STORYMIRROR

Vinay Panda

Others

3  

Vinay Panda

Others

बड़े घर की बेटी

बड़े घर की बेटी

3 mins
264

संदली एक बड़े घर की बेटी थी शायद जानकी को आभास हो गया उस समय !

"प्लीज् आंटी दिखाओ ना आप नया क्या कुछ बना रही हैं!"

जानकी हाथ पर हाथ धरे बैठी थी कि अचानक संदली जानकी के हाथ में लिए सामान को छूना चाहा जिसे वह देख सके..

जानकी तुरन्त मना करते हुये कहा "बेटा तुम अभी पढ़ाई करो तुम्हे अभी बहुत आगे बढ़ना है ।

अभी आपको इसकी जरूरत नहीं है और ना पड़ेगी भी ।यह तो हम ग़रीबों की टाइम पास के रूप में है जिससे कुछ जीविकोपार्जन का भी काम चल जाता है ।"

जानकी का गला भर आया था उस समय वह अपनी पुरानी दुनिया में खोयी जा रही थी..!संदली कोई बच्ची भी नहीं थी सब बात समझ रही थी।एक इण्टरमीडिएट की पढ़ाई करने वाली छात्रा दुनिया और समाज को भलीभांति समझने लगती है !संदली के के हाव-भाव देखकर जानकी समझ गयी,यह अब मुझमे इंट्रेस ले रही है आख़िर मना भी करती कब तक ।बस आधे घण्टे लेट थी दोनों को एक ही बस से जाना भी था..!जानकी बड़े प्यार से अपने थैले से कुछ छोटे-छोटे कपड़े के टुकड़ों को निकाला जिस पर बड़े सुंदर बुटीक के डिजाइन बने थे ।दरअसल जानकी एक पाइवेट फर्म में काम करती थी डिजाइन बनाकर जिसके एवज में उसे कुछ मेहनताना मिल जाता था ।संदली हाथ लेकर सभी बुटिको को ध्यान से देखने लगीसाथ ही साथ वह जानकी की तारीफ़ भी किये जा रही थी ।

"वाह आंटी आप के हाथ में इतना हुनर है कभी आपने मुझे नहीं बताया..!"

संदली के इस आश्चर्य को देखकर जानकी कुछ खुलकर बाते करने लगी थी..

"बेटा अब वो जमाना नहीं रहा लोग कला का शोषण करते हैं । बस किसी तरह चल रहा है।"

"आंटी आप एक दिन शाम को आप मेरे घर आओ पापा हैण्डलूम का काम करते हैं।हो सकता है वो आपकी मदद करें कुछ।

अचानक इन्हीं बातों के बीच बस आ गयी दोनों वहाँ से अपने-अपने गन्तव्य को चल दी..बस में सवार होने के बाद जानकी की नजर एक ऐसे इन्सान पर पड़ी जो उसके साथ पढ़ा था और उसी बीच दोनों में प्यार हो गया था ।कहते हैं ना जब क़िस्मत को चमकनी होती है तो हजार ख़ुशियाँ एक साथ मिलती है ।

अरुण की नजर जब जानकी पर पड़ी वह आश्चर्य से हतप्रभ होकर अपने सीट से खड़ा हो गया ..

"अरे तुम ..जानकी"

"आप ... आप कब आये विदेश से !"

"एक महीना हुआ, छोड़ो सब ,तुम बताओ कैसी हो?"

अरुण ने पूछा..

"बस दिन काट रही हूँ तुम्हारे जाने के बाद और माता जी के गुजर जाने के बाद एक दम तनहा और टूट चुकी हूँ.."जानकी का गला भर आया।

"नहीं जानकी अब तुम उदास मत हो अब मैं यहीं सेटल करूँगा अपना कोई काम धंधा अब मुझे विदेश नहीं जाना है ।"जानकी को लगा आज मेरे नसीब को हुआ क्या पराये मीत का मिलना और वो संदिल की सहानुभूति..क्या होगा आगे राम जाने

बुदबुदाते जानकी स्टाप पर उतरी और अपने कार्यालय चल दी।दूसरे दिन संदिल के पापा खुद आये जानकी से घर उससे मिलने।काम से उसके प्रभावित होकर जानकी को अपने यहाँ डिजाइनर की पोस्ट पर नौकरी दे दी।उधर बिछड़ा प्यार मिल गया शायद उसके जीवन के सारे कष्ट ख़त्म हो गये उस दिन से उसके जीवन में धीरे-धीरे रौशनी आने लगी ..कष्ट से भागना नहीं चाहिए इन्सान को बल्कि उसका मुकाबला करना चाहिए। दुःख के बादल छंट जाते हैं गर् इन्सान घबड़ाये ना कभी।



Rate this content
Log in