डॉ0 साधना सचान

Abstract

4.7  

डॉ0 साधना सचान

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पापा की परी

पापा की परी

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बचपन से सुनती आई हूँ बेटियाँ पापा की परी होती हैं !

पर मुझे नहीं पता।

माँ ने बताया था कि जब मैं उनके पेट में थी तभी पापा को किसी और से लगाव हो गया था।

बहुत समझाने के बाद भी जब पापा ने किसी की बात नहीं मानी तो माँ मुझे लेकर नाना के घर आ गईं।तब मैं एक महीने की थी।

माँ ने दुबारा पढ़ाई शुरू की फिर नौकरी करने लगीं।मुझे नाना -नानी और माँ तीनों का प्यार मिला।मैं उनकी परी हूँ।पापा तो मुझसे कभी मिलने भी नहीं आये।पैरेंट्स मीटिंग में सबके पापा पहुँचते पर मेरे नहीं।हाँ नानाजी बिना नागा किए पहुँच जाते।उनका सपना था कि वे मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बनाने के बाद ही मेरी शादी करेंगे।मैंने डॉक्टर बनकर उनका सपना पूरा भी किया।जब तक वो जिंदा थे सबसे बड़े गर्व से कहते -----ये मेरी नातिन है कृष्णा बिटिया की बेटी,डॉक्टर है।

 मेरा परिचय करवाते समय उनके चेहरे पर अलग ही खुशी झलकती थी।

पर मेरे अंदर कभी न कभी ये बात जरूर आ जाती कि काश! मैं, माँ और पापा सब साथ होते तो शायद कुछ और ही बात होती।तब शायद नाना जी मेरा परिचय इस प्रकार देते -------ये मेरी नातिन है कृष्णा और सुदीप की बिटिया, डॉक्टर है।

वैसे मैं अपनी माँ के साथ बहुत खुश हूँ।मुझे किसी चीज की कमी नहीं होने दी मेरी माँ ने। मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ।मुझे उन पर गर्व है।उन्होंने हमेशा अपना स्वाभिमान बनाए रखा वरना एकल अभिभावक होना इतना आसान नहीं होता है।लोग तो औरत को ही दोष देते हैं।सोचते हैं उसने ही नहीं निभाया होगा।

फिर भी एक बात बताओ तुम्हें पता है------

पापा की परी कैसी होतीहै?

दीप्ति ने अपने पति सुयश से पूछा।

मुझे ये तो नहीं पता, बस मैं तो इतना जानता हूँ कि तुम मेरे छोटे से संसार की रानी हो और मेरी आने वाली गुड़िया मेरी परी है।  


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