डॉ0 साधना सचान

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4.0  

डॉ0 साधना सचान

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स्कूल में प्रवेश

स्कूल में प्रवेश

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बलराम जी अपनी पेंशन के काम से बैंक पहुँचे लेकिन वहाँ पहुँचते हुए उन्हें थोड़ी देर हो गई,बैंक में लंच टाइम हो गया था।वो इंतजार करने के लिए वहीं रखी कुर्सी पर बैठ गए।थोड़ी ही देर में एक सज्जन पुरुष आये और उनके पैर छुए।बलराम जी उन्हें पहचान नहीं पाए।वे अजनबी निगाहों से उन्हें देखने लगे।तभी सज्जन पुरुष ने उनसे कहा सर मैं कपिल, पहचाना आपने।मैं आपका शिष्य।आज मैं जो भी हूँ आपकी वजह से ही हूँ।कपिल बलराम सर को अपने केबिन में ले गया।उन्हें आदर के साथ बैठाया।       

"सर मेरे पिता मजदूर थे,माँ घर पर सिलाई करती थीं।किसी तरह घर का खर्च चल रहा था।मैं उनकी इकलौती सन्तान हूँ।पिता जी के मन में एक इच्छा थी कि मैं पढ़लिखकर अच्छा आदमी बनूँ।उन्होंने मेरे प्रवेश के लिए बहुत से स्कूलों में पता किया पर फीस इतनी ज्यादा थी कि उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था।तभी मालती आन्टी ने आपसे बात करने के लिए कहा।पिता जी आपसे मिलने गए।तब आपने उन्हें बताया था कि सरकार ने केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत बच्चों को मुफ़्त शिक्षा का प्राविधान है।सरकार ऐसे बच्चों को ड्रेस तथा किताबों के लिए पैसे भी देती है। आप उसके अंतर्गत बच्चे के प्रवेश के लिए फॉर्म भर दीजिए। पिता जी उस दिन बहुत खुश थे क्योंकि उन्हें आपसे एक उम्मीद की किरण मिल गई थी।अगले दिन वो स्कूल जाकर मेरे प्रवेश के लिए रजिस्ट्रेशन फॉर्म भर आये।इस तरह मेरा प्रवेश केंद्रीय विद्यालय में हो गया।मैंने वहाँ पर कक्षा 12 तक शिक्षा प्राप्त की।आगे की शिक्षा के लिए मैंने कुछ ट्यूशन कर लिये और पिता जी को भी स्थाई काम मिल गया।आपके आशीर्वाद से मैं आज इस बैंक का मैनेजर हूँ।कपिल ने बलराम सर का सारा काम कर दिया।घर वापस आते समय बलराम जी को एक अलग तरह के आनंद की अनुभूति हो रही थी।              


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