इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि ऑनलाइन दोस्त बनाना या ढूँढना आसान है यही इसका लाभ है परंतु लाभ से कहीं अधिक हानि अर्थात नुकसान होने की आशंका अधिक हो सकती है जिसका मुख्य: कारण ऊपर बताया गया है कि उसका आचरण अर्थात वो क्या करता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने जो बताया हमसे उसके विपरीत किसी कार्य में लिप्त हो इत्यादि अर्थात अपनी पहचान छिपा कर या झूठ बोल रहा हो जिससे हमें क्षति पहुँच सकती है। उदाहरण के तौर पर समझें तो एक व्यक्ति से आप ऑनलाइन मित्रता का हाथ बढ़ा रहे हैं तब आपको यह समझ पाना मुश्किल होता है कि आख़िर बात करने वाला कौन है? एक लड़का है या लड़की या फिर कोई परलैंगिक अब मानते हैं कुछ देर के लिए कि दोस्ती आगे बढ़ी और आपने पुष्टि करने हेतु वीडियो कॉल किया परंतु इस दौरान भी यह सुनिश्चित करना जटिल है कि आख़िर ये वही बात करने वाला व्यक्ति है या कोई अन्य अर्थात संशय रहना निश्चित है । फिलहाल आजकल के डिजिटल युग में दोस्त तो क्या,अपना जीवनसाथी (हमसफ़र) भी ऑनलाइन चुन लेते हैं। कई साइट्स भी उपलब्ध हैं जिससे लोग अपना जीवनसाथी चुनते हैं और कुछ अन्य सोशल एप्प जैसे फेसबुक,इंस्टाग्राम आदि से भी लोग दोस्ती का प्रस्ताव रखते हुए प्यार का परवान चढ़ाते हैं फिर जीवनसाथी बनने बनाने का एक दौर चलता है इसके पश्चात कुछ का सपना अधूरा तो कुछ का पूरा हो जाता है और कुछ की दोस्ती, प्यार पता नहीं किसके भेंट चढ़ जाता है जैसा कि अक्सर अखबारों में पढ़ते ही होंगे अर्थात सतर्कता बहुत जरूरी है परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि सभी ऐसे ही होते हैं बल्कि कुछ ऑनलाइन में भी ऐसे बेहतर मिल जाते हैं कि वो अपना ही बन जाता है।
जबकि अब बात करते हैं ऑफलाइन मित्रता की तो ऑफलाइन का तात्पर्य आमने-सामने मिलने से है तो यहाँ ऑफलाइन तरीके से मित्रता का हाथ बढ़ाने वाले को हम अच्छे से जान पहचान सकते हैं कि क्या यह व्यक्ति वास्तव में दोस्ती के पात्र (लायक) है अथवा नहीं जिससे किसी भी प्रकार के संदेह होने का भय नहीं हो सकता क्योंकि हम अन्य लोगों से भी उसका फीडबैक ले सकते हैं यहाँ तक कि उसके घर, परिवार व उसके कार्य के बारे में भी पता लगया जा सकता है।
उसके आचरण या आचार विचार का भी पता लगाया जा सकता है अर्थात हम यह कह सकते हैं कि ऑनलाइन की अपेक्षा ऑफलाइन मित्रता काफी उपयोगी (बेहतर) सिद्ध (साबित) हो सकती है यही ऑफलाइन मित्रता का लाभ है परंतु दोनों माध्यम की मित्रता में सकता शब्द का उपयोग किया गया क्योंकि मेरे नजरिए से हम यह किसी भी दशा में पूर्ण रूप से होगा या है शब्द का उपयोग नहीं कर सकते क्योंकि पूर्ण रूप से इस दुनियां में कोई सही नहीं है ।
ऐसा इसलिए कहा कि कोई भी व्यक्ति किसी के दिलों के राज़ को नहीं जानता कि कौन, कब ,किसके प्रति क्या सोच रखता है अर्थात हो सकता है कि ऑफलाइन मित्र ही हमारे साथ रहते हुए भी ......
एक उदाहरण के तौर पर या इसको वास्तविक अनुभव भी कह सकते हैं कि एक प्रशिक्षण के दौरान ज्यादातर नए चेहरों से मुलाकात हुई उस क्षण तो सभी एक दूसरे से अनजान थे परंतु कुछ समय बीतने के बाद मित्रता के लिए एक दुसरे ने हाथ बढ़ाए इस प्रकार कुछ दिन बीतने पर अब वो एक दूसरे को जानने लगे और मित्र कहलाने लगे । इस तरीके से प्रशिक्षण पूर्ण होने के पश्चात सभी अपने अपने घर लौटे परंतु कुछ समय बाद उसी समूह में से एक कहलाने वाला ऑफलाइन दोस्त ने कुछ चुनिंदा बनाए हुए दोस्तों को लक्ष्य बनाते हुए उनको भेदना शुरू किया अर्थात उन चुनिंदा लोगों को अलग-अलग कारण बताते हुए धन उगाही की जबकि वास्तविकता बिल्कुल अलग थी क्योंकि जब ऐसा पता चला तो कुछ आसपास वाले मित्रों ने छानबीन की तो पता चला वो झूठ बोल रहा है।
दूसरे उदाहरण में एक ऐसे महान मित्र की प्रशंसा करना अनुचित होगा परंतु एक अन्य मित्र के साथ घटित घटना के आधार पर कि एक मित्र दूसरे मित्र से किसी काम कराने हेतु कुछ धनराशि लेता है परंतु काम न होने पर जब वही मित्र उससे पैसा माँगता है तो उसके नंबर पर बात करने पर स्वयं को मृत घोषित बोलवा कर पीछा छोडवा लेता है जबकि उसके सोशल मीडिया पर नजर डालने पर पता चलता है कि उसका फोटो अक्सर अपडेट होता है जो बड़ी संशय वाली बात थी।
उदाहरण तीन पर एक सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद लिए पैसे वापस न करना पड़े इसलिए वो कॉल या संदेश का कोई उत्तर नहीं देते। ऐसी महानता वाले लोग कहाँ मिलते हैं? 🤣
जबकि ये सारे ऑफलाइन मित्रता की गाथाएँ हैं।
अब कुछ ऑनलाइन मित्रों की गाथाएँ पढ़ते हैं कि कुछ ऑनलाइन मित्र बनें और बातों में इतनी मिठास जैसे शहद फिर जब ऐसा हो तब मित्रता का गाढा होना स्वाभाविक है और अपने आप को काफी व्यवसायी तो कुछ नौकरी वाले और कुछ बेरोजगार जैसा कि बताया उन्होंने फिर भी षणयंत्रकारी मित्र तो अब वही सोचेगा धन ऐंठना बस हुआ वही कि कुछ पैसे दे दो यार बताओ तुम सोचोगे कि एक प्रबंधक होकर भी पैसे माँग रहा है लेकिन मजबूरी है कुछ धनराशि दे दे तो मेहरबानी होगी और जल्द ही वापस कर दूँगा पर वो पैसे आज तक मिले नहीं।
कुछ ऐसे भी मित्र बन जाते हैं जो आपके लिए सदैव तत्पर रहते हुए आपको बना देते हैं या आपके लिए सब कुछ न्यौछावर करते हुए आपको एक अच्छे मुकाम पर पहुँचाने के लिए तत्पर रह सकते/रहते हैं जिसका प्रतिशत १% होता है।
इस तरह की और भी बहुत सारी कहानियाँ या वास्तविक घटना पर आधारित कई किस्से सुनने को मिल जाएंगे । इस प्रकार की घटना अधिकांशतः सुनने और पढ़ने को मिल जाती हैं परंतु सकरात्मक पर आधारित घटनाओं की संख्या की अपेक्षा नकारात्मक पर आधारित संख्या अधिक हैं।
ख़ैर दोनों मित्रता में निष्कर्ष यही निकला कि किसी को कुछ कहा नहीं जा सकता कि कौन,कब, किस मोड़ पर धोखा दे बस हम सभी एक आश,उम्मीद, भरोसे, भावनाओं पर सारे रिश्ते टिके होते हैं। लाख धोखा खाने पर भी विश्वास करना पड़ता है जैसा कि आप सभी जानते हैं कि आजकल हर चीज ऑनलाइन हो गई है जहाँ हमसे कुछ जानकारी माँगी जाती है और हम सभी वांछित जानकरी उपलब्ध कराते हैं इस विश्वास के साथ कि जो भी जानकारी माँगने वाले हैं वो हमारे द्वारा दी गई जानकारी का दुरूपयोग नहीं करेंगे। बाकी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रकार की मित्रता में कुछ लाभ और कुछ हानियाँ हैं लेकिन हमें अधिकांशतः नकारात्मक को अनदेखा करते हुए सकरात्मक की ओर अपना ध्यान आकर्षित करना है।
जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं
औऱ आगे बढ़ने के लिए दोनों पहलू ज़रूरी होते हैं
सफ़लता पाने के लिए संघर्ष ज़रूरी होता है
गृहस्थी के रथ के भी दो पहलू होते है (पति-पत्नी)
इसमें दोनों का आपसी समन्वय ज़रूरी होता है
सुख पाने के लिए कुछ क्षण दुःख उठाना होता है (सुख-दुःख)
सुबह देखने के लिए रात का होना ज़रूरी होता है (दिन-रात)
बस ठीक इसी प्रकार दोनों माध्यमों से बनी मित्रता में आपसी समनव्य और विश्वास का होना जरूरी होता है और दोनों को छल मुक्त होना चाहिए अर्थात स्वार्थी या स्वहित नहीं होना चाहिए। मित्रता ऐसी होनी चाहिए जैसे की छत का स्तंभ अर्थात जो दोनों एक दूसरे के लिए परस्पर तत्पर रहें न कि...
© अब्दुल रहमान "बाँदवी"