इज़्ज़त .....
इज़्ज़त .....
इस जहां में सभी को इज़्ज़त/सम्मान चाहिए लेकिन क्या इज़्ज़त सभी की होती?
क्या सम्मान पैसे वालों को मिलता है?
क्या इज़्ज़त इंसान की होती है?
क्या इज़्ज़त पद की होती है?
क्या इज़्ज़त अमीरों की होती है?
क्या इज़्ज़त सरकारी अधिकारी/कर्मचारी की होती है?
क्या इज़्ज़त नेताओं की होती है?
क्या इज़्ज़त व्यापारियों की होती है?
क्या इज़्ज़त उद्योगपतियों की होती है?
ऐसे कई सवाल के उत्तर आप स्वयं से ढूंढिए बाकी सब अपने-अपने नजरिए पर निर्भर करता है लेकिन मुझे तो ऐसा लगता है कि.......... फिलहाल आप स्वयं आंकलन कीजिए कि इस संसार रूपी मायाजाल में हम सभी रहते हैं अर्थात हम सभी इंसान हैं लेकिन इतना मतभेद क्यों? कुछ लोग यह भी कह सकते हैं इज़्ज़त सभी की होती है तो ऐसा तो नहीं है । यहां तो किसी ने कहा कि इज़्ज़त कर्म पर निर्भर है क्योंकि जिसके अच्छे कर्म होंगे समाज उसके सामने अच्छे से पेश आता है पर ऐसा हो सकता है पर जरूरी नहीं क्योंकि कई अच्छे हैं लेकिन वो आर्थिक रूप से कमजोर हैं तो उसको कोई तवज्जो नहीं देता तब ख़्याल आया कि शायद अच्छा पैसा जरूरी है तो हां जरूरी है लेकिन सभी पैसे वालों का सम्मान हो जरूरी तो नहीं क्योंकि आपने अक्सर देखा होगा लोग कहते हुए नज़र आते हैं कि होगा वो पैसे वाला अपने लिए ही है लेकिन हां उसके सामने फॉर्मेलिटी अदा कर लेते हैं लोग ठीक वैसा ही जैसा किसी व्यक्ति को अपने पद का गुमान है तो लोग आपकी इज़्ज़त दिल से नहीं बल्कि एक औपचारिकता पूरी कर रहे होते हैं। वैसे इज़्ज़त कई चीजों पर निर्भर करती है जैसे वेशभूषा,रूप,कद-काठी,पद,पैसा इत्यादि अब इसको यूं समझते हैं कि यदि कोई बौना अधिकारी जिसकी वेषभूषा भी सही न हो तो लोग उसे मानने से इनकार कर देंगे कि हटो यार ये फलां हो ही नहीं सकता जबकि उनके सहयोगी कर्मचारी में वो सारे गुण दिख जाए तो लोग कहेंगे ये अधिकारी हो सकता है अब ऐसा उदाहरण मैने देखा भी है कि एक अधिकारी थे जिनका सिर्फ छोटा कद था परन्तु वेषभूषा सही रहती लेकिन जब भी कोई न जानने वाला व्यक्ति आए तो उनके अधीनस्थ कर्मचारी को इज़्ज़त मिलती पर उनको नहीं तो कोई पूछता बड़े साहब कहां है इत्यादि तब उन्हें कहना पड़ता कि यार मैं अधिकारी हूं अर्थात निष्कर्ष निकला कि इज़्ज़त की भूख अक्सर सभी को है लेकिन उसके प्रकार अलग अलग हैं। दूसरा उदाहरण और देखते हैं कि यदि कोई एक अधिकारी या फिर जिले के बड़े अधिकारी जिला अधिकारी को लें कि वो शहर में बिना किसी व्यवस्था के निरीक्षण करने निकले तो क्या उन्हें वो इज़्ज़त मिलेगी जो मिलनी चाहिए थी तो शायद न मिले क्योंकि जो जागरूक हैं शायद वो पहचाने पर पूरी आवाम नहीं। कोई आपसे रोज मिलता फटे पुराने कपड़ों में (फिलहाल आजकल पहनता कौन है) मिलता हो तो आपके दिमाग में उसकी एक अलग छवि बनी होगी पर किसी के माध्यम से पता चले कि फलां तो बहुत बड़ा आदमी है तो कुछ देर के लिए तो एक झटका सा लगेगा लेकिन अगले दिन मन में उसकी अलग छवि बनाने लगेंगे अर्थात अक्सर हम सभी किसी के बाहरी आवरण से उसकी परिकल्पना या आंकलन करते हैं। इज़्ज़त इस संसार में सिर्फ ज़रूरत की होती है जब तक किसी का आपसे काम है या आपसे उसकी जरूरत है तब तक इंसान आपकी काफी इज़्ज़त करता है लेकिन जरूरत खत्म,इज़्ज़त खत्म अब ऐसा कैसे? आपके जीवन में भी कितने आए कितने गए तो आख़िर ऐसा क्यों? अर्थात जरूरत के हिसाब से आपके लिए कौन,कितना, कब किसके लिए कितना ख़ास है? ये वक्त और आपका मन खुद तय करता है और जिसे कहते हैं नि:स्वार्थ प्रेम ये तो शायद सिर्फ़ किताबों और जज़्बाती भाषणों में मिलता है वरना अक्सर रिश्ते स्वार्थ में लिपटे होते हैं ऐसा अधिकांशतः देखा गया है और जो अनवरत टिका रहे वही असली रिश्ता होता है और काबिल-ए-तारीफ होता है। यदि आपको लगता है कि कुछ गलत लिखा है तो आप अपनी राय मुझे भेज सकते हैं जिससे कुछ सुधार लाया जा सके।
