़े में लेकर गये, वहाँ पर पत्तियों के ढेर में आग लगाई गई हुई थी , उसमें खूब लौ उठ रही थी। निशीथ ने उनका हाथ पकड़ा और जल्दी जल्दी फेरे लगा लिये और बोले ,‘लो अपुन दोनों की शादी के फेरे तो हो गये।’ वह हँस कर बोली थी , “लेकिन सिंदूर तो अभी नहीं भरा।” उन्होंने पलक झपकते पैंट से छोटा सा कुछ निकाला और अंगुलि से खून की बूँद छलक पड़ी , उससे माँग भर कर अपनी बाँहों में भर लिया था। सब कुछ इतनी जल्दी हो गया था कि वह विश्वास ही नहीं कर पा रही थी कि वह निशीथ की अर्धाँगिनी बन चुकी है।तब तक सब लोग उन लोगों को ढूढते हुय़े आ गये थे और फिर शुरू हो गई थी सबकी छेड़ छाड़। उन दोनों ने मंदिर में माथा टेका और भगवान् से अपने सुहाग को अक्षुण्ण रहने का वरदान माँगा था

जल्दी ही शादी का दिन भी आ गया और धूमधाम से वह दुल्हन बन कर निशीथ के घर आ गई। उनकी माँ को वह बिल्कुल भी पसंद नहीं आई थी क्यों कि वह अपने साथ भारी भरकम दहेज नहीं लाई थी और उन्हें निशीथ की जिद् के आगे झुकना पड़ा था और शादी के लिये राजी होना पड़ा था। और चंदा दीदी इसलिये नाराज थीं क्योंकि वह अपनी सहेली को अपनी भाभी बनाना चाहतीं थीं। उनकी सहेली के साथ उनके भाई ने धोखा किया था।

ससुराल में निशीथ और पापा जी उनको दिल से चाहते थे वह मम्मी जी का दिल जीतने की कोशिश करने में लग गई थी दीदी तो बुझे मन से शिकायतों की पोटली अपने साथ लेकर चलीं गईं थीं लेकिन मम्मी जी को उनका निशीथ के पास घडी भर बैठना भी पसंद नहीं आता , वह जैसे ही उनके पास जाती मम्मी जी किसी न किसी काम केलिये आवाज लगा कर बुला लेतीं। वह दोनों ही मन मसोस कर रह जाते।

रात को वह अपने प्रियतम की बाहों में सिमट कर अपने भाग्य को सराहती कि उसे इतना प्यारा पति और ससुराल मिला है। निशीथ की आदत थी कि वह उसे अक्सर गाँव की गँवारन कह कर चिढाया करता और जब वह चिढ जाती तो वह उन्हें झट से मना लेता। वह जानता था कि यह प्यार भरे पल जल्दी ही बीत जायेंगें क्यों कि छुट्टी समाप्त होते ही उसे ड्यूटी पर जाना पड़ जायेगा। और वही हुआ।

सीमा पर लड़ाई छिड़ गई। कारगिल पर सिरफिरे पाकिस्तान ने जंग छेड़ दी थी। सबकी छुट्टियाँ कैंसिल कर दी गईं थीं। उसे भी अगले दिन ही जाकर जल्द ड्यूटी ज्वायन करनी थी।विरह की कल्पना मात्र से ही वह रो रोकर बेहाल हो गई थी

निशीथ उनसे प्यार से बोले ,” तुमने एक फौजी से शादी की है , उसे तो हँस कर विदा किया जाता है।”’ तुम इस तरह से रोती रहोगी तो मैं कैसे जा पाऊंगा। तुम्हारे आँसुओं की डिबिया क्या हर पल लबालब भरी रहती है , जो तुम जब चाहे तब बहाने लग जाती हो ‘

क्षण भर को उनके चेहरे पर मुस्कान छाई लेकिन फिर तुरंत पति के जाने का ख्याल आते ही आँखों से गंगा जमुना की जल धारा बहने लगी थी। उन्हें अगले दिन ही जाना था। वह सारी रात उनके सीने से चिपटी आँसू बहाती रही थी। आखिर निशीथ भी कब तक अपने को कंट्रोल में रख पाता उनकी आँखें भी भीग उठीं थीं लेकिन ड्यूटी पर तो जाना ही था। निशीथ घरवालों को रोता बिलखता छोड़ कर चले गये थे।

कुछ दिनों तक तो उनके साथ संपर्क बना रहा था। परंतु जब वह मोर्चे पर भेज दिये गये तो फिर संपर्क सूत्र समाप्त हो गये थे।

वह निशीथ को खुशखबरी देना चाह रही थी कि उनके शरीर के अंदर उन दोनों के प्यार का अंकुर प्रस्फुटित हो गया है। उन्होंने कई बार कोशिश की थी परंतु नियति को शायद मंजूर ही नहीं था। वह अपने प्रियतम से अपनी खुशी साझा करना चाहती थी कि तुम्हारा अंश उनके अंदर सांस भी लेने लगा है। परंतु संपर्क न होने के कारण अब वह मन ही मन आशंकित रहने लगीं थीं। अब वह हर पल अपने ईष्ट से पति की कुशलता की लिये प्रार्थना करती रहतीं थीं।

लगभग एक महीना भी नहीं बीत पाया था कि एक दिन खबर आई कि मेजर निशीथ सीमा पर दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गये हैं। उनके कानों में ऐसा लगा जैसे किसी ने कानों में गर्म पिघला शीशा डाल दिया हो। वह अपना होश खो बैठी थी वह पल उनके जीवन का सबसे कठिन पल था। सब कुछ मानों ठहर सा गया हो।

वह दृश्य आज भी उनकी आँखों के सामने सजीव हो उठता है , जब कुछ फौज के जवान अपने साथी का सामान लेकर आये थे। उनकी आँखे भी नम थीं लेकिन वह क्या कर सकते थे। सब तरफ निशीथ की जयजयकार गूँज रही थी लेकिन उनकी आँखें तो उन फौजियों के चारों तरफ अपने निशीथ को ढूंढ रही थी। वह तो उनसे वादा करके गये थे कि वह जरूर लौट कर आयेंगें। परंतु अब तो सब तरफ केवल शून्य ही शून्य था। अपने जीवन में आये इस अंधकार के बारे में सोचते हुय़े वह समझ ही नहीं पा रही थी कि उसके साथ क्या घटित हो चुका है। जब उन्हें होश आया तो सामने मम्मी जी बैठ कर रोती हुई दिखीं वह उनसे लिपट कर रोने लगी थी लेकिन उन पर वज्रपात सा हुआ था , उन्होंने उनका हाथ पकड़ कर पापा के हाथ में देते हुए कहा , ‘अपनी इस असगुनी बिटिया को अपने साथ ले जाओ , अब जब बेटा ही नहीं रहा तो इसको रख कर क्या इसका अचार डालेंगें।’

 वह बिलखती रही लेकिन उनका दिल नहीं पिघला और वह कहती रहीं मेरे बेटे को खा गई। फिर भी वह बेशर्म होकर बोली थी , ‘आपके बेटे का अंश मेरी कोख में सांस ले रहा है।’ परंतु उनकी बात किसी ने नहीं सुनी और घर के कूड़े की तरह उनको घर से निकाल कर बाहर फेंक दिया था।

मजबूरन माँ और बाबा रोती बिलखती अपनी लाडली विधवा बेटी का हाथ पकड़ कर अपने घर लेकर आ गये।जहाँ जीवन में चारों तरफ खुशियां छाईं हुईं थीं , वहाँ अब जीवन में चारों तरफ घना अंधकार छा गया था। माँ बाबा ने कितने अरमानों के साथ उन्हें डोली पर बिठाया था लेकिन विधाता ने साल के अंदर ही उन्हें विधवा बना कर उसी घर में भेज दिया था। समाज की नजरो में अब वह भाग्यहीन दया का पात्र बन चुकी थी।

परंतु समय का पहिया तो अनवरत् गतिमान रहता है उनकी गोद में नन्हा पार्थ आ गया।उन्होंने नियति को स्वीकार भी कर लिया और साथ में यह निश्चय भी कर लिया कि वह पति के अधूरे काम को सेना की वर्दी पहन कर पूरा करेगी। जब बेटा दो वर्ष का हो गया तो वह आगे की पढाई करने के लिये दिल्ली चली गई।वह सेना की वर्दी पहन कर अपने पति निशीथ को सबसे बड़ी श्रद्धंजलि देना चाहतीं थी।

पति की शहादत के बाद उनके नक्शे कदम पर चलते हुय़े उन्होंने सेना में शामिल होकर देश सेवा का निश्चय कर लिया था लेकिन उन्हें इस मार्ग में हर कदम पर अवरोधों का सामना करना पड़ रहा था।

परंतु यह कहावत कि जहाँ चाह वहाँ राह सच कही गई है। उन्होंने ऑनलाइन सर्च करके गुड़गाँव के ध्रूव ट्यूटोरियल के क्लासेज को ज्वायन कर लिया , साथ में सुबह के समय एक प्ले स्कूल में नौकरी भी कर ली थी वह अथक परिश्रम कर रही थी। वह अपने बेटे पार्थ और माँ बाबा को गुड़गाँव बुलाने के लिये सोच ही रही थी।लेकिन विधाता को अभी शायद उनकी और परीक्षा लेनी बाकी थी।

बाबा निश्चय ही निशीथ के जाने के सदमें को नहीं सहन कर पाये थे वह दिन पर दिन कमजोर होते जा रहे थे , मन ही मन घुटते रहते थे वह अपनी बेटी और नन्हें पार्थ के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित और परेशान रहते थे धीरे धीरे वह चारपाई से लग गये थे। और एक रात सोये तो सदा के लिये ही सोते रह गये थे।

सब कुछ फिर से उलट पुलट गया था। पढाई लिखाई सब कुछ भूल कर वह भागती हुई कासगंज लौट कर आ गई थी। उनके सपने फिर से अधर में लटक गये थे। वह अपनी अम्मा के करुणक्रंदन को सुन कर स्त्री की बेबसी को देख , उन्हें तसल्ली देते देते स्वयं भी फफक उठती परंतु अम्मा के सामने मजबूत बनने के प्रयास करती रहती। कई बार उन की खुद की हिम्मत टूटने लगती थी। अम्मा को कासगंज से गुड़गाँव लाने में पूरा एक साल लग गया था। आखिर में वह अम्मा और नन्हें पार्थ को गुड़गाँव ले ही आई।

गुड़गाँव के उसी प्ले स्कूल में नौकरी कर ली और वहीं पर पार्थ का एडमिशन करवा दिया वह उसे स्कूल अपने साथ लेकर जाती। फिर से ध्रूव ट्यूटोरियल की क्लासेज ज्वायन कर लिया  वह बेटे के मन में भी देश प्रेम का जज्बा जगाने की कोशिश में उसे देश प्रेम की कहानियाँ सुनाया करतीं। वह सेना में भर्ती होने के लिये वेकेंसी निकलने का इंतजार कर रही थी।

एक दिन अम्मा ने उनसे कहा, “क्यों इतनी जानमारी कर रही हो।निर्मल तुम्हें पसंद करता है , वह तुम्हारे पीछे आया करता है और पार्थ के साथ खेला करता है। वह उसे घुमाने भी लेकर जाया करता है। बेकार में इतनी मेहनत कर रही हो , क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रही हो  वह उन पर नाराज हो उठीं थीं। एक बार धोखा खा चुकी हो , अब फिर से उसी आग में जलने को तैयार हो। और तो और पार्थ को भी उसी में झोंकने की तैयारी कर रही हो।”

“ मेरा कहा मान कर निर्मल के साथ शादी कर लो और ऐश की जिंदगी जिय़ो। “

“ मेरी अम्मा मैं निशीथ की यादों के साथ बहुत खुश हूँ।अब मैं किसी को भी कभी प्यार नहीं कर पाऊँगीं। मुझे निशीथ के अधूरे सपने को पूरा करना है। “

    कोचिंग सेंटर में ही उनकी मुलाकात दीपक सर से हुई , जो पहले सेना में मेजर रह चुके थे। जब उन्होंने उनसे अपनी ख्वाहिश बताई कि वह सेना में अफसर बनना चाहती है।

तब उन्होंने बताया , “शहीदों की विधवाओं के लिये कोटा निश्चित होता है और वहसेना में भर्ती होने में उनकी यथासंभव मदद करेंगें।”

 जिस दिन उनका पेपर था, अम्मा को बहुत जोर का डेंगू हो गया , उन्हें एंबुलेंस में लेकर उन्हें हॉस्पिटल भागना पडा। वह मन मसोस कर रह गई थी लेकिन अम्मा तो उनके जीवन का सहारा थीं वह उनके लिये बहुत कीमती थीं वह तीन दिनों तक आइ। सी यू में जीवन और मौतके झूले में झूलती रहीं थीं। प्लेटलेट बहुत कम हो गये थे। उनके जीवन के लिये परीक्षा की घड़ी थी। वह निराशा के भँवर में कभी डूबती तो कभी उबरती। जब उनका प्लेटलेट काउंट बढने लगा तब उनकी जान में जान आई थी। लेकिन उन्हें लग रहा था कि उनके सारे सपने चकनाचूर हो गये हैं।

परंतु वह फिर से उसी लगन से अपनी तैयारी में लग गईं थीं। अगले वर्ष जब परीक्षा की तारीख पास आई तो वह जी जान से जुट गईं थीं। उन्होंने पहले प्रयास में ही ( SSB )पास करके चेन्नई स्थित ( ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी) पहुँच गईं थीं लेकिन मेडिकल पास करने के लिये उन्हे कठिन परिश्रम करना पड़ रहा था। वह रोज सुबह 4 बजे उठ कर दौड़ लगाया करती। पार्थ के लिये एक सहायिका रख दी थी। अम्मा को उनका सेना में जाने का फैसला बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था। वह हर समय उन्हें हतोत्साहित करती रहतीं थीं और निर्मल के साथ शादी करते सुखपूर्वक जीवन बिताने के लिये कहतीं रहतीं परंतु वह अपने निश्चय और फैसले पर अडिग थी।

मेजर दीपक से जब वह मिलीं तो उनकी अँग्रेजी पर पकड़ बहुत अच्छी नहीं थी। क्योंकि वह छोटे शहर के सरकारी स्कूल में पढीं थीं चूँकि वह सेना में अफसर बनना चाहतीं थीं , इसलिये इंग्लिश भाषा को अच्छी तरह समझने और जानने की जरूरत थी। उन्होंने इंग्लिश के नॉवल उन्हें पढने के लिये दिये फिर उस पर प्रश्न भी पूछे  अब वह कठिन शब्दों के लिये डिक्शनरी की मदद लेकर उसको अच्छी तरह समझती तभी उनके पास जाती थी। अब वह उन्हें कॉन्फिडेंस से सही उत्तर देने लगी थी। उनकी लगन को देख कर वह बहुत प्रभावित हुय़े थे और फिजिकल टेस्ट पास करने के लिये वह शाम को फिजिकल फिटनेस की ट्रेनिंग करने की सलाह दी थी। उनकी सलाह और मार्गदर्शन ने उनकी राह के सारे कंटक दूर कर दिये और वह सारे राउंड पास करती चली गई थीं।

परंतु शायद अभी उनकी परीक्षा पूरी नहीं हुई थी।जब वह साक्षात्कार ते लिये जा रहीं थीं तो गलत साइड से आने वाले लड़के ने दूसरे बाइक वाले को टक्कर मार दी और युवक लहुलुहान होकर सड़क पर गिर गया था , भीड़ उसके चारों इकट्ठी हो गई और लोग तमाश बीन की तरह वीडियो बनाने में लग गये थे। उन्होंने झटपट एक ऑटो बुलाया और लोगों की मदद से युवक को लेकर सिटी हॉस्पिटल गई , वहाँ उनकी फर्स्ट एड करवा कर उनके फोन से ही उनके घर सूचना दी तो रोती बिलखती एक कमसिन युवती अपने नन्हीं सी बालिका को गोद में लिये हुई रोती बिलखती आकर खड़ी हो गई थी।घबराओ मत हल्की फुल्की चोट है , ठीक हो जायेगी कह कर वह भागती हुई सेंटर पर पहुँच गई। लेकिन उनका नाम पुकारा जा चुका था। वह निराशा के भँवर में डूब गई और सिर पर हाथ रख कर वहीं बेंच पर बैठ गई। उन्हें फिर से अपनी मेहनत पर पानी फिरता महसूस हो रहा था

   कुछ देर विचार करने के बाद वह साहस के साथ दरवाजे पर पहुँच कर बोली ,” में आई कम इन सर ,” कहने के बाद सारी घटना कुछ शब्दों में कह सुनाई थी। इंटरव्यू लेने वाले मेजर रंधावा उनकी बातों से बहुत प्रभावित हुय़े और उनका इंटरव्यू लेकर बोले ,” रिजल्ट के लिये तो इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि सारी रिपोर्ट्स फाइनल सेलेक्शन का रिजल्ट बाद में हमसे बड़े ऑफिसर सारी रिपोर्ट्स को देखने के बाद बनाते हैं। “

वह निराश मन से घर आ गई थी। और पार्थ को अपने गले से लगा कर प्यार किया अम्मा के लिये चाय बनाई और दोनों साथ में बैठ कर चाय पीने लगीं। अम्मा उनके चेहरे को गौर से देख रहीं थीं परंतु कुछ समझ नहीं पा रहीं थीं। जब उन्होंने पूछा, ‘इंटरव्यू कैसा रहा ?’, तो उन्होंने सारी आपबीती कह सुनाई।

वह तुरंत बोल पड़ी कि मैं तो पहले से ही जानती थी, “तुम नहीं पहुँच पाओगी “

वह चौंक पड़ी थीं, क्या ये सब सुनियोजित था  अम्मा और निर्मल इतना नीचे गिर सकते हैं। उनका निश्चय और भी दृढ हो गया था।

अम्मा के चेहरे पर अपनी सफलता देख कर मुस्कान छा गई थी ,” बिटिया जिद् छोड़ दो “,देखो, भगवान् भी नहीं चाहते हैं कि तुम सेना में भर्ती हो जाओ “

“अम्मा, आपको पहले ही कैसे मालूम हो गया था कि वह इंटरव्यू में नहीं पहुँच पायेगी “

उनका चेहरा सफेद पड़ गया था ,” मैंने तो यूँ ही कह दिया था। “

“अम्मा आपके भगवान् चाहे या ना चाहे मैं तो सेना में शामिल होकर रहूँगीं।”

वह दुबारा अपनी तैयारियों में जुट गई थी।

लगभग 15 दिनों के बाद एक दिन उनके पास फोन आया , “नीला आपका सेना में सेलेक्शन हो गया है। आपको 20 फरवरी को रिपोर्टिंग करनी है। “

 अपनी सफलता की खबर पाकर उनकी आँखें छलछला उठीं थीं।

उन्होंने भरी हुई आँखों से आकाश की ओर देख कर कहा,” निशीथ मैं तुम्हारे अधूरे काम को पूरा करूँगी और दुश्मनों से बदला लेकर रहूँगीं।”

उन्होंने बेटे पार्थ को अपने सीने से चिपका लिया था।

जाने कब उनकी आँखें झपक गईं थीं  भोर का उजास और नव सूर्य की चंचल लाल किरणों के प्रकाश से उनकी तंद्रा भंग  कर दी थी और पासिंग आउट परेड की कल्पना से उनका तन मन तरंगित हो उठा था। वह तेजी से उठीं और सैनिक वर्दी को अपने माथे लगा कर पहन कर तैयार हो गईं थीं।

आखिर उनका सपना पूरा हुआ। परेड करते समय उन्होंने देखा कि नन्हां पार्थ सैनिक की तरह सलामी दे रहा था।

वह भाव विभोर हो उठीं थी।

आखिर आज उनका चिर प्रतीक्षित सपना पूरा हो ही गया। गर्व भरी मुस्कान चेहरे पर छा गई।


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