पापा जब बीमार थे !
पापा जब बीमार थे !
सन् 2005, मई का महीना शाम के 7बजे जब उन्हें अटैक आया। कोई कुछ समझ नहीं पाया हम भी दौड़कर गये बाजार से एक झोलाछाप डॉक्टर को लिवा लाये क्या करता वह भी इधर उधर आला लगाकर वीपी वगैरह चेक करके दो ख़ुराक दवा देकर चलता बना।
रात में हम उनके बगल में ही सोये थे कि 12 बजे अचानक फिर उन्हें रि-अटैक आया इस बार कुछ तेज था। आवाज उनकी लड़खड़ा रही थी किसी तरह हमको जगाये और बोले हमें शहर ले चलो। भगकर हम गये गाड़ी लाये और माँ के साथ उनको लेकर जौनपुर चले गये।
घर पर और कोई सदस्य नहीं थे। वहाँ भी डॉक्टर मिला नहीं किसी तरह कर्मचारी ने एडमिट कर लिया। गुस्सा तो बहुत लगा फ़ीस इमरजेंसी का लेकर सुबह 10 बजे जब उनको देखने आया।
भोर में हम चाचा जी को फोन कर चुके थे जो लखनऊ विश्वविद्यालय के एक महाविद्यालय में लेक्चरर थे।
आराम कुछ नहीं दिख रहा था बेहोश पड़े थे ड्रिप चढ़ रहा था। 3 बजे दोपहर में जब चाचा आये तो थोड़ा हमें राहत मिल गयी। उनको पता था अटैक और न्यूरो का केस है। डॉक्टर छोड़ने को तैयार नहीं था किसी तरह लड़झगड़ कर उन्हें डिस्चार्ज कराकर लखनऊ ले गये। दो दिन में आराम हो गया था बिलकुल कि अचानक फिर अटैक आया और गला भी बन्द हो गया उनका। डॉक्टर बोला नली लगवा लो कहीं से दवा वगैरह उसी से डालो और कोई चारा नहीं है।
पापा रेलवे विभाग के इंजीनियर पद से उसी साल रिटायर हुये थे। जीजा जी भी रेलवे में थे उन्होंने ने ले जाकर लखनऊ के रेलवे मण्डल अस्पताल में दिखाए। नली तो लग गयी मगर उपचार के नाम पर कुछ नहीं हो रहा था। हम भी दूसरे दिन उनका मेडिकल कार्ड लेकर अस्पताल पहुंच गये। फिर प्लान के अनुसार स्टाप से सुलह समझोता करके दूसरे न्यूरो के डीएम डॉक्टर को दिखाया गया। भर्ती रेलवे के अस्पताल में थे और इलाज प्राइवेट चलने लगा यह बात हमीं लोगो तक सीमित थी।
एक महीने की कड़ी मसक्कत के बाद उन्हें आराम होने लगा। घर आये तो हार्ट में भी प्राब्लम आ गयी डॉक्टर ने पीजीआई में रिफर कर दिया। 3 लाख में रिंग पड़ा तब जाकर हार्ट में रक्त आने जाने लगा। आज भी दवा चल रही है उनकी साल में एक बार डॉक्टर देखता है फिर वही दवा एक साल तक चलती है। पापा मेरे अभी मेरे बीच में हैं। उन्हीं के पेंशन से हम लोगों की जीविका चल रही है।
हम तो बिलकुल निराश हो गये थे मगर ख़ुशी बहुत होती है कि वे आज भी मेरे साथ हैं।