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Vigyan Prakash

Tragedy

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Vigyan Prakash

Tragedy

ऑनलाइन इश्क़

ऑनलाइन इश्क़

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आज फिर कही से उसका जिक्र निकल आया। तब मैंं फिर से उस पूरे फ्लैशबैक मेंं चला गया जब मैंंने उसे दोबारा पाया था।

बात कॉलेज के फाइनल इयर्स की है। अब इस सोशल मीडिया के जमाने में किसी को भुलाना भी आसान नहींं। जाने कब कहाँ आपके नजरो के सामने उनका जिक्र आ जायेगा और आपको फिर से उन्हीं यादोँ में धकेल दिया जायेगा जिनसे आप लाख कोशिशें कर के निकले हैं। अक्सर ये उन पुराने जख्मों को कुरेद कर फिर से हरा कर देते हैं जिनकी कोई दवा भी नहींं की जा सकती।

हमें तो 2-3 साल पहले तक ये सब पता भी नहीं था की ये सोशल मिडिया किस चिड़िया का नाम है। कुछ दोस्त थे जिनके साथ वक़्त कट जाता था। लड़कियों से बात करने की हिम्मत ना थी हममेंं। फिर ये सोशल मिडिया हमारे जीवन में आया। तब जाकर हमें पता चला की हम कितने खुलकर किसी से बात कर सकते हैं मगर मुँह पर तो हम आज भी कुछ नहीं बोल पाते।

इस सोशल मीडिया के जमाने में प्यार दोस्ती सब खेल से बन गये हैंं मगर अगर सच में किसी के लिए तुम्हारे दिल में जज्बात आते हैं और हर दूसरे पल तुम्हारे दिल में उस किसी का खयाल आता है तो समझ लेना की इस सोशल मीडिया ने अभी भी तुम्हारे अन्दर के इन्सान को खत्म नहीं किया है।

खैर हो जाता है इश्क़ इस ऑनलाइन के जमाने में भी। भले ही दरमियांँ दूरियाँ हो पर पुरानी दोस्ती कब मोहब्बत में बदल जाती है पता ही नहीं चलता। कभी जिनसे बात करने की हिम्मत ना होती थी ये आज उनसे भी मिलवा देता है और हम भी बिना झिझके बात कर लेते हैं वर्ना हम तो आज भी किसी लड़की से बात ना किये होते।

हमने नया नया ही कदम रखा था इस ऑनलाइन की दुनिया में की हमें वो फिर से मिली। सचमें दुनिया बहुत छोटी हो गयी है ऑनलाइन होकर। ऐसे अचानक उसे देखकर हमें विश्वास ही नहीं हुआ। अरे हमारी किस्मत इतनी भी अच्छी कहाँ है ? मगर फिर भी जो दिख रहा था उसे कैसे नकार देता। एकबारगी तो लगा की सपना है शायद, मगर फिर यकीन हो ही आया। पसंद तो उसे हम स्कूल के दिनो से ही करते थे पर कभी भी इस जुबान ने साथ नहीं दिया। शायद उसे एहसास रहा हो या शायद नहीं मैं नहीं जानता मगर मैं तो उसे दिल दे बैठा था। उसकी वो मुस्कान, चुलबुली हरकतें, हमसे झगड़ने की कोशिश करना सब खींच ले जाता था हमें उसकी ओर पर हमारी झिझक थी की हमारा पीछा नहीं छोड़ती थी और प्यार था कि हमारा।

लेकिन स्कूल के दिन खत्म हो गये पर हमारी झिझक नहींं और वो आज तक बरकरार है।

मगर फिर हमने सोचा यहा कोशिश करके देखते हैं क्या पता कुछ हो जाये। हमने पहली बार अपने कदम (बेशक ऑनलाइन ही) किसी लड़की की ओर बढाए। मगर हम जैसे इंट्रोवर्ट्स के लिए हाल ए दिल का इजहार करना किसी चुनौती से कम नहीं। यहाँ बात करने में जुबान लड़खड़ा जाती है फिर मोहब्बत कैसे बयान हो। खैर हमने हिम्मत की और उसे एक मैंसेज भेजा। और पुछा भी क्या,"तुम 'वही' हो ना ?" जब तक उसने मेंरे मैंसेज का जवाब नहीं दिया था मैंं हर पल मुड़ मुड़ कर मोबाइल को देखता रहता था। "हा हा वही हूँ मैंं जिससे तुम रोज लड़ा करते थे।"ये जवाब देखकर तो मानो मेंरा मन सातवें आसमान पर पहुंच गया। अरे भाई खुशी की बात भी थी। आखिर वो मेंरी जिन्दगी में लौट जो आयी थी। मन में लड्डू फूटना क्या होता है ये उस दिन पता चला मुझे। वो समय था जब हम मोबाइल को छोड़ते ही नहीं थे। जाने कब कुछ आ जाये। धीरे धीरे पुरानी यादों को फिर से दोहराते हुए हमने एक दूसरे के बारे में कई नयी चीजें जानी।

साँस लेने और खाने के बाद जीने के लिए तीसरी सबसे जरूरी चीज थी सोना। अब तो वो भी छूट गया। रात रात भर जागने लगे थे हम। उसका एक मैंसेज सारी नींद उड़ा देता था। खैर बाते दिल को सुकून बहुत पहुंचाती थी। उन दिनों हर पल हर वक़्त बस यही खयाल रहता था की अगली बार बात कब होगी। हर वक़्त कुछ ना कुछ सोचता रहता था ताकी उससे बात करते वक़्त ऐसा ना हो की शब्द कम पड़ जाये। हर वक़्त दिमाग में उससे की गयी बातें घूमती रहती थी। यूँ तो बातें होती नहींं है मेंरे पास पर उससे बात करते वक़्त जाने कैसे मैंं इतना सब कुछ सोच लेता था।

देखते देखते मुलाकातों का सिलसिला शुरु हुआ और स्कूल की दोस्ती कब बेइन्तहा मोहब्बत में तब्दील हो गयी पता ही नहींं चला। अब तो उसकी नज़र से दूर रहना भी हमें गवारा ना था। बेशक इजहार-ए-मोहब्बत मुश्किल है हम जैसे इंट्रोवेर्ट्स के लिए मगर मोहब्बत में सिद्दत हो तो कोई काम मुश्किल नहीं होता। फिर उसे हमराही बनाये बिना हमारी जिन्दगी पूरी भी तो नहींं होनी थी। फिर भी सोच लेना एक बात है प्रोपोज करना दूसरी। हमारी हालत वैसे ही खराब थी उस दिन। कई दिनो के बाद हमने मंदिर के दर्शन किये थे उस दिन। वरना हमारी इबादत तो उस हुस्न के दीदार में ही हो जाती थी। बड़ी हिम्मत करके हम उससे मिलने जा रहे थे उस दिन। अभी हम मन्दिर से निकल कर गाड़ी पे बैठे ही थे कि हमारी फ़ोन की घंटी जोरो से बज उठी। एकबारगी तो हमें लगा की उसी का फ़ोन होगा तो हमने जल्दी से फ़ोन उठाया।

कोई अन्जाना नम्बर था तो हम थोड़े हिचके मगर फिर फ़ोन उठा लिया। उधर से आवाज़ आयी,"जी आप सुधीर बोल रहे है क्या ?"

"जी हाँ कहिये।"

"देखीये रागिनी जी का ऐक्सीडेंट हो गया है, जब उन्हें अस्पताल लाया गया तो उनकी मुँह पे बस आपका ही नाम था। उनकी मोबाइल में सबसे पहले आपका ही नम्बर मिला तो आपको फ़ोन किया सुधीर जी जल्दी से नेशनल हेराल्ड अस्पताल आ जाइये उन्हें आपकी जरुरत है।"उसने कहाँ और फ़ोन रख दिया।

मेंरे पैरों तले से जमीन खिसक चुकी थी। मैंं ये तय नहीं कर पा रहा था की मैंं क्या करूँ। मेंरा दिमाग सुन्न पड़ने लगा था। मुझसे गाड़ी भी स्टार्ट नहीं हो रही थी। मैंं पसीने से तर-बतर हो चुका था। किसी तरह मैंंने गाड़ी स्टार्ट की और अस्पताल की ओर चल पड़ा। मैंं अस्पताल पहुँचा और गिरता पड़ता हुआ रिसेप्सन की ओर भागा। मेंरे कदम लड़खड़ा रहे थे और साँस बुरी तरह फूल रही थी। जैसे तैसे मैंं रिसेप्सन पर पहुँचा और पूछा, "क्या यहाँ रागिनी नाम की कोई लड़की भर्ती हुई है ? ऐक्सीडेंट का केस है।"

"जी आगे जाकर लेफ्ट चौथा कमरा।"

मैं दौड़ता हुआ गया, वो ओ टी था। ओपरेशन थियेटर। बाहर एक नर्स थी हमने उससे पूछा,"क्या हुआ है उसे ?"

"सर में गहरी चोट है, कोमा में है बेचारी।"

मैं धम्म से बेहोश होकर गिर पड़ा। जब मैं उठा तो पता चला की ब्लड प्रेशर अचानक से कम हो गया था और डर का जबर्दस्त झटका लगा इसलिए बेहोशी आ गयी। मैं करीब दो घन्टे बेहोश रहा था। मैंने नर्स से पूछा क्या उसे होश आया।

"देखिये कोमा का केस है ये, इतनी जल्दी कुछ नहीं होता। दो दिन लग सकते हैं दो महीने या दो साल भी।"

मैं तो टूट सा गया बिलकुल। जीने की बस एक आस थी की वो उठेगी और कहेगी चले शादी करने,

आज पूरे आठ महीने हो चुके हैं उसे कोमा में।


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